अंतरराष्ट्रीय एवं भारतीय समाचार माध्यमों की सुॢखयों को देखकर लगता है कि कोविड-19 महामारी की वजह से हजारों कर्मचारी अब स्वयं अपना उद्यम शुरू करने का सपना साकार करने में जुट गए हैं। पहले वे कर्मचारी हुआ करते थे मगर अब वे नई शुरूआत कर स्वयं सर्वेसर्वा बन गए हैं। कोविड महामारी से दुनिया भर के संगठनों में कर्मचारियों के इस्तीफे का तांता लगना भी उद्यमशीलता की भावना बलवती होने का संकेत माना जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि ये बातें ऐसे समय में कही जा रही हैं जब कंपनियां काफी ऊंचे वेतन की पेशकश कर नई नियुक्तियां कर रही हैं। अपना उद्यम या स्टार्टअप शुरू करने के पीछे एक भावना यह भी होती है कि अब रोजाना कार्यालय में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के सामने हाजिरी नहीं लगानी होगी और कार्यालय जाकर या घर से कार्य (वर्क फ्रॉम होम) के रोज के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। शुरू में बड़े-बड़े संस्थानों के दफ्तरों में ही कुछ नया करने की सोच दिमाग में पनपती है। स्टार्टअप खंड में कामयाबी की बुलंदी हासिल कर चुके लोगों को देखकर अपना उद्यम शुरू करने के प्रति लोगों में आकर्षण काफी बढ़ गया है। वे इस दुनिया के सफल लोगों के व्यक्तित्व से जुड़ी बातों में खूब दिलचस्पी लेते हैं। उदाहरण के लिए एमेजॉन के संस्थापक जेफ बेजोस के मशहूर नैपकिन स्केच या 14वीं मंजिल तक सीढिय़ां चढऩे की उनकी आदत आदि बातें उद्यमशीलता के मुरीद हो चुके लोगों को खूब भाती हैं। गूगल के सह-संस्थापक लैरी पेज का लोकप्रिय कथन भी कई लोगों के जेहन में उतर चुका है। पेज ने कहा था, 'अगर आप कुछ अलग हट कर नहीं कर रहे हैं तो आप संभवत: गलत चीजों में फंसे हैं।' उन्होंने यह भी कहा था कि सफल होने का केवल एक ही रास्ता है कि आप पहले कई बार असफल हो जाएं। ऐपल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स द्वारा कही गई वह बात भी लोगों का उत्साह बढ़ाती है कि अपनी सोच सरल एवं स्पष्ट रखना कहीं अधिक मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होती है। सरलता पेचीदा से अधिक कठिन हो सकतीं हैं। उनका यह कथन भी काफी लोकप्रिय है कि 'आपका समय सीमित है इसलिए दूसरों की जिंदगी जीकर इसे बरबाद नहीं करें।' अब वास्तविकता टटोलने की कोशिश करते हैं। ट्विटर के सह-संस्थापक जैक डॉर्सी का मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) पद से इस्तीफा किसी स्टार्टअप इकाई की वास्तविकता बयां करता है। ऐसी परिस्थितियां तब पैदा होती है जब किसी इकाई में उद्यमशीलता की खूबियां नहीं रह गई हैं मगर यह तब भी उन्हें बरकरार रखना चाहती है। खबरों के अनुसार भुगतान कंपनी स्क्वायर इंक के साथ डॉर्सी का जुड़ाव ही निवेशकों की चिंता का कारण नहीं था। उनकी कार्य शैली भी निवेशकों को परेशान कर रही थी। डॉर्सी स्क्वायर इंक के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं। 