धातुओं पर पड़ रहा असर | अदिति दिवेकर / मुंबई October 08, 2021 | | | | |
घरेलू कोयले की कमी बहुत ज्यादा होने के साथ इसका असर एल्युमीनियम उद्योग और द्वितीयक स्टील उत्पादकों पर नजर आने लगा है। बढ़ी लागत के कारण इन उद्योगों की क्षमता के उपयोग में तेज गिरावट आई है।
घरेलू स्टील और एल्युमीनियम दोनों क्षेत्र गैर विनियमित क्षेत्र के दायरे में आते हैं। स्पंज आयरन के उत्पादन में थर्मल कोयले का इस्तेमाल प्रमुख कच्चे माल के रूप में होता है, वहीं एल्युमीनियम स्मेल्टरों के निजी बिजली संयंत्र हैं, जिनमें फीडस्टॉक के रूप में ईंधन की जरूरत होती है।
जिंदल स्टील ऐंड पावर के प्रबंध निदेशक वीआर शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'द्वितीयक स्टील उत्पादकों का क्षमता उपयोग स्तर गिरकर 60 प्रतिशत रह गया है, जो पहले 80 प्रतिशत था। उनके लिए कठिन स्थिति है।'
उद्योग से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि अगर कोयला उपलब्ध भी है तो इसकी कीमत बढ़कर 2.80 प्रति मेगा/सीएएल तक पहुंच गई है, जो सामान्यतया 0.70 मेगा/सीएएल होती है। फेडरेशन आफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज ने कोयला मंत्रालय को लिखेअपने पत्र में दो उद्योगों की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए कोयले की आपूर्ति और रेल रैक कम होने की वजह से पैदा हुई इस समस्या के समाधान का सुझाव दिया है। फेडरेशन ने 6 अक्टूबर को लिखे पत्र में कहा है, 'कोयले की कमी की स्थिति के कारण निजी बिजली संयंत्र पर आधारित उद्योग और मझोले व छोटे उद्यम करीब बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं। तैयार माल की बढ़ी कीमत का बोझ अंतिम उपभोक्ता पर पड़ रहा है।'
घरेलू स्पंज आयरन की कीमत 3 सप्ताह पहले के 27,000 रुपये प्रति टन से बढ़कर अब 36,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई है। शर्मा ने कहा कि 6 महीने पहले कीमत 22,000 रुपये प्रति टन थी।
देश में कोयले की जरूरत (सभी उपभोक्ताओं को मिलाकर) करीब 10 करोड़ टन प्रति माह है। वहीं कोल इंडिया का हर महीने उत्पादन 6.2 करोड़ टन प्रति माह है। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि यह वक्त है कि कोयला खनन कंपनी अन्य खदानों को भी परिचालन में लाकर इस मसले का समाधान करे।
करीब 50 प्रतिशत घरेलू स्टील उद्योग द्वितीयक स्टील उत्पादक हैं, जो देश भर में ग्राहकों के लिए कीमतों के हिसाब से संवेदनशील हैं, न कि ब्रॉन्ड के मामले में।
फेडरेशन ने पत्र में लिखा है, 'कोयला मंत्रालय की 15 फरवरी, 2016 की अधिसूचना के मुताबिक कोयले के रैकों की लदान का अनुपात 75 प्रतिशत (बिजली) और 25 प्रतिशत (गैर बिजली) होना चाहिए।'
बहरहाल प्राथमिक स्टील उत्पादकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है, क्योंकि वे अपनी मांग पूरी करने के लिए आयातित कोकिंग कोल पर निर्भर हैं।
एल्युमीनियम उद्योग के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, 'गैर बिजली क्षेत्रों (एल्युमीनियम, सीमेंट और स्टील) को कोल इंडिया से उनकी जरूरत का बमुश्किल 50 प्रतिशत कोयला मिल रहा है। रैक आपूर्ति पहले के 50 प्रति दिन की जगह अब घटकर 25 प्रति दिन रह गई है। ऐसा पिछले 2 महीने से हो रहा है, इसलिए सभी संयंत्रों में महज एक या दो दिन के लिए कोयला बचा है।'
अधिकारी ने कहा, 'साथ ही नीलामी भी समय से नहीं हो रही है, जिसकी वजह से तमाम मामलों में प्रीमियम 100 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गए हैं। इसकी वजह से कुल मिलाकर तैयार माल के उत्पादन की लागत बढ़ रही है।'
एल्युमीनियम उत्पादकों में अनिल अग्रवाल की वेदांत लिमिटेड, आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और सरकारी कंपनी नैशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड (नालको) प्रमुख रूप से थर्मल कोयला खपत करने वाली कंपनियां हैं। सीमेंट कंपनियों पर अभी बहुत असर नहीं पड़ा है, लेकिन वे भी आगे चलकर कीमत बढ़ाने पर विचार कर सकती हैं।
श्री सीमेंट के प्रबंध निदेशक हरि मोहन बांगड़ ने कहा, 'पिछले 3 महीने में कोयले की कीमत दोगुने से ज्यादा हो गई है। जिस तरह लागत बढ़ रही है, सीमेंट उत्पादन व्यावहारिक नहीं है। देर सबेर उद्योग को कीमत बढ़ानी ही पड़ेगी। इसका वक्त नहीं बताया जा सकता, लेकिन ऐसा होना तय लगता है।'
|