अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने प्रधानमंत्री को लिखे एक खुले पत्र में मनरेगा के लिए अतिरिक्त धन आवंटन की मांग की है, जिससे काम की मांग पूरी की जा सके, जैसा कि कानून में प्रावधान है। अर्थशास्त्रियों ने पत्र में कहा है, 'यह (अतिरिक्त धन का आवंटन) भारी मांग के मुताबिक होगा और कुल मिलाकर आर्थिक रिकवरी और भारी कठिनाई से गुजर रहे सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों पर इसका अच्छा असर रहेगा।' ज्यां द्रेज, प्रभात पटनायक, डॉ महेंद्र देव, प्रणव सेन, हिमांशु सहित कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने पत्र में कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महामारी के पहले साल में मनरेगा में उपलब्ध कराए गए काम की वजह से अहम सुरक्षा मिलने के बावजूद इस योजना में धन का आवंटन 30 प्रतिशत कम कर दिया गया, जबकि 2020 में ग्रामीण परिवारों ने महामारी के पहले वर्ष 2020 में इसके पहले साल की तुलना में 41 प्रतिशत अतिरिक्त काम की मांग की थी। पत्र में कहा गया है, 'धन की कमी की वजह से काम की मांग घट रही है और कामगारों की मजदूरी के भुगतान में देरी हो रही है। यह अधिनियम का उल्लंघन है और इसकी वजह से आर्थिक रिकवरी में भी संकुचन आ रहा है।' इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 में इस कार्यक्रम के लिए 73,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, जिसमें 17,451 करोड़ रुपये पहले के साल की लंबित देनदारियों के भुगतान में खर्च होने थे। पत्र में कहा गया है, 'आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 15 नवंबर, 2021 तक इस कार्यक्रम में 10,000 करोड़ रुपये की कमी थी और 24 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों का बैलेंस ऋणात्मक था और उन्होंने केंद्र से मिले हुए धन की तुलना में ज्यादा खर्च किया था।' इसमें कहा गया है कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि उल्लेखनीय मांग है जो पूरी नहीं हो रही है और 13 प्रतिशत परिवारों ने काम की मांग की, लेकिन उन्हें काम नहीं मिला।
