बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल और भारतीय रिजर्व बैंक के रीपो के बीच का अंतर (स्प्रेड) अब दो दशक के सर्वोच्च स्तर पर है, जो बताता है कि बाजार को आगामी महीनों में ज्यादा ब्याज दर और महंगाई की संभावना दिख रही है। 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल बुधवार को 6.35 फीसदी पर टिका, जो आरबीआई के रीपो 4 फीसदी के मुकाबले 235 आधार अंक ज्यादा है। नीतिगत दर और बेंचमार्क बॉन्ड प्रतिफल के बीच मौजूदा अंतर पिछले 10 साल के औसत अंतर का करीब 3 गुना है। कैलेंडर वर्ष 2012 की शुरुआत से औसत अंतर करीब 88 आधार अंक रहा है। स्प्रेड में लगातार हो रही बढ़ोतरी का मतलब यह भी है कि फर्मों और सरकार के लिए वास्तविक उधारी लागत आरबीआई के अनुमान से काफी ज्यादा है। बेंचमार्क बॉन्ड प्रतिफल मई 2020 से करीब 59 आधार अंक ऊंचा है जबकि आरबीआई ने नीतिगत दरोंं को 4 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा है। स्प्रेड में बढ़ोतरी हालांकि हालिया घटना नहीं है। पिछले चार वर्षों में स्प्रेड 1 फीसदी से ऊपर रहा है क्योंकि आरबीआई उधारी लागत घटाकर आर्थिक रफ्तार को मजबूत करने की कोशिश करता रहा है। यह विश्लेषण 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल के माह के अंत के आंकड़ों और आरबीआई की रीपो दर पर आधारित है। जेएम फाइनैंशियल इक्विटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, रीपो दरों में बढ़ोतरी की आरबीआई की अनिच्छा संकेत देता है कि अल्पावधि की ब्याज दरें और बॉन्ड प्रतिफल बढ़ते रहेंगे, चाहे रीपो दरें मौजूदा स्तर पर बनी रहे। अर्थशास्त्रियों का भी कहना है कि स्प्रेड में लगातार हो रही बढ़ोतरी से संकेत मिलता है कि बाजार भविष्य में ब्याज दरों ऊंचा रहने की उम्मीद कर र हा है। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, बॉन्ड बाजार के प्रतिभागी आर्थिक आंकड़ों को आरबीआई से अलग नजरिये से देखते हैं। उन्हें उम्मीद है कि ब्याज दरें भविष्य में काफी ऊंची होंगी क्योंंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की उधारी ज्यादा है। भारत की थोक मूल्य पर आधारित महंगाई अभी रिकॉर्ड 12.5 फीसदी पर है, वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पिछले कुछ महीने में घटा है पर अभी भी आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। आईएमएफ का अनुमान है कि केंद्र व राज्य सरकारों की उधारी वित्त वर्ष 22 में देश की जीडीपी के करीब 91 फीसदी पर पहुंच जाएगी। विश्लेषण हालांकि कहता है कि आरबीआई का ध्यान अभी भारत की जीडीपी को आगे बढ़ाने पर है और वह आर्थिक कारकों मसलन महंगाई व उच्च सार्वजनिक कर्ज को लेकर चिंतित नहीं है।
