भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) निर्यात के लिए विदेशी मुद्रा में लिए गए ऋण के क्रय-विक्रय की दरों में संशोधन कर उसमें वृध्दि कर सकता है।
इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों के अनुसार निर्यातकों को विदेशी मुद्रा में दिया जाने वाला ऋण माल लेने से पहले और बाद में 180 दिनों के लिए दिया जाता है। वर्तमान में बैंक लाइबोर (लंदन इंटर-बैंक आफर्ड रेट) से 75 आधार अंक अधिक दर पर उधार दे सकते हैं। इन दरों को संशोधित करने की जरूरत है क्योंकि सबप्राइम संकट के कारण विदेशी बाजारों से बैंकों द्वारा ली जाने वाली उधारी की लागत बढ़ गई है।
सबप्राइम संकट के कारण वैश्विक बाजार में डॉलर की तरलता में कमी आई है और ऐसी परिस्थिति में भारतीय बैंकों को विदेशी सहयोगियों से पूर्व निर्धारित तरीके से कोष जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
एक बैंकर के अनुसार, बैंक अपने विदेशी सहयोगी बैंकों से लाइबोर से एक से डेढ़ प्रतिशत अधिक दर पर कोष जुटा रहे हैं। इस संकट से पहले यह दर लाइबोर से 15 से 20 आधार अंक अधिक का हुआ करता था।
विदेशी मुद्रा उधारी के लिए लाइबोर एक अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क है। एक आधार अंक एक प्रतिशत अंक का सौवां हिस्सा होता है। सूत्रों ने बताया कि बैंकों के लिए विदेशी मुद्रा में ऋण आसान बनाने के लिए लाइबोर के स्प्रेड को बढ़ाए जाने की जरूरत है। वर्तमान दरों के अंतर्गत पूरी प्रतिज्ञप्ति अव्यवहार्य लगती है क्योंकि बैंकों को ज्यादा अधिक दरों पर कोष जुटाना होगा और वे उधार दे नहीं सकते क्योंकि ब्याज दरों की ऊपरी सीमा तय है।
विदेशी बाजारों में संकट आने से बैंकों ने निर्यातकों को उधार देना लगभग बंद कर दिया है क्योंकि लागत और लाभ में काफी फर्क है। अधिकांश बैंक आयातकों और निर्यातकों को विदेशी मुद्रा में उधार लेने के लिए हतोत्साहित कर रहे हैं और इसके बजाए उनसे रुपये को डॉलर में बदलने को कह रहे हैं।
फरवरी में, पूरे बाजार में डॉलर की कमी हो गई थी और बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक से डॉलर उधार लेने के लिए रुपये के कोष का विनिमय करना पड़ा था।