भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रीपो दर को घटाकर 4 फीसदी और रिवर्स रीपो दर को 3.35 फीसदी किए जाने और कोविड-19 के आर्थिक झटके का सामना करने के लिए खुले बाजार परिचालनों के माध्यम से सरकारी ऋण की खरीदारी शुरू करने के बाद से करीब डेढ़ वर्ष से मुद्रा बाजार की दरें अब तक की निचले स्तर पर बनी हुई हैं। लेकिन ब्याज दरें सितंबर के अंत से लघु अवधि में बढ़ रही हैं। धन की तुरंत जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक जिस दर पर एक दूसरे को ऋण देते हैं उसमें बहुत कम वृद्घि देखी जा रही है। मुंबई इंटरबैंक ऑफर्ड रेट (एमआईबीओआर) करीब चार महीने तक 3.80 फीसदी रहने के बाद रिजर्व बैंक की अक्टूबर में हुई मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद 3.86 फीसदी हो गई है। इसका मतलब है कि बैंकों के लिए रात भर के फंड की लागत अब ऊपर जा रही है। तीन महीने का टी-बिल (ट्रेजरी बिल) प्रतिफल 13 सितंबर के 3.27 फीसदी से 18 अक्टूबर की नीलामी में 3.44 फीसदी पर पहुंच गया। 27 अक्टूबर की नीलामी में कट ऑफ एक बार फिर बढ़कर 3.56 फीसदी पर पहुंच गया। इससे पता चलता है कि सरकारी घाटे की लघु अवधि की भरपाई महामारी से अब तक के मुकाबले थोड़ी महंगी हो रही है। यही हाल छह महीने और एक वर्ष के ट्रेजरी बिल का है। जून 2021 में 3.88 फीसदी के साथ एक वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद 364 दिन के टी-बिल प्रतिफल में थोड़ी कमी आई थी। अब इसमें दोबारा से वृद्घि हो रही है। 18 अक्टूबर को यह 3.87 फीसदी पर पहुंच गई। 27 अक्टूबर की नीलामी में यह 4 फीसदी की सीमा से ऊपर चली गई। फिलहाल यह 4.04 फीसदी पर है। परिवर्तनीय दर रिवर्स रीपो (वीआरआरआर) की नीलामी की कट ऑफ दर अक्टूबर के आरंभ के 3.61 फीसदी से बढ़कर महीने के अंत में 3.99 फीसदी हो गई। इससे यह पता चलता है कि बैंक अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास जमा करा रहे हैं और 3.35 फीसदी की रिवर्स रीपो दर से कहीं अधिक अच्छा ब्याज दर हासिल कर रहे हैं, या वीआरआरआर के तहत उच्च ब्याज दर के कारण धीरे धीरे प्रणाली से तरलता गायब हो रही है। यह महामारी का मुकाबला करने के लिए रिजर्व बैंक की ओर से उठाए गए कदमों के फलित होना शुरू होने के बाद उच्च तरलता के लंबे चरण और लघु अवधि के कम ब्याज दरों से एक सुव्यवस्थित उत्थान है। अब लघु अवधि की कम ब्याज दरों के कारण उपभोक्ता ऋणों की दरों में कमी आई है। आवासीय ऋण 6.5 फीसदी (अस्थायी दर) के साथ अब तक के अपने निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। लेकिन इसके कारण एक वर्ष की नियत/सावधि जमाओं की दरें घटकर 4.9 फीसदी रह गई है। लिहाजा, बचत करने वालों की कमाई में भी गिरावट आई है। लघु अवधि की ब्जाज दरों में आई हालिया तेजी से क्या ऋण महंगे हो जाएंगे और शीघ्र ही जमाओं पर अच्छा रिटर्न मिलने लगेगा? विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बारे में बात करना अभी जल्दबाजी होगी और ऐसे कई सारे कारक हैं जिनसे यह निर्धारित होगा कि क्या उधारी दरों में इजाफा होगा। मौद्रिक नीति समिति की सदस्य आशिमा गोयल ने अक्टूबर में हुई बैठक में कहा था कि दीर्घावधि की ब्याज दरों में इजाफा मुश्किल है।
