शानदार संकेत | संपादकीय / October 10, 2021 | | | | |
सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया के लिए टाटा समूह की 18,000 करोड़ रुपये की बोली मंजूर करने के लिए सरकार बधाई की हकदार है। एयर इंडिया की बिक्री भारत में निजीकरण का पुराना मुद्दा रहा है। एक दशक से भी पहले इंडियन एयरलाइंस संग विलय होने के बाद से ही 'राष्ट्रीय एयरलाइन' की हालत बिगड़ी हुई थी। नागरिक उड्डयन क्षेत्र में इसकी मौजूदगी ने बाजार को काफी प्रभावित किया। दरअसल सरकारी सब्सिडी के दम पर यह घाटे के बावजूद चलती रही जिसका असर निजी एयरलाइंस पर देखा गया। करदाताओं के पैसे को सरकार पिछले दशक से ही एयर इंडिया रूपी खंदक में डालती रही है। इसके बावजूद इसकी बाजार हिस्सेदारी लगातार कम होती गई और ब्रांड मूल्य भी घटता गया। टाटा संस ने पूर्ण स्वामित्व वाली अपनी अनुषंगी इकाई टैलेस के जरिये एयर इंडिया की खरीद के लिए 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई जिसमें एयरलाइन पर बकाया कुछ कर्ज की देनदारी भी शामिल है। एयर इंडिया पर 31 अगस्त, 2021 तक कुल 61,562 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया था और बोलीकर्ता को इसमें से 15,300 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। इसके अलावा टाटा को एयर इंडिया के बेड़े में पट्टे पर शामिल 42 ड्रीमलाइनर विमानों के लिए 9,185 करोड़ रुपये की पूंजीगत देनदारी भी करनी होगी। मुनाफे में चल रहे कई कारोबारों एवं परिसंपत्तियों को पहले ही अलग कर लिए जाने और एयरलाइन के करीब 12,000 कर्मचारियों को कम-से-कम एक साल तक भुगतान की भी जिम्मेदारी होने से टाटा की इस बोली को काफी उदार कहा जा सकता है।
हालांकि टाटा समूह और उसके कर्ताधर्ता रतन टाटा की भारत से संचालित अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर दोबारा दबदबा कायम करने की वर्षों पुरानी मंशा को देखते हुए इस पर आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए। दरअसल टाटा घराने के ही जेआरडी टाटा ने 1932 में भारत की पहली एयरलाइन के तौर पर टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी लेकिन 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। इसके बावजूद एयर इंडिया को लेकर टाटा समूह के मन में हमेशा एक तरह का लगाव देखा जाता रहा और बोली जीतने के बाद रतन टाटा का 'वेलकम बैक' वाला ट्वीट इसकी तस्दीक भी करता है। हालांकि टाटा समूह विमानन क्षेत्र में दो अन्य एयरलाइंस-विस्तारा और एयर एशिया का संचालन पहले से ही कर रहा है। असल में अब टाटा के पास इन दो एयरलाइंस के अलावा एयर इंडिया और उसकी किफायती सेवा एयर इंडिया एक्सप्रेस की भी कमान आ गई है। इससे विमानन बाजार में टाटा की हिस्सेदारी बढ़कर एक चौथाई हो जाएगी। लेकिन एयर इंडिया के लोगो को कई वर्षों तक बनाए रखने और मौजूदा साझेदारियों को कायम रखने की शर्त से टाटा के लिए होल्डिंग को दुरुस्त रखना काफी जटिल हो सकता है। एयर इंडिया के बेड़े के आधुनिकीकरण और अन्य परिचालनों के साथ तालमेल बिठाने की योजनाओं को लेकर निश्चित रूप से टाटा से सवाल पूछे जाएंगे।
बहरहाल व्यापक स्तर पर देखें तो एयर इंडिया का निजीकरण सरकार के व्यापक विनिवेश कार्यक्रम के लिए एक शानदार संकेत है। प्रतिदिन 20 करोड़ रुपये का घाटा उठा रही एयर इंडिया लंबे वक्त से सरकार के गले में बंधा पत्थर रही है और उसके विनिवेश की तीन कोशिशें पहले नाकाम हो चुकी थीं। ऐसे में यही संदेश जाता है कि अगर एयर इंडिया का विनिवेश हो सकता है तो अन्य सार्वजनिक इकाइयों की बिक्री न हो पाने का कोई कारण नहीं दिखाई देता है। यह सच है कि वाजपेयी सरकार के बाद से किसी भी सार्वजनिक उपक्रम का निजीकरण नहीं हो पाया है लेकिन एयर इंडिया की बिक्री ने वह बाधा भी हटा दी है। अब उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में कई दूसरे सार्वजनिक उपक्रमों का भी निजीकरण कर दिया जाएगा। केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए नई नीति लाने और रणनीतिक क्षेत्रों में बेहद कम मौजूदगी रखने से सरकार के समक्ष अन्य क्षेत्रों पर ध्यान देने के लिए अधिक राजकोषीय एवं प्रशासकीय संभावनाएं पैदा होंगी।
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