भारत में कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) के समक्ष जब प्रतिक्रिया लेने या प्रतिपुष्टि कराने का प्रश्न खड़ा होता है तो वे इसके लिए शीर्ष प्रबंधन से बात करते हैं। इस मामले में वे वैश्विक स्तर पर अपने समकक्षों से अलग रवैया रखते हैं जो प्रतिक्रिया लेने के लिए निदेशकमंडल (बोर्ड) या चेयरपर्सन पर अधिक निर्भर रहते हैं। वरिष्ठ कार्याधिकारियों पर शोध करने वाली कंपनी ईगॉन जेंडर के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। भारत से इतर वैश्विक स्तर पर सीईओ अपने और कंपनी दोनों के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया लेने के लिए चेयरपर्सन और निदेशकमंडल पर अधिक निर्भरता दिखाते हैं। ईगॉन जेंडर ने 1,000 से अधिक सीईओ से बात की और उसी सर्वेक्षण में भारत के सीईओ और वैश्विक स्तर पर उनके समकक्षों के दृष्टिकोण में इस अंतर की बात सामने आई है। भारत में कंपनी ने 100 से अधिक सीईओ से बात की जिनमें आधे सीईओ भारतीय कंपनियों के थे और शेष भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रमुख थे। इस सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय सीईओ अधिक युवा हैं और उनके पास अनुभव भी अपने वैश्विक समकक्षों की तुलना में अधिक है मगर राजस्व के लिहाज से वे छोटी कंपनियों की बागडोर संभाल रहे हैं। वे कंपनी का कारोबार बढ़ाने पर अधिक ध्यान देते हैं और वित्तीय प्रदर्शन को इसके बाद महत्त्व देते हैं। वे वैश्विक स्तर पर अपने समकक्षों के मुकाबले स्वयं और अपनी कंपनी में बदलाव लाने में अधिक विश्वास करते हैं। ईगॉन जेंडर ने जितने भारतीय सीईओ का सर्वेक्षण किया उनमें 85 प्रतिशत सीईओ ने कंपनी के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया लेने में वरिष्ठ नेतृत्व को अधिक तवज्जो देने की बात कही। 62 प्रतिशत ने कहा कि दूसरे विकल्प के तौर पर वे अपने निर्णय पर भरोसा करते हैं। वैश्विक स्तर पर सीईओ में शीर्ष प्रबंधन पर निर्भरता कम देखी गई। 51 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि दूसरे विकल्प के तौर पर वे चेयरपर्सन या निदेशकमंडल से सलाह लेते हैं। इस सर्वेक्षण पर ईगॉन जेंडर में लीडर (इंडस्ट्रियल प्रैक्टिस) विक्रम जीत सिंह अरोड़ा ने कहा, 'हमने पाया है कि भारतीय सीईओ कंपनी खासकर अपने प्रदर्शन पर निदेशकमंडल या चेयरपर्सन से प्रतिक्रिया लेने से कतराते हैं। सवाल यह है कि क्या वे निदेशकमंडल से सहमे रहते हैं? क्या निदेशकमंडल एक ऐसा महौल तैयार कर सकता है जो खुलकर वार्तालाप के लिए अनुकूल हो।?' भारत में मुख्य कार्याधिकारियों के लिए कंपनी का कारोबार विस्तार किसी भी अन्य पहलू से अधिक मायने रखता है जबकि दुनिया में उनके समकक्षों के लिए वित्तीय प्रदर्शन (मुनाफा) अधिक मायने रखता है और कारोबार वृद्धि का महत्त्व इसके बाद आता है। सर्वेक्षण के अनुसार नवाचार से जुड़े तथ्य भारत में सीईओ के निर्णयों पर अधिक प्रभाव डालते हैं जबकि वैश्विक स्तर पर उनके समकक्षों के साथ यह बात लागू नहीं होती है। दृष्टिकोण में यह बदलाव इस बात की ओर इशारा देता है कि तकनीक आधारित बड़ी कंपनियों में मूल्यांकन के लिए मुनाफे से अधिक कारोबार वृद्धि पर ध्यान दिया जाता है। अनुभव की बात करें तो एक तिहाई भारतीय सीईओ ने कहा कि उन्हें बतौर सीईओ काम करने का पिछला अनुभव भी है। वैश्विक स्तर पर यह औसत महज 22 प्रतिशत रहा। भारत के सीईओ उम्र के मामले में भी अपने वैश्विक समकक्षों से अलग हैं। वैश्विक स्तर पर करीब 30 प्रतिशत सीईओ 55-55 वर्ष की उम्र के बीच हैं जबकि केवल 17 भारतीय सीईओ इस उम्र दायरे में हैं। भारत में ज्यादातर सीईओ युवा हैं। मगर जिन कंपनियों का भारतीय सीईओ संचालन करते हैं वे तुलनात्मक रूप से छोटी हैं। दो तिहाई भारतीय कंपनियों का राजस्व 1 अरब डॉलर से कम है जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 46 प्रतिशत है। करीब 88 प्रतिशत भारतीय सीईओ ने कहा कि स्वयं के साथ ही कंपनी के प्रदर्शन में बदलाव लाने की क्षमता उनमें अवश्य होनी चाहिए।
