बीएस बातचीत साल 2021 में भारतीय शेयर बाजार की चाल लगभग एकतरफा रही। इक्विरस के प्रबंध निदेशक अजय गर्ग ने पुनीत वाधवा से बातचीत में उम्मीद जताई कि अगले कुछ वर्षों के दौरान डेट बाजार में काफी गतिविधियां दिख सकती हैं लेकिन वे काफी हद तक ब्याज दरों के रुख पर निर्भर करेंगी। पेश हैं मुख्य अंश: साल 2022 में बाजार परिदृश्य को लेकर आपका क्या नजरिया है? महज एक छोटी समयावधि में बाजार के रुख को लेकर कुछ भी अनुमान जाहिर करना मुश्किल है। लेकिन यह देखकर हमें आश्चर्य नहीं होगा कि 2022 में सूचकांक एक दायरे में सीमित रहेगा क्योंकि मौजूदा गुणक पर आय बढ़ रही है। पूंजीगत वस्तु और रियल एस्टेट जैसे कुछ क्षेत्रों में जहां सुधार नहीं दिखा था वहां अब तेजी दिखेगी। आप इन क्षेत्रों में कई तरीकों से खेल सकते हैं जिसमें सीधे तौर पर अथवा अप्रत्यक्ष तरीके से लाभ हासिल करना शामिल है।क्या पेटीएम की सूचीबद्धता से प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजारों में खुदरा निवेशकों का आत्मविश्वास कमजोर हुआ है? हमने काफी समझदारीपूर्ण व्यवहार देखा है। वास्तव में बाजार के एक बड़े हिस्से ने उसमें भाग नहीं लिया। हां, पेटीएम जैसे बड़े निर्गम का प्रदर्शन अच्छा न होने से निवेशकों को झटका लगा है लेकिन मैं उसके संस्थापकों के उस बयान से पूरी तरह सहमत हूं कि यह सब एक सफर का हिस्सा है जो जारी रहेगा।क्या निजी इक्विटी (पीई) और वेंचर कैपिटल (वीसी) फंडों का प्राथमिक बाजार में उत्साह बरकरार है? पेटीएम के अलावा 3 अन्य आईपीओ भी थे जिनका प्रदर्शन सूचीबद्ध होने के बाद काफी दमदार रहा। चूंकि द्वितीयक बाजार का अच्छा जारी है इसलिए फिलहाल हमें नहीं दिख रहा है कि कोई अपनी योजना से बिल्कुल पीछे हट रहा है। मैं समझता हूं कि यह पीई/वीसी निकास के लिए सबसे अच्छा साल रहा है। वे अपने पोर्टफोलियो को लेकर काफी उत्साहित रहे हैं और ताजा निवेश की संभावनाएं भी तलाश रहे हैं।क्या आपको लगता है कि कंपनियां अब निवेश के लिए प्राथमिक बाजार के अलावा अन्य विकल्पों पर गौर कर रही हैं? अच्छे प्राथमिक बाजार के अलावा कंपनियों की नजर ब्याज दरों में नरमी के फायदे पर भी है। वे काफी सक्रिय तौर पर बॉन्ड एवं कॉरपोरेट ऋण कार्यक्रम पर गौर कर रही हैं। हमने इस प्रभाग को सही समय पर स्थापित किया था। अगले कुछ वर्षों के दौरान डेट श्रेणी में काफी गतिविधियां दिखने के आसार हैं जो काफी हद तक ब्याज दरों के रुख पर निर्भर करेंगी।ब्याज दरों में वृद्धि और फर्म कमोडिटी में तेजी के बीच भारतीय उद्योग जगत संभावनाएं किस प्रकार तलाश रहा है? मुद्रास्फीति वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बन गया है। अधिकतर केंद्रीय बैंक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि मुद्रास्फीति का रुख कैसा है और इसमें तेजी कब तक बरकरार रहेगी। क्या इससे निपटने के लिए ब्याज दरों में कटौती करने की जरूरत तो नहीं। मुद्रास्फीति मुख्य रूप से तेल और कमोडिटी की कीमतों पर आधारित हैं जो वैश्विक महामारी के कारण आपूर्ति शृंखला में हुए व्यवधान के कारण पैदा हुई है। वैश्विक महामारी का जोखिम अब भी बरकरार है और वैश्विक वृद्धि को ढांचागत सहारा मिलना अभी बाकी है। भारत शेष दुनिया से अलग नहीं है। उत्पादक अपने मार्जिन के दबाव को आगे सरकारने के फिराक में हैं।क्या बाजार दरों में वृद्धि के लिए तैयार है? हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर ब्याज दरों में वृद्धि के आसार फिलहाल कम हैं लेकिन आगामी नीतियों में नकदी प्रवाह की स्थिति सामान्य किए जाने और रिवर्स रीपो व रीपो के बीच अंतर को कम किया जाना चाहिए। वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में बढ़ोतरी किए जाने के बाद रुपये पर कुछ दबाव दिख सकता है। हालांकि भारत के पास 640 अरब डॉलर से अधिक का भंडार हैं और भारतीय उद्योग जगत के बहीखाते की स्थिति पहले से ही मजबूत है। परिसंपत्ति गुणवत्ता संबंधी चिंताएं काफी हद तक कम हो चुकी हैं और बैंकिंग प्रणाली में भी पर्याप्त नकदी प्रवाह है। भारतीय बाजार फिलहाल दमदार स्थिति में है और राजकोषीय स्थिति भी स्थिर है। ऐसे में दरों में बढ़ोतरी की जा सकती है।
