भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को कर में छूट मिलना जारी रह सकता है। एक आयकर न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में कहा है कि बोर्ड को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) तथा अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों को अपने अंतर्गत लेने के लिए संस्था के बहिर्नियम में संशोधन (एमओए) करने के आधार पर परमार्थ संस्था के तौर पर पंजीकृत करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। मुंबई स्थित आयकर अपीलीय न्यायाधिकारण (आईटीएटी) ने कर प्राधिकारियों द्वारा बीसीसीआई को परमार्थ संस्था के तौर पंजीकृत करने से इनकार को कानूनी तौर पर गलत करार दिया। न्यायाधिकरण ने कर प्राधिकारियों के उस तर्क को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि क्रिकेट को बढ़ावा देने के नाम पर आईपीएल को पैसा बनाने का धंधा बनाया जा रहा है। न्यायाधिकरण ने कहा, 'खेल के नियमों में सुधार करना, इसमें मनोरंजन को शामिल करना और इसे आर्थिक तौर पर आकर्षक बनाना किसी शुद्घतावादी के लिए दु:स्वप्न हो सकता है लेकिन इन्हीं बातों को परंपरागत और खेल को चर्चित करने के लिए अभिनव विचारों के तौर पर भी देखा जा सकता है।' बीसीसीआई को 1996 में एक परमार्थ संस्था के तौर पर पंजीकृत किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मंजूर किए गए न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति की सिफारिशों को शामिल करने के लिए बीसीसीआई की ओर से एमओए में संशोधन किए जाने के बाद संस्था ने नए सिरे से पंजीकरण के लिए आवेदन दिया था। आयकर के प्रधान आयुक्त ने अपने निर्णय में कहा था कि बोर्ड आईपीएल के संचालन के लिए फ्रेंचाइज समझौतों के जरिये क्रिकेट के खेल का वाणिज्यिक इस्तेमाल करने के लिए परमार्थ उद्देश्य का इस्तेमाल कर रहा है लिहाजा परमार्थ संस्था के तौर पर इसके पंजीकरण को खारिज किया जाता है। बहरहाल, आईटीएटी ने रेखांकित किया कि इन बदलावों को सर्वोच्च न्यायालय से मंजूरी मिली हुई है। उसने यह भी कहा कि बोर्ड सार्वजनिक आयोजन करता है और यह कठोर सार्वजनिक कानून के अधीन है।
