भारत का रसोई गैस पर सालाना सब्सिडी का बोझ 14,073.35 करोड़ रुपये बजट अनुमान (बीई) के भीतर बने रहने की संभावना है, भले ही तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) के अंतरराष्ट्रीय दाम में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलपीजी की औसत कीमत (अप्रैल से अक्टूबर के बीच) वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान पूरे साल की औसत कीमत की तुलना में 52.49 प्रतिशत अधिक रही है। 2021-22 के बजट आवंटन का पालन करना इसलिए संभव है, क्योंकि केंद्र सरकार इस समय रसोई गैस पर कोई सब्सिडी नहीं दे रही है और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों का बोझ सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों पर डाल दिया है। रसोई गैस की सब्सिडी के लिए बजट में 12,480 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जो घरेलू रसोई गैस उपभोक्ताओं के खाते में डाला जाना है। इसके अलावा पूर्वोत्तर इलाकों के ग्राहकों के लिए 450 करोड़ रुपये अतिरिक्त सब्सिडी का इंतजाम किया गया है। साथ ही असम गैस क्रैकर कांप्लेक्स के लिए 1,078.35 करोड़ रुपये फीडस्टॉक सब्सिडी और 65 करोड़ रुपये परियोजना प्रबंधन व्यय का प्रावधान किया गया है। यह एक दशक में सबसे कम रसोई गैस सब्सिडी आवंटन है। केंद्र सरकार ने रसोई गैस सिलिंडरों की बढ़ी ढुलाई लागत पर दी जाने वाली सब्सिडी जारी रखने का फैसला किया है, जिससे दूरस्थ इलाकों में कीमतों में बहुत ज्यादा अंतर न आए। फरवरी, 2021 में जब रसोई गैस सब्सिडी के लिए बजट अनुमान लगाया गया था तो सऊदी अरामको भारत को 529.80 डॉलर प्रति टन के भाव एलपीजी बेच रही थी। नवंबर, 2021 में अब यह कीमत 48 प्रतिशत से ज्यादा बढ़कर 784.43 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी है। पिछले 4 साल की तुलना में सऊदी अरामको भारत को इस समय सर्वाधिक कीमत पर एलपीजी बेच रही है। इस मामले के जानकार अधिकारियों के मुताबिक ओएमसी को 14.2 किलो के घरेलू सिलिंडर पर अक्टूबर, 2021 में प्रति सिलिंडर 100 रुपये के करीब नुकसान उठाना पड़ा है। उस समय एलपीजी की अंतरराष्ट्रीय कीमत 664.27 डॉलर प्रति टन थी और रसोई गैस सिलिंडर की कीमत 899.50 रुपये प्रति सिलिंडर थी। 6 अक्टूबर से रसोई गैस की कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ है और इसकी कीमत 63.35 रुपये प्रति किलो है। वहीं इसकी तुलना में वाणिज्यिक एलपीजी सिलिंडर की कीमत 6 अक्टूबर की कीमत 1734 रुपये प्रति सिलिंडर थी, जो अब बढ़कर 1 नवंबर से 2,000.50 रुपये प्रति सिलिंडर हो गई है। अक्टूबर में इसकी कीमत 91.3 रुपये प्रति किलो थी, जो नवंबर में 105.26 रुपये किलो हो गई है। एक घरेलू रेटिंग एजेंसी के विश्लेषक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, 'निश्चित रूप से अंडर रिकवरी है और यह अब 100 रुपये प्रति सिलिंडर से ज्यादा है।' अभी यह साफ नहीं है कि तेल कंपनियां इस घाटे में से कितनी राशि केंद्र सरकार से हासिल कर पाएंगी। प्रत्यक्ष नकदी अंतरण (डीबीटी) की व्यवस्था लागू किए जाने के पहले ओएमसी ग्राहकों को छूट पर रसोई गैस सिलिंडर बेचती थीं। उसके बाद अंडर रिकवरी के एवज में वे केंद्र से मुआवजे की मांग करती थीं। यह बजट आवंटन का हिस्सा होता था। लेकिन डीबीटी के बाद तेल कंपनियां ग्राहकों को पूरे दाम पर सिलिंडर बेचने लगीं और केंद्र सरकार सब्सिडी की राशि ग्राहकों को सीधे उनके खाते में हस्तांतरित करती थी। इसकी वजह से तेल कंपनियां इससे मुक्त हो गईं कि पहले वे सब्सिडी देंगी, उसके बाद सरकार से संपर्क करके वे इसकी वापसी की मांग करेंगी। अभी कोई स्पष्टता नहीं है कि तेल कंपनियों को जो घाटा हो रहा है, उसकी भरपाई कैसे होगी। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा, 'जब एलपीजी का अंतरराष्ट्रीय दाम कम होता है तब ओएमसी कमाई करती हैं। मूल्य का मौजूदा मसला अंतरराष्ट्रीय वजहों से है। एलपीजी अभी विनियमन के दायरे में वाला जिंस है और सरकार कीमत तय करती है कि देश में इसे किस भाव पर बेचा जाएगा।' उन्होंने कहा कि बाद में रसोई गैस की अंतरराष्ट्रीय कीमत कम होने पर कंपनियां इसकी भरपाई कर सकती हैं।
