केंद्रीय बजट से पहले वित्त मंत्रालय ने जोर देकर कहा है कि कर छूटों को चरणबद्घ तरीके से समाप्त किया जाएगा और मध्यावधि में कर की दरों को युक्तिसंगत बनाया जाएगा। मंत्रालय ने ये बातें 1 नवंबर को व्यापार और उद्योग के साझेदारों से सुझाव मांगते हुए कही। उन्हें अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष करों दोनों में नीतिगत बदलावों पर 15 नवंबर तक अपनी सिफारिशों को जमा कराने के लिए कहा गया है। वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने व्यापार और उद्योग संघ को लिखे पत्र में कहा, 'शुल्क ढांचे, दरों में बदलाव करने और प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में आर्थिक न्याय को लागू करते हुए कर आधार को बढ़ाने पर अपने सुझाव भेजें।' वित्त वर्ष 2023 के लिए केंद्रीय बजट 1 फरवरी को पेश किए जाने की उम्मीद है। पत्र में आगे कहा गया है, 'जैसा कि देखा जा सकता है कि मध्यावधि में प्रत्यक्ष करों के संदर्भ में सरकार की नीति प्रोत्साहनों, कटौती और छूटों को समाप्त करने और इसके साथ ही करों की दर को युक्तिसंगत बनाने की है।' फिलहाल, आयकर अधिनियम में विभिन्न प्रकार के सौ से अधिक छूटें और कटौतियां शामिल हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बटज भाषण में कहा था, 'हम आगामी वर्षों में बचे हुए छूटों और कटौतियों की समीक्षा करेंगे और उन्हें युक्तिसंगत बनाएंगे। इसके तहत कर प्रणाली को और अधिक सरल किया जाएगा और कर दर को कम किया जाएगा।' उन्होंने कहा था कि नई सरलीकृत व्यवस्था में उनमें से 70 को समाप्त किया जा चुका है। विभाग ने व्यापार और उद्योग संगठनों को उत्पादन, परिवर्तनों के कीमत राजस्व निहितार्थों के बारे में प्रासंगिक सांख्यिकीय सूचना और अन्य सहायक जानकारियों के साथ अपने सुझाव और विचार भेजने के लिए कहा है। साथ ही अपने तर्कों को न्यायोचित ठहराने के लिए भी कहा है। पत्र में उल्टे शुल्क ढांचे का भी जिक्र किया गया है। इसको लेकर कहा गया है कि किसी जिंस के लिए उल्टे शुल्क ढांचे में सुधार के लिए निवेदन को अनिवार्य तौर पर जिंस के विनिर्माण के प्रत्येक चरण पर मूल्य वर्धन से समर्थन दिया जाना चाहिए।मंत्रालय ने कहा, 'ऐसे सुझावों का परीक्षण कर पाना संभव नहीं होगा जो या तो स्पष्ट तौर पर नहीं दिए गए हों या जिन्हें तर्कों/सांख्यिकीय आंकड़ों के साथ नहीं भेजा गया है।' मंत्रालय ने कर निश्चितता मुहैया कराने और मुकदमेबाजी में कमी लाने के लिए अनुपालनों में कटौती करने के लिए भी सुझाव देने को कहा है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित मामलों का परीक्षण केंद्रीय बजट के हिस्से के तौर पर नहीं किया जाता है क्योंकि इस पर निर्णय जीएसटी परिषद द्वारा लिया जाता है।
