कोरोनावायरस महामारी के प्रसार की वजह से लोगों को दफ्तर का काम घर से करना पड़ा। नतीजतन भारत में तीन पेशेवरों में से एक, काम के बोझ और बढ़ते तनाव की वजह से काफी थकान महसूस करते हैं। पेशेवर लोगों को जोडऩे वाले सोशल मीडिया मंच ट्विटर ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि अधिकांश कर्मचारियों को महसूस होता है कि वे फिर से दफ्तर में वापस लौटना चाहते हैं।
लिंक्डइन ने मंगलवार को शोध कंपनी सेंससवाइड के 'फ्यूचर ऑफ वर्क' शीर्षक वाले अध्ययन के निष्कर्षों को जारी किया जिसमें 16 से 68 साल उम्र वर्ग के करीब उन 1,108 लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी जिन्हें कोविड-19 प्रतिबंधों के कारण महामारी के दौरान घर से काम करना पड़ा है। इस सर्वेक्षण में घर से काम करने के प्रभाव, काम पर लौटने की उनकी योजनाओं और भविष्य में घर से या दफ्तर से काम करने की तरजीह से जुड़ी उनकी धारणाओं को समझने की कोशिश की गई है। इस अध्ययन के जरिये यह अंदाजा मिला है कि घर से दफ्तर का काम करने से पेशेवरों में शारीरिक और मानसिक तनाव बढ़ रहा है और वे फिर से दफ्तर जाने की उम्मीद कर रहे हैं।
सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों में यह बात भी निकल कर आई है कि भारत में 86 प्रतिशत पेशेवरों का मानना है कि घर और दफ्तर से काम करने के एक मिले-जुले (हाइब्रिड) मॉडल से उन्हें अपने निजी और पेशेवर जीवन के बीच सही संतुलन बनाने में मदद मिलेगी। सर्वेक्षण में शामिल करीब 35 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने घर से काम करने के दौरान महसूस किया कि उनके काम का बोझ बढ़ गया है जबकि 34 फीसदी का कहना है कि उन्हें काफी तनाव का अनुभव हुआ।
इस तरह के तकलीफदह समय से थोड़ी राहत पाने के लिए पेशेवर काम के साथ अपनी सुकून भरी जिंदगी को भी प्राथमिकता दे रहे है ताकि सही तरीके से संतुलन बनाया जा सके। इस सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक लोगों का मानना है कि काम और जीवन के बीच संतुलन (52 फीसदी) उतना ही अहम है जितना कि वेतन (52 फीसदी) जरूरी है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि 10 में लगभग 9 कर्मचारियों या जवाब देने वाले करीब 86 फीसदी लोगों को लगता है कि दफ्तर और घर पर काम करने के मिले-जुले तरीके से उन्हें अपने पेशेवर काम और जिंदगी के बीच सकारात्मक तरीके से संतुलन बनाने का मौका मिलेगा। करीब 48 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इस तरह के मिले-जुले मॉडल से उन्हें अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों और पेशेवर जीवन पर समान वक्त देने का मौका मिल पाएगा।
लिंक्डइन के कंट्री मैनेजर (भारत) आशुतोष गुप्ता ने कहा, 'लंबे समय तक घर से दफ्तर का काम करते हुए देश में पेशेवर तबका काफी थक चुका है। इसी वजह से हमारे जीवन में क्या अहम है इसको लेकर विचार में बदलाव भी देखे जा रहे हैं। एक ओर संगठन अपने काम के पूरे मॉडल, माहौल और मूल्यों पर ही पुनर्विचार कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ कर्मचारी न केवल यह सोच रहे हैं कि वे कैसे काम कर रहे हैं बल्कि वे यह भी सोचने को मजबूर हुए हैं कि वे क्यों काम करते हैं। इस समय हम कंपनियों को उदार पेशकश करने और मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक समय देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि पेशेवर अब अपने जीवन में अधिक संतुलन बनाने पर ध्यान दे रहे हैं।'
सर्वेक्षण के रुझानों से यह अंदाजा मिलता है कि भारत में पेशेवर दफ्तर वापस जाने के लिए उत्सुक हैं। अध्ययन में शामिल 72 प्रतिशत लोगों के जवाब से लगता है कि घर से काम करने से उनके करियर विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जबकि आधे से अधिक (55 प्रतिशत) ने कहा कि वे पेशेवर स्तर पर जो कुछ सीख पाते थे वह पूरी प्रक्रिया ही प्रभावित हुई है। इस अध्ययन से अंदाजा मिलता है कि भारत के लगभग आधे पेशेवर पूर्णकालिक आधार पर काम करने के लिए दफ्तर वापस जाना चाहते हैं क्योंकि कार्यस्थल पर उनके काम की गुणवत्ता बढ़ जाती है। वहीं 71 प्रतिशत लोगों ने इस बात पर सहमति जताई कि जो लोग कार्यालय में काम करने का विकल्प चुनते हैं उन्हें अपने बॉस से ज्यादा समर्थन मिलता है। करीब 89 प्रतिशत पेशेवरों को यह भी लगता है कि कार्यस्थल पर वापस जाने से उन्हें अधिक घंटे काम करने और अधिक पैसा कमाने का मौका मिलेगा। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 72 प्रतिशत दफ्तर इसलिए भी वापस जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें दफ्तर में सुखद माहौल मिलता है जबकि 50 प्रतिशत का कहना है कि उन्हें अन्य लोगों और सहकर्मियों के साथ काम करना अच्छा लगता है। घर से काम करने पर कर्मचारियों को फायदा भी हुआ है। अध्ययन से पता चलता है कि 10 में से 9 से अधिक लोगों या 93 प्रतिशत पेशेवरों ने कहा कि महामारी के दौरान घर से काम करने से उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। करीब 58 फीसदी पेशेवर घर से काम करने की वजह से खुद को स्वस्थ महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें बाहर का खाना ज्यादा नहीं खाना पड़ता है जबकि 51 फीसदी लोगों को घर से काम करते हुए अधिक बार व्यायाम करने का समय मिल जाता है।
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