यदि आप आयकर रिटर्न आराम से भरने के आदी हैं और अक्सर आखिरी दिनों में ही यह काम करते हैं तो खबरदार हो जाइए। आकलन वर्ष 2021-22 के लिए आयकर रिटर्न भरने के वास्ते बढ़ाई गई तारीख पूरी होने में अब तीन हफ्ते भी नहीं बचे हैं। इस बार कोविड महामारी के कारण इसकी तारीख बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी गई थी। खबरदार इसलिए होना है क्योंकि हर साल आयकर रिटर्न (आईटीआर) भरने के नियमों या रिटर्न फॉर्म में कुछ बदलाव कर दिए जाते हैं। ये बदलाव इस बार भी किए गए हैं और आखिरी क्षणों की दिक्कत से बचने के लिए आपको पहले ही इनकी जानकारी होनी चाहिए। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा कहते हैं, 'आयकर रिटर्न में कई प्रकार का ब्योरा होता है, जैसे विभिन्न प्रकार की आय, आय के बदले किए गए खर्च और आयकर अधिनियम के अंतर्गत जरूरी खुलासे रिटर्न भरते समय अतिरिक्त सावधानी बरतना जरूरी हो जाता है।' इसलिए आयकर रिटर्न भरने से पहले आपको भी जान लेना चाहिए कि कौन-कौन से बदलाव किए गए हैं। नई या पुरानी कर प्रणाली? इस साल आपके पास विकल्प है कि आप आयकर रिटर्न पुरानी कर प्रणाली में भी भर सकते हैं और चाहें तो नई प्रणाली भी अपना सकते हैं। पुरानी कर प्रणाली में कुछ भी नहीं बदला है। करदाता को पहले की तरह कटौती और कर छूट का फायदा मिलता है। मगर नई प्रणाली में किसी भी तरह की कटौती या कर छूट आपको नहीं मिलेगी। हां, इसमें कर की दर जरूर कम हो जाएगी। होस्टबुक्स लिमिटेड के संस्थापक एवं चेयरमैन कपिल राणा कहते हैं, 'करदाता के लिए कौन सी प्रणाली बेहतर है, यह उसकी आय और कटौती आदि से निर्धारित होता है। यदि कोई करदाता मकान किराया भत्ता (एचआरए), यात्रा अवकाश भत्ता (एलटीसी) जैसे फायदों का दावा करता है अथवा आयकर अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत कटौती अथवा धारा 80सी, 80सीसीडी, 80डी, 80जी आदि के तहत कटौती या अपने मकान पर धारा 24(बी) के अंतर्गत ब्याज में छूट जैसे तमाम लाभ चाहता है तो उसके लिए पुरानी कर प्रणाली ही बेहतर है क्योंकि नई प्रणाली में इनमें से ज्यादातर लाभ नहीं मिलते हैं।' नई कर प्रणाली के तहत करदाताओं को 15 लाख रुपये तक की आय पर पुरानी प्रणाली के मुकाबले कम दर से कर भरनप पड़ता है। सुराणा समझाते हैं, 'नई प्रणाली चुनने वाले करदाताओं को इस विकल्प का इस्तेमाल करने के लिए फॉर्म 10-1ई जमा करना पड़ेगा और आयकर रिटर्न में इस फॉर्म को भरने की तारीख तथा उसकी पावती संख्या का जिक्र करना पड़ेगा।' लाभांश पर कर वित्त वर्ष 2020-21 से पहले शेयरधारकों को जो भी लाभांश मिलता था, उस पर उन्हें किसी भी तरह का कर नहीं देना पड़ता था। उनके बजाय कंपनियों से लाभांश वितरण कर (डीडीटी) वसूला जाता था। इसलिए करदाताओं को आयकर रिटर्न भारते समय केवल यह बताना पड़ता था कि पूरे वित्त वर्ष में उन्हें किस तरह से और कितनी आय लाभांश के जरिये हुई। लेकिन इसे उनकी कर योग्य आय में नहीं जोड़ा जाता था, इसलिए उनके आयकर में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं होती थी। एबीए लॉ ऑफिस की प्रिंसिपल एवं संस्थापक अनुष्का अरोड़ा बताती हैं, 'कंपनियां अपने शेयरधारकों को जो भी लाभांश देती हैं, उस पर अब कर वसूला जाएगा और यह कर उस व्यक्ति की आय के हिसाब से निर्धारित कर स्लैब के मुताबिक होगा।' वित्त