ऐसे विरोध प्रदर्शन विरले ही हुए हैं, जिनके नतीजे ने संबंधित सभी लोगों को संतुष्ट किया हो। करनाल में किसानों का धरना ऐसा ही रहा है। राज्य सरकार द्वारा 28 अगस्त की पुलिस कार्रवाई की जांच और मृतक किसान सुशील काजल के परिवार को दो नौकरियों का आश्वासन दिए जाने के बाद किसान दबाव समूहों के संघ -संयुक्त किसान मोर्चा ने शनिवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के निर्वाचन क्षेत्र में अपना पांच दिवसीय विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इस विरोध के नतीजे ने न केवल किसानों को जीत दिलाई है, बल्कि सत्ताधारी दल के हित में भी काम किया है।हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के नेता गुरनाम चढूनी ने करनाल के नतीजे को किसानों के लिए जीत करार देते हुए कहा 'हमें खुशी है कि सरकार ने उनकी मांगों पर विचार किया है।' उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली बॉर्डर और देश भर में कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध जारी रहेगा। मुल्लाना के महाराणा प्रताप नैशनल कॉलेज मेंराजनीति विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर और प्रमुख विजय चौहान ने कहा 'किसानों के साथ बातचीत करके सरकार ने दिखाया है कि वह उनकी जायज मांगों को मानने के लिए तैयार है।' चौहान ने कहा 'करनाल की घटना के बाद हर किसान समुदाय आहत था और चाहता था कि सरकार कार्रवाई करे। आयुष सिन्हा (आईएएस अधिकारी) के बरताव की जांच का आदेश देकर और मृतक किसान के परिवार के दो सदस्यों को नौकरी देने के लिए सहमत होकर सरकार असंतोष खत्म करने में कामयाब रही है।'ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब पुलिस ने पिछले एक साल में किसानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। पिपली, कैमला और करनाल की घटनाओं के अलावा हिसार, रेवाड़ी और सिरसा में भी किसानों को पीटा गया था। अंतर यह है कि इस बार मामले को रिकॉर्ड समय में सुलझा लिया गया। संयुक्त किसान मोर्चा नेतृत्व भी करनाल समस्या का शीघ्र समाधान चाहता था, क्योंकि करनाल के धरने के बाद इस आंदोलन को दो समूहों में विभाजित किया जा रहा था। चढूनी ने करनाल पर ध्यान केंद्रित कर दिया था और राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश में इसका नेतृत्व कर रहे थे। कई लोगों ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं की करनाल के धरने में कोई दिलचस्पी नहीं है और वे उत्तर प्रदेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। चूंकि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में छह महीने का ही समय रह गया है, इसलिए टिकैत राज्य को विरोध का केंद्र बिंदु बनाना चाहते हैं। किसान नेताओं को अब करनाल के विरोध प्रदर्शन में कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी। टिकैत ने कहा 'ऐसा लगता है कि किसानों को भड़काकर सरकार आंदोलन का केंद्र हरियाणा में स्थानांतरित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन हम केवल दिल्ली बॉर्डर पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे।' उन्होंने कहा कि हम आंदोलन को हरियाणा में स्थानांतरित नहीं करेंगे।संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर से अपने 'मिशन उत्तर प्रदेश' की शुरुआत की है। इन विरोध प्रदर्शनों से उत्तर प्रदेश के लिए एजेंडा तय किए जाने के आसार हैं, जो देश में सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों का योगदान करता है।संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा का विरोध करने के लिए जल्द ही मिशन उत्तर प्रदेश शुरू करने के वास्ते एक कार्य योजना तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। इनमें से एक ने कहा 'हम इन किसान संगठनों के साथ बैठक करेंगे और फिर एक कार्य योजना तैयार की जाएगी जिसकी औपचारिक घोषणा की जाएगी।' पिछले चार दशकों से हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को कवर करने वाले और हरियाणा पर तीन किताबें लिख चुके पत्रकार पवन कुमार बंसल ने कहा कि करनाल की घटना किसान आंदोलन को पटरी से उतारने का भाजपा का प्रयास था। क्या थी भाजपा की रणनीति?इस विरोध प्रदर्शन में ज्यादातर किसान या तो सिख हैं या फिर जाट। हालांकि पंजाब में भाजपा का ज्यादा प्रभुत्व नहीं है, लेकिन हरियाणा में जाट फरवरी 2016 के आरक्षण आंदोलन के बाद से पार्टी के खिलाफ हैं, जिसमें सुरक्षा बलों की गोलीबारी में कई लोग मारे गए थे। दूसरी तरफ वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर के हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद से उत्तर प्रदेश में जाट भाजपा के मुख्य मतदाता रहे हैं। लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव उपरांत केसर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में 77 प्रतिशत जाटों ने भाजपा के लिए मतदान किया था, जबकि हरियाणा में केवल 19 प्रतिशत ने ही। विशेषज्ञों के अनुसार विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में किसी भी ताकत का इस्तेमाल करने से जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को भारी नुकसान होगा, जो एक ऐसा क्षेत्र जहां उसने वर्ष 2012 में 110 सीट में से आई 38 सीट को वर्ष 2017 में बढ़ाकर 88 सीट कर दिया था।
