केंद्र सरकार ने मंत्रालयों और सरकारी विभागों के खर्च पर लगी पाबंदियां हटाते हुए उन्हें चालू वित्त वर्ष के बचे महीनों में अपने बजट अनुमान के अनुसार खर्च करने की अनुमति दे दी। सरकार के कर राजस्व में वृद्घि को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। कोविड की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल-मई में आथिक गतिविधियां प्रभावित होने के बावजूद कर प्राप्तियां बजट अनुमान से आगे चल रही हैं। आर्थिक मामलों के विभाग की बजट इकाई ने कहा, 'चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में बजट अनुमान के 20 फीसदी तक ही खर्च करने के 30 जून के दिशानिर्देशों की समीक्षा की गई। इसके बाद इन प्रतिबंधों को तत्काल वापस ले लिया गया। अब अगला आदेश आने तक सभी मंत्रालयों और विभागों को चालू वित्त वर्ष के बचे महीनों में स्वीकृत मासिक खर्च योजना या तिमाही व्यय योजना के आधार पर खर्च करने की अनुमति दे दी गई है।' इस कदम से सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान तय करने में मदद मिलेगी और अगले वित्त वर्ष में बजट आवंटन पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। आम तौर पर वित्त वर्ष के पहले छह महीने के व्यय रुझान देखकर ही पहला अनुमान लगाया जाता है और संशोधित अनुमान नवंबर तक के व्यय के आधार पर तैयार किया जाता है। बजट पूर्व बैठकों का दौर 12 अक्टूबर से शुरू होगा और आम बजट तैयार करते समय व्यय को ध्यान में रखा जाएगा। अधिसूचना में आगे कहा गया है कि बड़े व्यय (200 करोड़ रुपये या इससे अधिक) से संबंधित निर्देशों में चालू वित्त वर्ष के बाकी बचे महीनों में पूंजीगत व्यय से जुड़े आइटम के लिए रियायत दी गई है। इस साल जून में वित्त मंत्रालय ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को जुलाई-सितंबर तिमाही में खर्च को अपने वार्षिक बजट आवंटन के अधिकतम 20 फीसदी तक सीमित रखने के लिए कहा था। 101 विभागों में से इस्पात, श्रम और नागर विमानन मंत्रालय सहित 80 से ज्यादा के कुल खर्च को बजट अनुमान के 20 फीसदी तक सीमित रखने की पाबंदी लगाई गई थी। आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-जुलाई में सरकार का व्यय पिछले साल अप्रैल-जुलाई के मुकाबले 5 फीसदी घटा था और यह बजट अनुमान को 29 फीसदी था। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, 'खर्च संभालने के दिशानिर्देशों को वापस लिए जाने के बाद हमारा अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में सरकारी व्यय में तेजी आएगी। आर्थिक गतिविधियों में तेज सुधार के लिए ऐसा करना बेहद आवश्यक भी है।' हालांकि केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सवनबीस ने कहा कि इस कदम से खर्च में खास फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा, 'अब तक हमने देखा है कि राजस्व व्यय पिछले साल की तुलना में कम है, जो मुख्य रूप से कमतर राहत प्रतिबद्घताओं की वजह से है। पूंजीगत व्यय लक्ष्य के अनुरूप है, जिसका मतलब है कि जहां जरूरत है वहां विभाग खर्च कर रहे हैं।'
