मुंबई महानगर में अपने अच्छे खाने और बेहतर माहौल के लिए 'इंडिगो डेलिकेटसन' मशहूर है जो 'इंडिगो डेली' के नाम से भी जाना जाता है। इसके करीब 10 आउटलेट भी इसी शहर में हैं। लेकिन महामारी आने की वजह से एक के बाद एक उद्योग तबाह होते गए। रेस्तरां कारोबार पर इसका सीधा असर पड़ा। इंडिगो डेली के ज्यादातर आउटलेट बंद हो गए और अब इनकी तादाद तीन है। रेस्तरां ब्रांड इंडिगो हॉस्पिटैलिटी के संस्थापक और निदेशक अनुराग कटरियार कहते हैं, 'मैं अपने नुकसान के बोझ तले मरना नहीं चाहता और इसी वजह से मैंने बहुत बहादुरी दिखाने का फैसला नहीं किया। मैंने अपने आउटलेट्स को बंद करने में कोई कोताही नहीं बरती। अगर मैं जिंदा रहा तो फिर से कारोबार को तैयार कर सकता हूं।' इसीलिए मैंने कोलाबा, बांद्रा, अंधेरी, नेरुल ईस्ट (नवी मुंबई), परेल और यहां तक कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और पुणे में भी आउटलेट को बंद कर दिया। कटरियार की तरह, इम्प्रेसारियो हैंडमेड रेस्तरां के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक (एमडी) रियाज अमलानी ने महामारी के बाद नई दिल्ली के पॉश खान मार्केट में अपने मशहूर नौ साल पुराने आउटलेट, 'स्मोक हाउस डेली' के पट्टे का नवीनीकरण न कराने का फैसला किया। अमलानी कहते हैं, 'खान मार्केट के आउटलेट के पट्टे की अवधि खत्म होने के कगार पर पहुंच गई थी इसीलिए हमने इसका नवीनीकरण नहीं कराने का फैसला किया क्योंकि हमें इस बात का कोई अंदेशा नहीं था कि यह महामारी कब तक चलेगी।' इनकी कंपनी के पास 'सोशल' और 'मोचा' जैसे डाउनिंग रेस्तरा का भी स्वामित्व है। इसी तरह कोलकाता मुख्यालय वाली स्पेशियल्टी रेस्टोरेंट भी 'ओ! कैलकटा', 'मेनलैंड चाइना' और 'होप्पिपोला' जैसे ब्रांडों का संचालन करती है। इसके अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (एमडी) अंजन चटर्जी कहते हैं, 'मुनाफे के लिहाज से हमारी स्थिति बेहद नाजुक पड़ाव पर थी। इनमें बेंगलूरु, चेन्नई और हैदराबाद के कुछ 'होप्पिपोला' आउटलेट थे। हमने उन्हें बंद कर दिया क्योंकि इन शहरों में लागत ज्यादा है। गुरुग्राम में साइबरहब में, हमने 'ओ! कैलकटा' को बंद कर दिया।' महामारी के दौरान, बेंगलूरु के रेजीडेंसी रोड पर पुराने लोगों के बीच बेहद मशहूर 'डाउनटाउन पब' भी बंद हो गया। पब अस्थायी रूप से महामारी की पहली लहर के दौरान बंद कर दिया गया और मालिकों ने इस साल इसे फिर से खोलने की योजना बनाई है। इस जगह को बंद करने का फैसला करने वाले इसके मालिक संतोष रवींद्रनाथ कहते हैं, 'हम उस जगह का जीर्णोद्धार कर रहे थे लेकिन फिर दूसरी लहर ने हमें हिला कर रख दिया और हमने इसे बंद करने का फैसला किया।' रवींद्रनाथ के पिता और चाचा ने 1991 में इसकी स्थापना की थी। फेडरेशन ऑफ होटल्स ऐंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस ऑफ इंडिया (एफ एचआरएआई) के संयुक्त मानद सचिव प्रदीप शेट्टी कहते हैं, 'जहां कई रेस्तरां पहले लॉकडाउन से बचने में कामयाब रहे, वहीं दूसरी लहर के दौरान उनमें से 25-30 प्रतिशत को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया।' उनका कहना है कि 50 फीसदी जो भी दोबारा खुल सकते हैं वे घाटे में रहेंगे। एफएचआरएआई 55,000 होटलों और 500,000 रेस्तरां का प्रतिनिधित्व करता है। शेट्टी कहते हैं कि अनिश्चितता के हालात बनने से दूसरे राज्यों के श्रमिकों के वापसी लौटने की वजह से श्रमिकों की कमी हो गई जो अब शहरों में लौटने से डरते हैं। इसके अलावा कारोबार को लेकर अच्छी धारणा न होने, अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की अनुपस्थिति और कॉरपोरेट जगत के कर्मचारियों के घर से काम करने की वजह से भी हालात खराब हुए। हालांकि कुछ ब्रांडों के आउटलेट बंद करने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए अपने व्यापार मॉडल में बदलाव किया है। अपने एशियाई व्यंजनों के लिए मशहूर 'साइड वोक' ने भी खान मार्केट में अपने कारोबार को बंद किया है और मेहरचंद मार्केट के नजदीक इसका एक आउटलेट है जहां से खाना ऑर्डर किया जा सकता है। दिल्ली के कनॉट प्लेस के एन-ब्लॉक में 'पेब्बल स्ट्रीट कैफे' कॉलेज जाने वाले युवाओं के जमावड़े की एक मशहूर जगह है लेकिन पहले लॉकडाउन के दौरान ही यह बंद हो गया। पेब्बल स्ट्रीट कैफे के निदेशक आशीष आहूजा कहते हैं, 'कनॉट प्लेस में हम अपने आसपास प्रतिस्पर्धा की वजह से महामारी से पहले भी संघर्ष कर रहे थे।
