भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति (पीएमएसी) ने सार्वजनिक प्रारंभिक निर्गम (आईपीओ) ढांचे से संबंधित नए प्रस्ताव आमजन के मशविरों और टिप्पणियों के लिए जारी किए हैं। पीएमएसी की मंशा आईपीओ के घोषित उद्देश्यों को लेकर नियमन कड़े करने की है। इच्छा यह भी है कि अधिग्रहण के लिए उद्देश्य से फंड जुटाने की सीमा तय की जाए और सामान्य कारोबारी उद्देश्यों (जीसीपी) के लिए जुटाए गए फंडों की निगरानी की जाए। उसका यह सुझाव भी है कि प्री इश्यू अंशधारकों (आईपीओ जारी होने के पहले शेयर खरीद का अवसर) के लिए लॉक इन अवधि बढ़ाई जाए तथा ऑफर फॉर सेल (ओएफएस जहां प्रवर्तक अपने शेयर सीधे जनता को बेच सकता है) की सीमा तय की जाए। सैद्धांतिक तौर पर इन प्रस्तावों के पीछे इरादे नेक हैं। इससे यह सुनिश्चित होना चाहिए कि अंशधारकों की भागीदारी बढ़े। फंड के अंतिम उपयोग का स्पष्ट परिभाषित उद्देश्य निवेशकों को सूचित निर्णय लेने और इस तरह पूंजी के संरक्षण में मदद कर सकता है। दूसरी ओर, इसकी वजह से नए दौर की तकनीक पर आधारित कंपनियों के लिए भविष्य की कारोबारी नीति तैयार करते समय यह लचीलेपन की कमी के रूप में भी सामने आ सकता है। इससे निजी इक्विटी (पीई) और वेंचर कैपिटल (वीसी) फर्म के प्रतिफल की गति भी धीमी हो सकती है। फिलहाल यदि कोई प्रवर्तक पोस्ट इश्यू पूंजी का 20 फीसदी रखता है तो 18 महीने की लॉक इन अवधि होती है। इसे न्यूनतम प्रवर्तक योगदान (एमपीसी) माना जाता है। अन्य प्री इश्यू अंशधारक जो आईपीओ आने के कम से कम एक वर्ष पहले से निवेश कर रहे हों वे ऑफर फॉर सेल के जरिये अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच सकते हैं। ऐसे इश्यू में जहां किसी के पास 20 फीसदी हिस्सेदारी नहीं हो, वहां कोई बाधा नहीं है। नया प्रस्ताव यह है कि ऐसे मामलों में जहां किसी के पास 20 फीसदी एमपीसी नहीं हो, अंशधारकों को अपनी हिस्सेदारी का 50 फीसदी से अधिक ऑफर फॉर सेल के जरिये बेचने की इजाजत नहीं होगी। शेष हिस्सेदारी बेचने के लिए छह महीने की लॉक इन अवधि भी होगी। एंकर निवेशकों के लिए भी 30 दिन के बजाय 90 दिन की लॉक इन अवधि हो सकती है। लॉक इन अवधि बढ़ाने से खुदरा निवेशकों को राहत और आत्मविश्वास मिलेगा। जैसा कि उल्लिखित होता है आईपीओ का उद्देश्य अपनी वृद्धि के लिए अधिग्रहण के जरिये फंड बढ़ाना होता है जहां विशिष्ट लक्ष्यों का उल्लेख नहीं होता। यह स्टार्टअप के लिए खासतौर पर सही है जो अक्सर अधिग्रहण के जरिये आगे बढ़ते हैं। पीएमएसी को लगता है कि जब लक्ष्य अपरिभाषित हों तो निवेशकों के लिए जोखिम का आकलन मुश्किल होता है। मसौदे में सामान्य कारोबारी उद्देश्यों के लिए जुटाए जाने वाले फंड की एक अपरिभाषित श्रेणी भी है। मौजूदा नियमन के मुताबिक 25 फीसदी हिस्सेदारी जीसीपी को आवंटित की जा सकती है। नए प्रस्ताव के मुताबिक जीसीपी और अपरिभाषित अधिग्रहण के लिए जुटाए गए फंड को आईपीओ के आकार के 35 फीसदी तक सीमित होना चाहिए। यदि विशिष्ट अधिग्रहण लक्ष्यों का उल्लेेख हो तो कोई सीमा नहीं होगी क्योंकि निवेशक जोखिम का आकलन करने की स्थिति में होंगे। पीएमएसी का प्रस्ताव है कि जीसीपी फंड की निगरानी तिमाही रिपोर्ट के माध्यम से हो। यह थोड़ा उलझा हुआ है क्योंकि जीसीपी अपने आप में परिभाषित नहीं है। उसकी स्पष्ट परिभाषा की जरूरत है जो बाजार की विविधता को देखते हुए कठिन होगा। इन प्रस्तावों का उद्देश्य आईपीओ निवेशकों के हितों की रक्षा करना है लेकिन ये नए जमाने की तकनीक आधारित कंपनियों को बाधित करेंगे जो अक्सर कम समय में अधिग्रहण पर निर्भर करती हैं। यदि शुरुआती निवेशकों को प्रतिफल के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है तो यह स्टार्टअप जगत को सतर्क करने वाला हो सकता है। नियामक को इन प्रस्तावों पर सावधानीपूर्वक विचार करके निवेशक संरक्षण और सामान्य कारोबारी प्रक्रिया के बीच संतुलन कायम करना चाहिए।
