संसद में मंगलवार को निजी डेटा सुरक्षा विधेयक पेश किया जा सकता है, जो 2018 से बन रहा है। इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के कुछ सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा है। उनकी असमति की वजह कानून के अंतिम मसौदे में सरकार को दी गई व्यापक छूट है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जयराम रमेश, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा, गौरव गोगोई, बीजू जनता दल के अमर पटनायक और तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन और महुआ मोइत्रा ने समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी को असहमति नोट दिया है। समिति में शामिल विपक्षी दलों के तमाम सदस्यों को चिंता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इससे राज्य सरकारों की शक्तियों का अतिक्रमण होगा। इस तरह की आपत्तियां तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल के सदस्यों के असहमति नोट में नजर आया। जेपीसी की ओर से लोकतांत्रिक, पारदर्शी व विमर्श का तरीका अपनाए जाने की प्रशंसा करते हुए कांग्रेस सांसद रमेश ने अपनी असहमति नोट में कहा है कि सरकार को असीमित शक्तियां नहीं दी जानी चाहिए, जैसा कि प्रस्तावित कानून में किया गया है। गोगोई ने भी यही मसला उठाया है और साथ ही डेटा उल्लंघन के मामले में कंपनियों को दंडित किए जाने वाले खंड को हटाने के औचित्य पर भी उन्होंने सवाल उठाए। गोगोई ने कहा, 'इसके पहले सरकार ने बहुत ज्यादा और कड़े जुर्माने का प्रावधान किया था। जब जुर्माना अधिक रहेगा तो तकनीकी कंपनियां सरकार या उसके नियमों के अनुपालन को बाध्य होंगी। यूरोप और विश्व के अन्य इलाकों में हमने ऐसा देखा है।' इस प्रावधान को अंतिम क्षण हटाए जाने को लेकर समिति में एक राय नहीं थी। इसके पहले के मसौदा पीडीपी विधेयक में जुर्माने की राशि 5 से 15 करोड़ रुपये या उस इकाई के वैश्विक कारोबार के 2 से 4 प्रतिशत तक किए जाने का प्रावधान था, जो अपराध की प्रकृति के मुताबिक तय किया जाना था। गोगोई ने अपने असहमति नोट में कहा है कि समिति को राष्ट्र हित के नाम पर सरकार को सर्विलांस का अधिकार दिए जाने के बजाय इस मसले पर और ज्यादा चर्चा व परामर्श करने की जरूरत थी। रमेश ने कहा है कि पीडीपी विधेयक, 2019 में 'यह माना गया है कि निजता का संवैधानिक अधिकार वहीं है, जहां निजी कंपनियां परिचालन या गतिविधियां चला रही हैं। सरकार और सरकारी एजेंसियों को अलग विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग माना गया है, जिनके कामकाज और गतिविधियां हमेशा जनहित में होती है और व्यक्तिगत निजता को कमतर माना गया है।' सांसद द्वारा खास विरोध प्रस्तावित कानून की धारा 35 को लेकर है, जिसे 2018 से बनाया जा रहा है। रमेश ने अपने असहमति नोट में कहा है कि यह धारा केंद्र सरकार को 'निरंकुश शक्तियां' प्रदान करती है, जिससे वह किसी सरकारी एजेंसी को पूरे अधिनियम से छूट दे सकती है।
