खुदरा महंगाई में कमी आई | इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली October 12, 2021 | | | | |
उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति की दर सितंबर महीने में घटकर 4.35 फीसदी पर आ गई जो कि पांच महीनों का निचला स्तर है। इससे पिछले महीने यह 5.59 फीसदी पर रही थी। आज जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस दौरान खाद्य कीमतों में 0.68 फीसदी की बहुत कम रफ्तार से वृद्घि हुई जबकि इससे पहले यह 3.11 फीसदी की दर से बढ़ रही थी। मुद्रास्फीति की इस रुख ने भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के उदार रुख को न्यायोचित ठहराया है।
हालांकि, सितंबर महीने में ईंधनों में मुद्रास्फीति दर उससे पिछले महीने के 12.94 फीसदी से बढ़कर 13.63 फीसदी हो गई।
खाद्य सामाग्रियों में सितंबर महीने में सब्जियों के दाम में बहुत तेजी से गिरावट आई। सब्जियों के दाम 22.47 फीसदी की दर से घटे जबकि उससे पिछले महीने गिरावट की दर 11.68 फीसदी रही थी। केयर रेटिंग्स ने एक नोट में चेताया है कि सब्जियों के दाम बाद में तेजी से बढऩे लगे हैं जिसे आधार प्रभाव के कारण यहां कवर नहीं किया जा रहा है।
इस दौरान तेलों और वसा की महंगाई 33 फीसदी से बढ़कर 34.19 फीसदी पर पहुंच गई।
इसके अलावा, घरेलू सामान और सेवाओं जिसमें शिक्षा, व्यक्तिगत देखभाल और प्रभाव, मनोरंजन, स्वास्थ्य, परिवहन और संचार आते हैं, की कीमतें इस दौरान 7.78 फीसदी के मुकाबले 5.92 फीसदी की कम दर से बढ़ी है। केयर रेटिंग्स ने कहा कि घरेलू सामानों की मुद्रास्फीति ऐसे समय पर चिंता का विषय है जब अक्टूबर में त्योहारी मांग शुरू होकर दिसंबर में समाप्त होती है।
घरेलू सेवाओं में दबी हुई मांग के कारण मनोरंजन में मुद्रास्फीति की दर 6.48 फीसदी से बढ़कर 7.58 फीसदी पर पहुंच गई।
खाद्य और ईंधन कीमतों से बाहर प्रमुख मुद्रास्फीति सितंबर महीने में 5.8 फीसदी के उच्च स्तर पर बनी रही। पिछले हफ्ते अपनी नीति समीक्षा में एमपीसी ने नीतिगत दरों को पहले के स्तर पर बनाए रखा और अपने उदार रुख को बरकरार रखा। एमपीसी ने वित्त वर्ष 2022 के लिए मुद्रास्फीति की दर के अनुमान को संशोधित कर 5.7 फीसदी से घटाकर 5.3 फीसदी कर दिया। साल की पहली छमाही के लिए मुद्रास्फीति की दर 5.33 फीसदी रही जिसका मतलब है कि यदि रिजर्व बैंक के अनुमान को सच साबित होना है तो इसमें थोड़ी और गिरावट आनी चाहिए।
एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 5.1 फीसदी की दर का ठीक ही अनुमान लगाया था। उस तिमाही में दर 5.08 फीसदी रही थी।
इससे आगे, एमपीसी का अनुमान है कि वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में दर घटकर 4.5 फीसदी पर आएगी जिसके बाद चौथी तिमाही में बढ़कर 5.8 फीसदी पर पहुंच जाएगी।
हालांकि, पेट्रोलियम सहित वैश्विक जिंस कीमतों में वृद्घि से समस्या उत्पन्न हो सकती है। मौद्रिक नीति का वैश्विक जिंस कीमतों पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। बार्कलेज में भारत के लिए मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बजोरिया ने कहा, 'कुल मिलाकर हम उम्मीद कर रहे हैं कि वैश्विक जिंस कीमतों की बढ़ी हुई कीमत भारत के आयातों पर दबाव डालता रहेगा जिससे आगामी महीनों में धीरे धीरे इसका असर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति में फैलता हुआ नजर आएगा।' नाइट फ्रैंक इंडिया में मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा प्रमुख और ईंधन मुद्रास्फीति के उच्च स्तर पर बने रहना चिंता की बात है।
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