वर्ष 2020-21 से डीडीटी खत्म कर दिया गया है। उसके बजाय शेयरधारकों को मिलने वाले लाभांश पर उनसे ही कर वसूला जाएगा। सुराणा कहते हैं, 'इसी कारण अनुसूची ओएस में तब्दीली की गई है और अब लाभांश से होने वाली सभी प्रकार की आय की जानकारी देनी होगी। साथ ही लाभांश आय के बदले ब्याज पर होने वाले खर्च की कटौती का दावा किया जा सकता है। यह दावा भी अधिकतम 20 फीसदी तक के लिए ही हो सकता है।' आईटीआर 1 की इजाजत नहीं आयकर अधिनियम की धारा 194एन कहती है कि यदि कोई व्यक्ति कानून में निर्धारित की गई सीमा से अधिक नकद निकासी कर लेता है तो उसे स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) का भागी बनना पड़ेगा यानी उसका टीडीएस काट लिया जाएगा। पीएसएल एडवोकेकट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में मैनेजिंग पार्टनर समीर जैन बताते हैं, 'अब ऐसे व्यक्ति को आईटीआर-1 का प्रयोग करने की इजाजत नहीं होगी, जिसकी नकद निकासी पर आयकर अधिनियम की धारा 194एन के तहत स्रोत पर ही कर कटौती कर ली गई है।' ध्यान देने वाली बात यह भी है कि चूंकि आयकर अधिनियम की धारा 194एन के तहत काटे गए टीडीएस की वापसी का दावा उसी वर्ष की कटौती के तहत किया जा सकता है, इसलिए याद रहे कि आयकर रिटर्न के नियमों में बदलाव कर दिया गया है ताकि करदाता इस प्रकार के टीडीएस को रिफंड के लिए आगे के निर्धारण वर्षों में नहीं ले जा सकें। ब्योरे का एआईएस से मिलान आयकर विभाग ने हाल ही में वार्षिक आय विवरण (एआईएस) देना शुरू किया है, जिसमें करदाता के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती है। यह जानकारी वही है, जो आयकर विभाग के पास मौजूद है। सुराणा कहते हैं, 'एआईएस में ब्याज, लाभांश, प्रतिभूतियों और म्युचुअल फंडों में किया गया लेनदेन, विदेश से मिली रकम का ब्योरा, जमा रकम का ब्योरा आदि की जानकारी शामिल होती है। इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी हो जाता है कि आयकर रिटर्न में दी गई जानकारी एआईएस में मौजूद जानकारी से एकदम मेल खाती हो।' यदि करदाता को लगता है कि एआईएस में दी गई जानकारी में किसी प्रकार की गड़बड़ है या उसके वार्षिक वित्तीय विवरण में दी गई किसी खास तरह की आय उसने अर्जित ही नहीं की है तो उसे ऑनलाइन फीडबैक भरना चाहिए और इसकी जानकारी उसे देनी चाहिए।पहले से भरे हुए आईटीआर फॉर्म आयकर से जुड़ी सभी प्रकार की प्रक्रियाएं करदाताओं के लिए आसान बनाने की अपनी मुहिम जारी रखते हुए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने पहले से भरे आईटीआर फॉर्म भी देना शुरू कर दिया है। मिगलानी वर्मा ऐंड कंपनी - एडवोकेट्स, सॉलिसिटर्स ऐंड कंसल्टेंट्स में मैनेजिंग पार्टनर प्रत्यूष मिगलानी बताते हैं, 'करदाता को पूरी सावधानी के साथ इस फॉर्म को पढऩा चाहिए और पहले से भरी हुई एक-एक जानकारी की पुष्टि करनी चाहिए क्योंकि ऐसे प्लेटफॉर्म पर तकनीकी समस्या के कारण त्रुटियां होना आम बात है। यह सुनिश्चित करिए कि आईटीआर और विभिन्न प्रकार के फॉर्म में दी गई आपकी व्यक्तिगत जानकारी मसलन पैन, आधार आदि एकदम सही हों।' याद रखिए कि फॉर्म में पहले से भरी हुई जानकारी में आप अपने हिसाब से कांट-छांट कर सकते हैं या उसे सही कर सकते हैं। यदि आपको किसी तरह की गड़बड़ नजर आती है तो उसे उचित तरीके से सही कर दें।
