अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ब्याज दरें तय करने वाली इकाई फेडरल ओपन मार्केट कमिटी (एफओएमसी) ने यथास्थिति बरकरार रखी है मगर यह साफ कर दिया कि नवंबर से आर्थिक प्रोत्साहन वापस लेने की शुरुआत हो सकती है और 2022 के मध्य तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। अगले दो वर्षों के दौरान नीतिगत दरें बढ़ सकती हैं। बैंक ऑफ इंगलैंड (बीओई) ने भी ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया और बॉन्ड खरीदारी कार्यक्रम जारी रखने का निर्णय लिया। मगर बीओई की मौद्रिक नीति समिति के दो सदस्यों ने सरकारी बॉन्ड खरीदारी कार्यक्रम समाप्त करने के पक्ष में मतदान किया। ब्याज दर निर्धारण करने वाली भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अगस्त में हुई बैठक के बाद कम से कम सात केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं।एमपीसी की अगस्त बैठक के बाद इसके एक सदस्य जयंत वर्मा ने कुछ उदार उपाय वापस लिए जाने पर जोर दिया था। वर्मा का तर्क था कि एमपीसी की विश्वसनीयता बनाए रखने और बढ़ती महंगाई के बीच ऐसा करना जरूरी हो गया है। हालांकि वर्मा की टिप्पणी के तुरंत बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि केंद्रीय बैंक जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा जिससे मध्यम अवधि में वित्तीय स्थायित्व पर असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि आर्थिक हालात सुधरने के स्पष्ट संकेत मिलतने तक हमें जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए।हाल में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एवं एमपीसी के सदस्य माइकल पात्र ने दास के तर्क का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक जल्दबाजी में उदार उपाय वापस लेकर बाजार में घबराहट की स्थिति पैदा नहीं करना चाहता है। पात्र ने कहा कि केंद्रीय बैंक धीरे-धीरे और पारदर्शी तरीके से प्रोत्साहन के कदम रोकेगा। उन्होंने कहा कि 2023-24 तक महंगाई 4 प्रतिशत के स्तर तक आने के बाद उदारवादी रुख बदलेगा। पात्र का मानना है कि वित्त वर्ष 2022 में महंगाई दर कम होकर 5.7 प्रतिशत रह जाएगी और 2023 में यह 5 प्रतिशत से भी नीचे सरक जाएगा।अगस्त में एमपीसी की बैठक के बाद परिस्थितियां कितनी बदली हैं? जुलाई में 5.59 प्रतिशत स्तर पर पहुंचने के बाद अगस्त में खुदरा महंगाई कम होकर चार महीनों के निचले स्तर 5.3 प्रतिशत पर आ गई। इसी तरह, प्रमुख महंगाई दर (गैर- खाद्य, गैर-तेल, गैर-विनिर्माण महंगाई) अगस्त में कम होकर 5.5 प्रतिशत रह गई जो पिछले महीने 5.7 प्रतिशत थी। पिछले लगातार दो महीनों से खुदरा महंगाई 6 प्रतिशत से कम रही है। ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि यह और कम होगी और जनवरी में एक बार फिर बढऩे से पहले दिसंबर में 5 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी। दूसरी तरफ आर्थिक वृद्धि से जुड़ी संभावनाएं भी बढ़ गई हैं। नियमित अंतराल पर आने वाले आंकड़े सुधार में तेजी और उपभोक्ता मांग मजबूत होने का संकेत दे रहे हैं। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। संतुलित जोखिम के साथ इस वर्ष महंगाई 5.7 प्रतिशत रहने की बात कही गई है। फिलहाल तो ये दोनों ही अनुमान वास्तविक एवं तर्कसंगत लग रहे हैं और आरबीआई इसमें किसी तरह का बदलाव करना नहीं चाहता है।इन बातों को देखते यह साफ है कि फिलहाल उदारवादी रवैया जारी रहेगा। आरबीआई आर्थिक वृद्धि दर एक निश्चित स्तर तक पहुंचने तक अपने रुख में बदलाव नहीं करेगा मगर एमपीसी की बैठक में विरोध के स्वर उभर सकते हैं। खुले तौर पर न सही मगर आरबीआई सामान्य दर व्यवस्था बहाल करने की दिशा में पहल शुरू कर सकता है।वित्तीय प्रणाली में इस समय नकदी करीब 12 लाख करोड़ रुपये के सर्वोच्च स्तर पर है जिनमें सरकार के पास उपलब्ध अधिशेष रकम भी शामिल है। अगस्त बैठक में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 14 दिनों की वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो (वीआरआरआर) नीलामी 2 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4 लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की थी। दास ने जोर देकर कहा कि नीलामी का आकार बढ़ाने का उद्देश्य केवल नकदी प्रबंधन है न कि कुछ और। इसके साथ आरबीआई सात दिन, चार दिन और तीन दिन के लिए अल्प परिपक्वता वाली वीआरआरआर नीलामी का संचालन कर रहा है।क्या आरबीआई सरकारी प्रतिभूति खरीदारी कार्यक्रम (जी-सैप) बंद कर देगा? 2021 की पहली तिमाही की शुरुआत में जी-सैप का आकार 1 लाख करोड़ रुपये था और दूसरी तिमाही में इसे बढ़ाकर 1.2 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। मगर पिछले दो जी-सैप ट्वीस्ट (बॉन्ड खरीदारी के साथ इनकी साथ-साथ बिकवाली) में तब्दील हो गए हैं। आरबीआई एक और जी-सैप की घोषणा नहीं कर सकता है या इसे ट्वीस्ट में बदल सकता है। कुल मिलाकर बॉन्ड की साथ-साथ खरीदारी और बिक्री के माध्यम से आरबीआई अपना रुख तटस्थ कर लेगा जिससे वित्तीय प्रणाली में नकदी की उपलब्धता कम होती जाएगी। नकदी बहाली में कमी हालात सामान्य बनाने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। इसकी शुरुआत अगस्त में हो चुकी है मगर इसमें तेजी लाई जानी चाहिए। 28 सितंबर को सात दिन की वैरिएबल रिवर्स रीपो नीलामी के लिए बोलियां स्वीकार होने की बॉन्ड प्रतिफल दर (कट-ऑफ) 3.99 प्रतिशत थी। कई लोगों को लगता है कि यह रिवर्स रीपो रेट बढऩे का संकेत हो सकता है जिससे रीपो और रिवर्स रीपो रेट के बीच अंतर कम हो जाएगा। मगर मुझे लगता है कि ऊंची कट-ऑफ दर ब्याज दरें बढ़ाने के बजाय नकदी खींचने का अधिक संकेत है। आरबीआई बाजार को तैयार किए बिना शायद ही दरें बढ़ाएगा। क्या दिसंबर में आरबीआई यह कदम उठा सकता है? सरकार की वित्तीय सेहत अब सुधर रही है और कर संग्रह बढऩे के साथ ही उपभोक्ताओं की मांग में भी इजाफा हो रहा है। आर्थिक हालात पहले से बेहतर होने के बाद अब आर्थिक प्रोत्साहन वापस लेने का समय आ गया है।
