अर्थव्यवस्था में निवेश बहाल होने को लेकर वित्त मंत्रालय उत्साहित है, वहीं निजी क्षेत्र से बड़ा पूंजी निवेश होता देखने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना होगा।अपनी हाल की मासिक समीक्षा में आर्थिक मामलों के विभाग ने कहा कि भारत में निवेश के चक्र की बहाली की राह तैयार है, जिससे विश्व की तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में रिकवरी को बल मिलेगा। विभाग को तेज टीकाकरण से उम्मीदें हैं। आइए कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं। सकल नियत पूंजी सृजन (जीएफसीएफ) वित्त वर्ष 2022 की पहली मिताही में 55 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि एक साल पहले 46.6 प्रतिशत का संकुचन आया था, जिससे यह बहुत बढ़ा हुआ नजर आता है। अगर हम कोविड के पहले की 2019-20 की पहली तिमाही से तुलना करें तो जीएफसीएफ वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में 9.3 प्रतिशत कम है। यह वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में 11 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन एक साल पहले इसमें 8.6 प्रतिशत का संकुचन था और कम आधार पर यह वृद्धि दर्ज की गई है। अगर वित्त वर्ष 20 की दूसरी तिमाही से तुलना करें तो वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में निवेश महज 1.1 प्रतिशत बढ़ा है। अब जीडीपी के प्रतिशत के रूप में जीएफसीएफ देखते हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह घटकर 27.2 प्रतिशत रह गया है, जो पहले के वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में 31.2 प्रतिशत था। बहरहाल वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में यह थोड़ा बढ़कर 28.4 प्रतिशत पर पहुंचा है, लेकिन यह अभी भी 30 प्रतिशत से कम है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन को देखें तो आधार सामान्य होने के साथ सितंबर में इसकी वृद्धि में 1.3 प्रतिशत की गिरावट आई, जो इसके पहले महीने में 20 प्रतिशत के करीब था। ध्यान देने वाली बात है कि पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन पिछले साल सितंबर में 1.2 प्रतिशत संकुचित हुआ था, इस हिसाब से आधार अब भी कम था। बहरहाल एसबीआई रिसर्च ने प्रोजेक्ट टुडे के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि वित्त वर्ष 21 में नई घोषणाओं के बाद चालू वित्त वर्ष के अब तक के 7 महीनों में 7.99 लाख करोड़ रुपये निवेश की घोषणाओं के बाद उम्मीद बढ़ी है। निजी निवेश का हिस्सा इसमें कहा गया है कि नई परियोजनाओं में निवेश का करीब 64 प्रतिशत निजी क्षेत्र से आ रहा है, और 36 प्रतिशत या 2.8 लाख करोड रुपये सरकार की ओर से। उल्लेखनीय है कि अक्टूबरको समाप्त पिछले 3 महीने में कुल निवेश में सरकार का हिस्सा 40 प्रतिशत से ऊपर रहा है। जुलाई में 988 परियोजनाओं की घोषणा के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद नई परियोजनाओं की घोषणा में कमी आई है। बहरहाल परियोजनओं में निवेश की गई राशि 1 लाख करोड़ रुपये से ऊपर बनी रही। एसबीआई रिसर्च के मुताबिक बड़े सेक्टरों में परियोनजाओं की घोषणा में बेसिक केमिकल्स, आयरन और स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स, गैर परंपरागत ऊर्जा, रोडवेज, रियल एस्टेट आदि शामिल है। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज में मुख्य अर्थशास्त्री मोतीलाल ओसवाल ने भारत में निवेश के तरीके को लेकर दिलचस्प दृष्टिकोण पेश किया। उन्होंनो कहा कि अन्य प्रमुख देशों के विपरीत भारत मेंं कॉर्पोरेट सेक्टर की घोषणाएं कुल निवेश की महज आधी हैं। वहीं सकर पूंजी सृजन (जीसीएफ) में परिवारों की हिस्सेदारी 35-40 प्रतिशत है। सीएमआईई के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सितंबर तक निजी निवेश कम था। देखो और इंतजार करो केंद्र सरकार पूंजीगत व्यय कर रही है। वहीं राज्यों का पूंजीगत व्यय बजट की तुलना में कम है क्योंकि वे राजस्व की आवक पर नजर बनाए हुए हैं, जिससे राजकोषीय घाटे का अनुपात प्रभावित होगा। सबनवीस ने कहा, 'साल भर के हिसाब से हम उम्मीद कर रहे हैं कि पूंजी सृजन अनुपात 27.1 प्रतिशत पर स्थिर रहेगा, जैसा कि वित्त वर्ष 21 में था। यह मामूली रूप से बढ़कर 27.5 हो सकता है, अगर चौथी तिमाही में तेजी रहती है।' इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर को उम्मीद है कि पूंजी का उपयोग सुधरेगा। वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में सुधरकर 68 प्रतिशत हुआ है, जो पहली तिमाही में 60 प्रतिशत था। मांग मजबूत होने पर अगली दो तिमाहियों में यह 72 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के आर्थिक सलाहकार सेवा के लीडर रानेन बनर्ज ने कहा कि क्षमता का उपयोग अभी भी 70 प्रतिशत के आसपास है और तमाम उद्योग दरअसल अभी इनपुट की कमी की वजह से क्षमता से कम पर चल रहे हैं।
