भारत के आधे से भी अधिक (55 प्रतिशत) कार्यरत पेशेवर लोग काम पर तनाव अनुभव करते हैं, क्योंकि कल्याण के उपाय कई लोगों के लिए लक्जरी वस्तु हो गए हैं। लिंक्डइन की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।कार्यबल विश्वास सूचकांक से इस बात का पता चलता है कि कार्य जगत में भारी बदलाव के बावजूद 31 जुलाई से 24 सितंबर, 2021 तक भारत का संपूर्ण कार्यबल विश्वास कुल +55 अंकों के साथ स्थिर रहा। लेकिन पिछले 18 महीनों से बदलाव के इस वक्त से देश में काम करने वाले पेशेवरों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है।जब कार्यरत पेशेवरों का काम के तनाव के प्रमुख कारण साझा करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने व्यक्तिगत जरूरतों के साथ काम को संतुलित करना (34 प्रतिशत), पर्याप्त पैसा नहीं कमा पाना (32 प्रतिशत और करियर की धीमी गति से उन्नति (25 प्रतिशत) को काम तीन प्रमुख वजहों के रूप में बताया। ऐसे तनावपूर्ण समय के बीच तीन में से एक पेशेवर को मौजूदा सुधार वाले, समय में नौकरियों की उपलब्धता (36 प्रतिश्त) और खर्च पर बेहतर नियंत्रण (30 प्रतिशत) के प्रति आशावादी रूप में भी देखा जा सकता है।लिंक्डइन के इंडिया कंट्री मैनेजर आशुतोष गुप्ता ने कहा 'हमारे सर्वेक्षण से इस बात का पता चलता है कि कर्मचारियों को जो चाहिए और तनाव से निपटने के लिए नियोक्ता जो दे रहे हैं, उनके बीच एक व्यापक अंतर है। हालांकि लगभग आधे (47 प्रतिशत) कार्यरत पेशेवर उचित समय पर काम समाप्त करना चाहते हैं, लेकिन केवल एक-तिहाई (36 प्रतिश्त) ही वास्तव में ऐसा करने में सक्षम थे। और जहां एक ओर 41 प्रतिशत ने अवकाश लेने की योजना बनाई, वहीं दूसरी ओर केवल 30 प्रतिशत ही पिछले दो महीनों में समय निकाल पाए। ये खतरनाक आंकड़े कंपनियों के लिए इस बात को समझने की जरूरत को बताते हैं कि किस तरह काम वाली जिंदगी का संतुलन और कुशल-क्षेम की प्राथमिकता वाली संस्कृति का निर्माण करना किस कदर गंभीर होता जा रहा है।यह सर्वेक्षण 31 जुलाई से 24 सितंबर तक 3,881 पेशेवरों की प्रतिक्रियाओं पर आधारित है। चूंकि इस परिवर्तनकारी समय में कार्यबल की प्राथमिकताएं बदल रही हैं, इसलिए निष्कर्षों से इस बात का संकेत मिलता है कि लचीलापन और कार्य-जीवन का संतुलन आने वाले वर्षों के दौरान भारतीय पेशेवर परिदृश्य में प्रतिभा के महत्त्वपूर्ण संचालकों के रूप में काम करेगा।हालांकि अधिक लचीलापन पीढिय़ों से एक सामान्य आवश्यकता बनी हुई है, लेकिन युवा पेशेवरों के लिए अपने पुराने साथियों की तुलना में विराम लेना आसान रहा है। निष्कर्षों से पता चलता है कि अधिक आयु वालों के मुकाबले युवाओं द्वारा कार्य के बीच विराम लेने की संभावना दो गुना ज्यादा थी, जबकि प्रौढ़ व्यक्तियों में यह संभावना डेढ़ गुना ज्यादा थी। दिलचस्प बात यह है कि युवा और प्रौढ़ पेश्ेावरों के मुकाबले अधिक आयु वाले लोगों में अपने सहयोगियों के साथ मानसिक स्वास्थ्य और दबाव के संबंध में खुलकर बात करने की संभावना डेढ़ गुना ज्यादा थी।