2008 में जब उन्हें पहली बार ट्विटर के सीईओ के रूप में इस्तीफा देना पड़ा तो इसके कई करण थे मगर उनमें एक बात यह थी कि वह योग की कक्षा जाने के लिए बैठकों से पहले निकल लेते थे। बड़ी दाढ़ी और नाक में बाली पहनने और ध्यान, योग, यात्रा पर समय व्यतीत करने वाले और हाल में क्रिप्टोकरेंसी में दिलचस्पी रखने वाले डॉर्सी निवेशकों के प्रिय नहीं रह गए थे। खासकर ट्विटर में 4 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली इलियट मैंनेजमेंट को डॉर्सी खटकने लगे थे। डॉर्सी ने कहा कि वह इस्तीफा दे देंगे और 2022 में अपना कार्यकाल समाप्त होने तक ट्विटर के निदेशकमंडल में बने रहेंगे। स्टार्टअप इकाइयों में हाथ खोलकर निवेश करने वाली वेंचर कैपिटल (वीसी) कंपनियों के कार्य करने का तौर-तरीका परंपरागत वॉल स्ट्रीट कंपनियों से अलग माना जाता है। वीसी कंपनियां बैंकरों के मुकाबले थोड़ा अधिक ढीला रवैया रखते हैं। हालांकि पश्चिमी देशों और भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे स्पष्ट हो चुका है कि वीसी कंपनियां उन मामलों में अधिक धैर्य नहीं दिखाती हैं जो उनके हिसाब से अनुपयुक्त होते हैं। इससे भी अहम बात यह है कि अधिकांश निवेशक बाद में स्टार्टअप इकाइयों के बॉस बन जाते हैं। हाउसिंग डॉट डॉट कॉम के संस्थापक राहुल यादव के उदाहरण पर विचार किया जा सकता है। अपने 11 साथियों के साथ यादव पांच वर्षों से भी अधिक समय तक निवेशकों के साथ मतभेद के लिए सुर्खियों में रहे थे। सिकोया कैपिटल के साथ संबंध खराब होने के बाद डाउसिंग डॉट कॉम के निदेशकमंडल ने एक सार्वजनिक बयान जारी कर उन्हें सीईओ के पद से बर्खास्त कर दिया। अब इसमें किसी तरह का संशय नहीं रह गया था कि सारे निर्णय कौन ले रहा था। फ्लिपकार्ट में भी कुछ ऐसा ही हुआ। ऐसा समझा जा रहा है कि टाइगर ग्लोबल के मुख्य कार्याधिकारी ली फिक्सल ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट से इसके सह-संस्थापक सचिन बंसल के बाहर निकलने के लिए जिम्मेदार थे। 2018 में वॉलमार्ट ने इस कंपनी में बहुलांश हिस्सेदारी खरीदी ली थी। शुरू में बंसल और फिक्सल के संबंध मधुर रहे थे मगर फ्लिपकार्ट में लिए गए कुछ निर्णय टाइगर ग्लोबल को पसंद नहीं आने के बाद परिस्थितियां बदल गईं। ऐसे कई अन्य मामलों में स्टार्टअप इकाइयों को निवेशकों के कहने पर संस्थापकों को बाहर का रास्ता निकालना पड़ा। इंटरनेट आधारित कंपनियों में शानदार पार्टी, प्रबंधन शैली और भारी छूट विवाद का प्रमुख कारण रही हैं। नेटफ्लिक्स की सीरीज स्टार्टअप में 'सीड मनी', 'प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट' और 'होस्टाइल टेकओवर' कडिय़ों में स्टार्टअप कंपनियों में पर्दे के पीछे चलने वाली गतिविधियों की झलक बखूबी पेश की गई है। कुछ वर्ष पहले हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में प्रकािशत एक विश्लेषण के अनुसार उद्यमी बनने की चाह रखने वाला हरेक व्यक्ति बिल गेट्स, फिन नाइट या अनिता रॉडिक बनना चाहता है। इस विश्लेषण के अनुसार हालांकि सफलता का स्वाद रखने वाले सीईओ-सह-संस्थापक इक्के दुक्के ही होते हैं। दूसरे लहजे में कहें तो स्टार्टअप कंपनी शुरू करना अलग बात है मगर स्वयं सर्वेसर्वा बनना बिल्कुल दूसरी बात है।
