बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के पूर्व सदस्य नीलेश साठे का कहना है कि सामाजिक सुरक्षा जाल के अभाव में भारत में बीमा अनिवार्यता है, लेकिन सरकार इस क्षेत्र पर भी बड़ा कर लगा रही है, भले ही वित्त क्षेत्र में अन्य को इतने बड़े कर बोझ से अलग रखा गया है। साठे बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट के इंश्योरेंस राउंड में मुख्य वक्ता थे। उन्होंने इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, 'बीमा प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी बहुत ज्यादा है।' साठे ने कहा, 'नागरिकों के लिए किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं होने की वजह से बीमा अब अनिवार्य बन गया है। सभी जरूरी उत्पाद जीएसटी के दायरे से बाहर हैं तो प्रीमियम पर कर क्यों वसूला जाना चाहिए और वह भी बहुत ज्यादा?' उन्होंने कहा कि दुनिया में कहीं भी बीमा प्रीमियम पर इतना ज्यादा कर नहीं वसूला जाता है। अपने भाषण में साठे ने कहा, 'बैंकिंग सेवाओं या म्युचुअल फंड सेवाओं पर इस तरह कर कर नहीं है।' सरकार बीमा नियामक में खाली पड़े पदों को भी तेजी से नहीं भर रही है। उन्होंने कहा, 'आईआरडीएआई पिछले 5-6 महीनों से दिशाहीन है। सदस्यों के पद खाली पड़े हैं। संस्थानों को यदि समयबद्घ तरीके से नहीं चलाया जाएगा तो वे कमजोर हो जाते हैं।' उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र का विकास सिर्फ बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि सभी हितधारकों को इस दिशा में आगे बढऩा होगा। साठे ने कहा, 'सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जीडीपी बढ़े, रोजगार में तेजी आए, और प्रति व्यक्ति आय में सुधार आए।' बीमा कंपनियों की राह में अन्य चुनौतियां भी हैं। ऊंचे सॉल्वेंसी अनुपात को देखते हुए, प्रवर्तकों को हमेशा कंपनी को विकास की दिशा में आगे बढ़ाने से पहले पूंजी सक्षम बनाना चाहिए। वे अपनी मर्जी से निवेश नहीं कर सकते।
