पिछले दिनों भारतीय रिजर्व बैंक ने एक खाते में फर्जीवाड़े की खबर देर से देने के लिए भारतीय स्टेट बैंक पर 1 करोड़ रुपये जुर्माना लगा दिया। उसी दिन आरबीआई ने विभिन्न निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक-इंडिया पर 1.95 करोड़ रुपये जुर्माना लगाने की घोषणा की। एक दशक पहले अप्रैल 2011 में डेरिवेटिव लेनदेन का उललंघन करने के लिए 19 बैंकों पर जुर्माना लगाया गया था। इनमें छह बैंकों में प्रत्येक पर 15-15 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया था जबकि आठ बैंकों को 10-10 लाख रुपये जुर्माना देने के लिए कहा गया। शेष पांच बैंकों पर 5-5 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया था। मार्च 2019 में भी आरबीआई ने 'स्विफ्ट' के क्रियान्वयन एवं इससे संबंधित परिचालन नियंत्रण मजबूत बनाने के संबंध में दिए गए विभिन्न दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए 36 बैंकों पर जुर्माना ठोका था। इनमें पांच बैंकों पर 40-40 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया जबकि सात बैंकों पर 30-30 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया। अन्य आठ बैंकों पर 20-20 लाख रुपये और 16 बैंकों पर 10-10 लाख रुपये जुर्माना किया गया। चालू वित्त वर्ष में बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और भुगतान खंड में परिचालन करने वाली कंपनियों पर 60 करोड़ रुपये से अधिक जुर्माना लगाया जा चुका है। आरबीआई किस आधार पर बैंकों पर जुर्माना लगाता है और जुर्माने की रकम कैसे तय करता है? आरबीआई को छह अधिनियमों के तहत जुर्माना लगाने का अधिकार है। वर्ष 2017 में प्रवर्तन विभाग (ईएफडी) की स्थापना से पहले केंद्रीय बैंक के विभिन्न निगरानी एवं नियामकीय विभाग यह कार्य कर रहे थे। ईएफडी का काम आदेश प्रभावी करने से जुड़े कदमों को निगरानी प्रक्रिया से अलग करना और कंपनियों द्वारा किए उल्लंघनों की पहचान नियम एवं कायदे के अनुसार करना है। ईएफडी ने सबसे पहले अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि वे दूसरे संस्थानों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। अगर इनके द्वारा नियमों में कोई चूक होती है तो यह आरबीआई की स्थापित प्रतिष्ठा के लिए सबसे बड़ा जोखिम पैदा करता है। ईएफडी ने बैंकिंग नियमन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जुर्माना लगाने से जुड़े कदम उठाए। नियमों का उल्लंघन हुआ है या नहीं इस बात की पड़ताल करने के लिए ईएफडी समीक्षा रिपोर्ट, जोखिम समीक्षा रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और केंद्रीय बैंक के निगरानी एवं नियामकीय विभागों की रिपोर्ट का सहारा लेता है। 'कारण बताओ नोटिस' जारी करने से पहले बाजार से मिली खुफिया जानकारी और ग्राहक अनुपालनों पर भी विचार किया जाता है। इससे अगले चरण में एक न्यायिक समिति निर्णय लेती और जुर्माने की राशि तय करती है। हालांकि इससे पहले संबंधित इकाई की बात सुनी जाती है जिसके बाद 'स्पीकिंग ऑर्डर' जारी किया जाता है। इस ऑर्डर में न्यायिक प्राधिकरण अपने निर्णय के पक्ष में तर्क देता है। अंत में आरबीआई एक प्रेस विज्ञप्ति के रूप में जुर्माने की रकम की घोषणा करता है। जिस इकाई पर जुर्माना लगाया गया है उसे आरबीआई के जुर्माना संबंधी नियमों एवं स्टॉक एक्सचेंजों के साथ सूचीबद्धता समझौते का पालन करना होता है। आदेश में उस अवधि का भी जिक्र होता है जिसमें संबंधित इकाई को निश्चित तौर पर जुर्माने का भुगतान करना है। क्या जुर्माने से कोई उद्देश्य पूरा होता है? आरबीआई लगभग हरेक सप्ताह किसी न किसी बैंक और एनबीएफसी पर जुर्माना लगाता रहता है। क्या जुर्माना लगने से संबंधित इकाई की साख पर कोई बट्टा लगता है? क्या जुर्माने की रकम वाकई उन्हें नुकसान पहुंचाती है? वर्ष 2014 में बीएनपी पारिबा ने अमेरिका में प्रतिबंध से जुड़े एक मामले में 8.9 अरब डॉलर भुगतान कर मामला निपटाया था। 2000 की शुरुआत के बाद से यह किसी बैंक द्वारा जुर्माने के तौर पर दी गई सबसे बड़ी रकम है (2008 के वित्तीय संकट से जुड़े मामलों को छोड़कर)। 2012 में वेल्स फार्गो ऐंड कंपनी, जेपी मॉर्गन चेज ऐंड कंपनी, सिटीग्रुप इंक, बैंक ऑफ अमेरिका कॉर्प और अलाय फाइनैंशियल इंक जुर्माने और कर्जधारकों को राहत के तौर पर कम से कम 25 अरब डॉलर रकम देने पर सहमत हुई थे। खुलासा नियमों के कथित उल्लंघन के लिए इन बैंकों ने जुर्माना दिया था। इस शताब्दी के पहले दो दशकों में अमेरिकी बैंक जुर्माने एवं दंड के रूप में करीब 200 अरब डॉलर से अधिक रकम का भुगतान कर चुके हैं। इन मामलों की तुलना में भारत में बैंकों ने जुर्माने के रूप में इतनी छोटी रकम दी है जिसकी तुलना भी नहीं हो सकती है। वर्ष 2013 तक प्रत्येक उल्लंघन के लिए जुर्माने की रकम 20 लाख रुपये तय थी जिसे अब बढ़ाकर अधिकतम1 करोड़ रुपये किया गया है। यह उन नियमों के उल्लंघन के लिए है जिसमें लापरवाही से हुए नुकसान की कोई रकम तय नहीं की जा सकती है। जिन मामलों में एक खास मूल्यांकन निर्धारित किया जा सकता है उनमें जुर्माना दोगुना तक हो सकता है। एफईडी ने अब तक इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं किया है। क्या बैंकिंग प्रणाली इतने अधिक जुर्माने के लिए तैयार है? भारत में बैंक अधिक जुर्माना बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं। खासकर विदेशी बैंकों का कारोबार यहां काफी छोटा है और अधिक जुर्माना लगाया गया तो उन्हें खासी परेशानी हो सकती है। इस समस्या से निपटने का एक रास्ता जुर्माने को इकाई के मुनाफे की रकम के साथ जोडऩा है। इसे और प्रभावी बनाने के लिए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के बजाय केंद्रीय बैंक नियमों के उल्लंघन से जुड़ी बातें सार्वजनिक बना सकता है। जुर्माना लगाने की प्रक्रिया संबंधित इकाइयों को नियमों के बार-बार उल्लंघन करने से रोकने में कारगर होना चाहिए। अगर यह रकम काफी कम रहेगी तो इकाइयां नियमों का पालन करने के बजाय जुर्माना देने के लिए तैयार रहेंगी।
