तकरीबन 194 अरब डॉलर का आईटी सेवा उद्योग मौजूदा समय में सबसे कठिन चुनौती का सामना कर रहा है। उद्योग में कर्मचारियों की नौकरी छोडऩे की दर ज्यादा है, जिससे सेवाओं की आपूर्ति की तस्वीर भी बिगड़ सकती है। आईटी क्षेत्र में कर्मचारियों की नौकरी छोडऩे की दर आम तौर पर 10 से 20 फीसदी रहती है मगर हाल के समय में यह आंकड़ा 20 से 30 फीसदी तक पहुंच गया है। विश्लेषक और उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि उद्योग में पहले भी इस तरह की समस्या देखी गई थी, खास तौर पर जब उद्योग कमजोर मांग से बाहर निकल रहा था (वैश्विक वित्तीय संकट के बाद)। लेकिन मौजूदा स्थिति से उद्योग पर असर पड़ सकता है। गार्टनर इंक के विश्लेषक और वरिष्ठ निदेशक डी डी मिश्रा ने कहा, 'हमारे पास ग्राहक आ रहे हैं और पूछ रहे हैं कि सेवा प्रदाता क्षेत्र में क्या हो रहा है। कर्मचारियों की नौकरी छोडऩे की दर 20 से 30 फीसदी रहना हैरान करने वाली बात है। अभी तक स्थिति किसी तरह संभली हुई है लेकिन ग्राहकों से सुनने को मिल रहा है कि सेवा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।' मिश्रा ने यह भी कहा कि कंपनियां नई नियुक्तियों के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज की ओर भाग रही हैं लेकिन इससे समस्या का हल नहीं निकलेगा। उन्होंने कहा, 'आप नए लोगों को नियुक्त कर उसे प्रशिक्षित कर सकते हैं लेकिन मांग डिजिटल और क्लाउड परियोजनाओं के लिए आ रही हैं और इस क्षेत्र में दक्ष लोगों को तलाशना आसान नहीं है। कंपनियों को ऐसी परियोजनाओं के लिए फ्रेशर को लंबे समय तक प्रशिक्षित करना होगा।' मामले की गंभीरता का पता इससे चलता है कि इन्फोसिस के मुख्य परिचालन अधिकारी प्रवीण राव ने विश्लेषकों के साथ बातचीत में कहा था कि आईटी उद्योग में प्रतिभा को लेकर इतनी मारा-मारी पिछले तीन दशक में कभी नहीं देखी गई। इन्फोसिस में कर्मचारियों की नौकरी छोडऩे की दर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 20.1 फीसदी रही जो पहली तिमाही में 13.9 फीसदी थी। कर्मचारियों की कंपनी छोडऩे की वजह यह है कि लगभग सभी कारोबार में तकनीक को तेजी से अपनाया जा रहा है जिससे इस क्षेत्र के कुशल लोगों की मांग बढ़ गई है। महामारी ने कंपनियों को डिजिटल माध्यम अपनाने का बढ़ावा दिया है। पेज एक्जिक्यूटिव, इंडिया के प्रमुख अंशुल लोढ़ा ने कहा, 'मझोले से वरिष्ठ स्तर तक के कर्मचारियों की कंपनी छोडऩे की दर 30 से 40 फीसदी है। उद्योग में मांग है, वहीं बड़ी कंपनियां अपना तकनीकी दायरा बढ़ा रही हैं और स्टार्टअप के कारण भी ऐसे लोगों की मांग बढ़ी है।' टीमलीज सर्विसेज की सह-संस्थापक एवं कार्याधिकारी उपाध्यक्ष ऋतुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा कि तकनीक की जब कभी मांग बढ़ती है तो इस क्षेत्र के कुशल कर्मचारियों की कंपनी छोडऩे की दर बढ़ जाती है। स्टार्टअप के तेजी से विकास करने से भी मांग-आपूर्ति शृंखला का संतुलन बिगड़ा है। इस साल सितंबर तक प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल ने भारत में 49 अरब डॉलर निवेश किए हैं, जो 2020 की तुलना में 59 फीसदी अधिक है। इनमें से एक बड़ा हिस्सा स्टार्टअप फर्मों में निवेश किया गया है और ऐसी फर्में तेजी से नई भर्तियां भी कर रही हैं। स्टार्टअप फर्में अपने कर्मचारियों को ईसॉप्स देकर प्रतिभा को बाहर जाने से रोकने का प्रयास करती हैं जबकि आईटी उद्योग में इसका चलन नहीं है। विशेषज्ञों ने कहा कि यह समस्या कुछ हद तक उद्योग ने खुद पैदा की है। हर कोई अल्पावधि के असर को देख रहा और उनकी प्रतिभाओं को आकर्षित करने की क्षमता कम हुई है क्योंकि प्रवेश स्तर पर कर्मचारियों के वेतन में एक दशक से कोई बदलाव नहीं हुआ है। इन्फोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी और मानव संसाधन प्रमुख और मणिपाल यूनिवर्सल लर्निंग के निदेशक मोहनदास पई का मानना है कि मौजूदा स्थिति खुद ही पैदा की गई है। प्रवेश स्तर पर कर्मचारियों का वेतन एक दशक से नहीं बढ़ा है, इसकी वजह से टियर 1 और टियर 2 की प्रतिभाएं आईटी उद्योग में नहीं आना चाहती हैं। उन्होंने कहा, 'आपकी वेतन वृद्घि आपके कंपनी में शुरुआती वेतन से जुड़ी होती है। ऐसे में कर्मचारी कुछ साल बाद दूसरी कंपनी में 40 से 50 फीसदी ज्यादा वेतन के साथ जाना पसंद करते हैं। यही वजह है कि 3 से 5 साल काम करने वाले कर्मचारी बड़ी संख्या में एक कंपनी से दूसरी में जाते हैं।' उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में लागत 100 फीसदी बढ़ी है, अगर आप इससे सहमत हैं तो फिर फ्रेशर का वेतन मुद्रास्फीति के हिसाब से क्यों नहीं बढऩा चाहिए? उद्योग उम्मीद कर रहा है कि कर्मचारियों की कंपनी छोडऩे की दर अगली कुछ तिमाही में कम हो जाएगी मगर विश्लेषकों का कहना है कि मांग बनी रही तो अगले 12 से 24 महीने में कर्मचारियों की नौकरी छोडऩे की दर दो अंक में बनी रहेगी।
