नागरिक उड्डन मंत्रालय ने एयरलाइंस और ग्राउंड हैंडलिंग (जीएच) कंपनियों के लिए मई, 2022 तक 12 साल से पुराने एयरपोर्ट उपकरणों को हटाना और कम ईंधन खर्च करने वाले वैकल्पिक उपकरणों का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया है। कंपनियों ने मंत्रालय की हरित पहल का स्वागत किया है, वहीं यह भी कहा है कि इसे लागू करने के लिए कम वक्त दिया गया है। उनका तर्क है कि महामारी के दौर में उड्डयन क्षेत्र वित्तीय चुनौतियों के दौर से गुजर रहा है, जिसे देखते हुए और वक्त दिया जाना चाहिए। ग्राउंड हैंडलिंग में चेक-इन, यात्रियों की बोर्डिंग, सामान लादना और उतारना, विमान की सफाई आदि का काम आता है। घरेलू एयरलाइंस को खुद इसकी हैंडलिंग की अनुमति दी गई है, वहीं विदेशी कंपनियां जीएच कंपनियों पर निर्भर हैं। एयरलाइंस और जीएच कंपनियां मोटर चालित और बगैर मोटर चालित उपकरणों जैसे लो-फ्लोर बसों, स्टेप लैडर्स, पुशबैक टग्स, कार्गो लोडर्स, बैगेज ट्रैक्टर्स, पैलेट डॉलीज, टो बार्स के अलावा अन्य शामिल हैं। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक नवंबर के आदेश में कहा है, 'यह फैसला किया गया है कि सालाना 35 लाख से ज्यादा यात्रियों की आवाजाही का संचालन करने वाली जीएच एजेंसियां और एयरलाइंस ग्राउंड सपोर्ट उपकरणों और वाहनों के न्यूनतम मानक का पालन करेंगी।' यह आदेश देश के करीब 25 बड़े हवाईअड्डों पर लागू होगा। आदेश के मुताबिक यह सुनिश्चित करने का फैसला किया गया है कि इंटरनैशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के एयरपोर्ट हैंडलिंग नियमावली के मुतााबिक अत्याधुनिक उपकरणों व बेहतरीन गतिविधियों का संचालन हो सके और साथ ही हवाईअड्डों पर पर्यावरण अनुकूल माहौल बनाया जा सके। सेल्फ हैंडलिंग करने वाली सभी जीएच कंपनियों और एयरलाइंस को ग्राउंड सपोर्ट उपकरणों (जीएसई) और वाहनों के मामले में 6 महीने के भीतर कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना होगा। आदेश के मुताबिक जीएसई की अधिकतम उम्र की सीमा 12 साल होगी। इसमें कहा गया है कि किसी भी स्थिति में रिफर्बिश्ड उपकरणों को भी अनुमति नहीं दी जाएगी। सरकार यह भी चाहती है कि कंपनियां बिजली से चलने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करें या ऐसे डीजल वाहनों का इस्तेमाल करें, जो भारत-6 उत्सर्जन मानकों का पालन करते हों। एक एयरलाइन के प्रवक्ता ने कहा, 'दिशानिर्देशों और अपने उपकरणों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने के बाद हम मंत्रालय को व्यवहार्यता रिपोर्ट भेजेंगे। सतत विकास को लेकर इंडिगो प्रतिबद्ध है और हमने पहले ही तमाम हवाईअड्डों पर डीजल संचालित जीएसई की जगह इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।' जीएच एजेंसी एआईएसएटीएस के निदेशक आर रमन ने कहा, 'इन मानकों के लिए हमें कई करोड़ रुपये निवेश की जरूरत होगी। पुशबैक ट्रैक्टर्स, या लो लोडर्स (पैलेट लोडर्स) के ऑर्डर करने होंगे। सामान्यतया ऑर्डर करने के बाद ये 6 से 8 महीने बाद मिलते हैं। इस नीति का मकसद सही है। देश में हर हवाईअड्डे की अपनी नीति है और इस तरह से साझा मानक बनाने से मदद मिलेगी। लेकिन इसे लागू करने की समय सीमा बढ़ाए जाने की जरूरत है, जिससे एयरलाइंस और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनियां पूंजी व्यय करके लागू किए जाने वाले इन निर्देशों की शर्तें पूरी कर सकें।' एआईएसएटीएस एयर इंडिया की दो जीएच कंपनियों में से एक है, जो 5 हवाईअड्डों पर काम करती है। इसका अधिग्रहण एयरलाइंस के साथ टाटा समूह ने कर लिया है। एआईएयरपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड अन्य हवाईअड्डों पर काम देखती है। इसके सीईओ सामबाबू सीएच ने कहा कि जीएच एजेंसियों की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने आदेश जारी किया है, लेकिन आर्थिक संकट को देखते हुए इसकी समय सीमा 6 माह और बढ़ाने की मांग की है। एक जीएच एजेंसी सेलेबी एविएशन होल्डिंग के भारत के सीईओ मुरली रामचंद्रन ने कहा, 'कुल मिलाकर यह सही नीति है और इससे उपकरणों का मानकीकरण होगा और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक बनाया जा सकेगा। इससे प्रदूषण घटाने में मदद मिलेगी। हम इस पहल का स्वागत करते हैं। हालांकि कुछ चुनौतियां हैं। इसमें से एक कुछ विशेष उपकरण के इलेक्ट्रिक संस्करण उपलब्ध न होना है। दूसरा, पूरे सेक्टर में बदलाव करने में वक्त लगेगा। इन बिंदुओं को लेकर ग्राउंड हैंडलिंग एसोसिएशन का सरकार के समक्ष एक प्रतिनिधिमंडल भेजेगा।' उद्योग के सूत्रों ने यह भी कहा कि पर्याप्त संख्या में चार्जिंग प्वाइंट भी मुहैया कराना होगा, जिससे बिजली से चलने वाले ग्राउंड हैंडलिंग उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सके। लो-लोडर्स जैसे कुछ भारी उपकरणों को रिफर्बिश भी किया जा सकता है और मूल उपकरण के विनिर्माता के मानकों के मुताबिक मरम्मत पर इसे 20 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। एक सूत्र ने कहा कि संभवत: यह नीति इस तरह के महंगे उपकरणों के इस्तेमाल की अनुमति देगी, जिन्हें रिफर्बिश किया जा सकता है और ओईएम द्वारा इनका इस्तेमाल सुरक्षित है।
