मंगलूर स्पेशल इकनॉमिक जोन (एमएसईजेड) में आईएलऐंडएफएस की हिस्सेदारी खरीदने पर ओएनजीसी विचार कर रही है। इस कंपनी में आईएलऐंडएफएस की 50 फीसदी हिस्सेदारी है। यह सौदा उचित मूल्य पर होने की संभावना है क्योंंकि संयुक्त उद्यम में लेनदार की हिस्सेदारी भारी छूट पर खरीदने की ओएनजीसी की कोशिश नाकाम हो गई थी। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। शेयरधारक करार के तहत छूट वाले कैश फ्लो तरकीब के जरिये दो स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता उचित कीमत पर पहुंचेंगे, जिसमें भविष्य की आय अनुमान का इस्तेमाल किया जाता है। अप्रैल 2015 में परिचालन शुरू करने वाली एमएसईजेड ने 2020-21 में 32 करोड़ रुपये का शुद्ध नुकसान दर्ज किया जबकि इसके एक साल पहले शुद्ध नुकसान 31.6 करोड़ रुपये रहा था।कंपनी में ओएनजीसी की हिस्सेदारी अभी 26 फीसदी है, वहीं कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट के पास 23 फीसदी हिस्सेदारी है। ओएनजीसी मंगलूर पेट्रोकेमिकल्स (ओएमपीएल) और कनारा चैंंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के पास कुल मिलाकर एमएसईजेड की एक फीसदी इक्विटी है। आईएलऐंडएफएस की हिस्सेदारी खरीद पर टिप्पणी के लिए ओएनजीसी की चेयरमैन व प्रबंध निदेशक सुभाष कुमार उपलब्ध नहीं थे। मार्च 2019 में ओएनजीसी ने डिफॉल्ट उपबंध का इस्तेमाल करते हुए भारी छूट पर आईएलऐंडएफएस की हिस्सेदारी खरीदनी चाही थी। आईएलऐंडएफएस ने इस आधार पर दावे का विरोध किया कि एमएसईजेड ग्रीन श्रेणी वाली कंपनियों में शामिल है, जिसने भुगतान में चूक नहीं की है।रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल की सिफारिशों के आधार पर आईएलऐंडएफएस समूह की कंपनियों को ग्रीन, अंबर और रेड श्रेणी में बांटा गया था। अंबर श्रेणी वाली इकाइयां सिर्फ परिचालकों के भुगतान दायित्व व वरिष्ठ सुरक्षित वित्तीय लेनदारों के भुगतान में सक्षम थीं। सरकारी स्वामित्व वाली ओएनजीसी ने आईएलऐंडएफएस के केंद्र सरकार की तरफ से 15 सदस्यीय निदेशक मंडल के निलंबन और एनसीएलटी की तरफ से मौजूदा बोर्ड की नियुक्ति को डिफॉल्ट का घटनाक्रम माना था। आईएलऐंडएफएस के नए निदेशक मंडल की तरफ से समाधान प्रक्रिया की निगरानी के लिए नियुक्त अवकाशप्राप्त न्यायाधीश डी के जैन ने दिसंबर 2019 में भारी छूट पर हिस्सेदारी खरीदने के ओएनजीसी के दावे को खारिज कर दिया था।
