वैश्विक स्तर पर परिवहन को एक के बाद एक कई झटके लगे हैं और उसमें काफी उथलपुथल की स्थिति है। समस्या गंभीर है और वह जल्द समाप्त होती नहीं दिखती। ये कठिनाइयां भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे महत्त्वपूर्ण इंजन को नुकसान पहुंचा रही हैं जिसका नाम है- निर्यात। इसके विपरीत निर्यात को लेकर रुझान काफी बढ़ा है और कंपनियों को हालात के मुताबिक नए तरीके तलाश करने होंगे। महामारी के बीच बड़े पैमाने पर उत्पादन और परिवहन रुक गया है। जब टीकाकरण और राजकोषीय प्रोत्साहन के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मांग ने जोर पकड़ा। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक उत्पादन शृंखलाओं में प्रक्रिया तेज हुई। विनिर्माण की मांग दुनिया भर में मजबूत रही है क्योंकि आम खपत सेवा के बजाय वस्तुओं की ओर स्थानांतरित हुई है।इस समय दुनिया भर में कंटेनर पोत अस्वाभाविक रूप से बंदरगाहों के किनारे अटके हुए हैं। स्वेज नहर का परिचालन बाधित है और कोविड के कारण एशिया के कई परिवहन केंद्रों में रुकावट है। परिवहन की कीमतें आसमान छू रही हैं। ब्रिटिश फर्म ड्रयूरी द्वारा संचालित ड्रयूरी वल्र्ड कंटेनर इंडेक्स के मुताबिक 40 फुट लंबे कंटेनर की कीमत गत वर्ष जहां 2,000 डॉलर थी, वहीं 2 सितंबर को यह 10,000 डॉलर हो गई। कुछ मामलों में ऐसे पोतों को भारत से प्रशांत महासागर की ओर भी मोड़ा गया है इसलिए भारत में हालत ज्यादा खराब है। ऊंची कीमतों के अलावा ऐसी भी खबरें हैं कि तत्काल उपलब्धता पर 100 फीसदी प्रीमियम है। हवाई मालवहन भी सीमित रहा है क्योंकि परिचालन पर कोविड प्रतिबंध लागू थे। वहां भी कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ। एक आधुनिक कार में 30,000 कलपुर्जे लगे होते हैं जो दुनिया भर में उत्पादित होते हैं। आधुनिक युग की समृद्धि के लिए वैश्विक विशेषज्ञता अनिवार्य है लेकिन इसके लिए सस्ते और विश्वसनीय परिवहन की जरूरत है। आपूर्ति शृंखला प्रबंधक साथ मिलकर हल निकालने में लगे हैं ताकि कठिन समय में भी उत्पादन जारी रह सके। वैश्विक उत्पादन 2021 के आखिर में त्योहारी मौसम में होने वाली मांग की तैयारी कर रहा है। इससे आखिरी चार महीनों में मालवहन की मांग बढऩे की आशा है।सन 2021 और 2022 में विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देने में इन समस्याओं की अहम भूमिका होगी। आर्थिक दलीलें हमें बताती हैं कि शुल्क संबंधी बाधाएं लोक कल्याण के लिए बाधा हैं। इस पर यह बात भी लागू होती है कि गैर शुल्कीय लागत भी लोक कल्याण के लिए बुरी है। वैश्विक स्तर पर मालवहन में सुधार के कारण ही वैश्वीकरण से समृद्धि आई। इसके विपरीत मालवहन की अधिक लागत ने बेहतरी को प्रभावित किया। भारतीय कंपनियों के लिए इसके चार निहितार्थ हैं:1. पारंपरिक परिस्थितियों में- गत वर्ष विश्व अर्थव्यवस्था में उत्पादन का एक निश्चित संगठन था। वह पूरी तरह अस्तव्यस्त है। हम इसे हर अंतरराष्ट्रीय रुझान वाली फर्म के लिए चुनौती के रूप में देख रहे हैं। यह एक अवसर भी है। सभी वैश्विक कंपनियां स्रोत की समस्या को रचनात्मक ढंग से हल करने का प्रयास कर रही हैं। दुनिया भर की कई कंपनियां आपूर्ति में चूक रही हैं। इसमें आपके लिए अवसर है। आप इस अंतर को पाट सकते हैं। 2. पारंपरिक परिस्थितियों में वस्तुओं के परिवहन की परिपक्व प्रणाली थी और विदेशी मुद्रा में क्रय-विक्रय के अवसर बहुत कम थे। उदाहरण के लिए भारत में कोई मशीन खरीदकर उसे श्रीलंका में बेचने पर कोई खास कमाई नहीं थी। दुनिया भर में इन उपकरणों की कीमत में इतना उतार-चढ़ाव है कि उद्यमियों के लिए बहुत अवसर हो सकते हैं। वास्तविक अर्थव्यवस्था में काम कर रही कंपनियों को इन अवसरों को पहचानने और इनका लाभ लेने पर ध्यान देना चाहिए। 3. पारंपरिक परिस्थितियों में, हमें पता था कि ऑस्ट्रेलिया से मद्रास कोयला लाना ज्यादा आसान है बजाय कि बिहार से लाने के। भारतीय उपमहाद्वीप में काम कर रही कंपनियां आमतौर पर कारोबार के लिए बाहर नजर डालती हैं। लेकिन अगर सीमा पार परिवहन की लागत बढ़ती है तो दक्षिण एशिया के भीतर से माल जुटाना ज्यादा आसान होगा। अब भारतीय उपमहाद्वीप में यहीं से माल हासिल करने के कई स्रोत हैं। मुनाफे के ये अवसर स्थापित कारोबारी रिश्तों की तयशुदा लागत भी चुका सकते हैं और इस क्षेत्र के एक कमजोर उत्पादक को गति प्रदान कर सकते हैं। भारतीय सीमा से लगने वाले जमीनी मार्ग अधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि हवाई और समुद्री मार्ग अधिक महंगे हैं। ऐसे में भारत-पाकिस्तान व्यापार को दुबई के बजाय सीमा के जरिये व्यवस्थित करना अधिक बेहतर होगा। 4. करीब एक वर्ष से यह बात स्पष्ट है कि भारतीय कंपनियां उन देशों की मांग से फायदा उठा सकती हैं जहां टीकाकरण और राजकोषीय प्रोत्साहन की क्षमता है। हर फर्म के नेतृत्व को विदेशी बाजार को प्राथमिकता देनी चाहिए। कुछ हद तक अब यह निर्यात के आंकड़ों में नजर भी आने लगा है। बहरहाल, वैश्विक मालवहन में उत्पन्न विसंगति बताती है कि भारतीय निर्यातकों की वृद्धि का मसला आगामी 18 महीने के घटनाक्रम पर निर्भर करेगा। विदेशी ग्राहकों पर जोर देने का बुनियादी संदेश निर्यात के आंकड़ों से जाहिर स्थिति की तुलना में कहीं अधिक मजबूत है। भारतीय राज्य के लिए महामारी के बाद प्रमुख आर्थिक नीति की प्रतिक्रिया कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। व्यापारिक गतिरोध समाप्त करने के लिए और भारतीय कंपनियों के लिए कच्चे माल की लागत कम करने के लिए तथा भारतीय कंपनियों को वैश्विक सुधार प्रक्रिया का लाभ दिलाने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। यह संदेश ऐसे समय में और महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब परिवहन की लागत ने सीमा पार गतिविधियों में इजाफा कर दिया है। अब वक्त आ गया है कि हम भारतीय राज्य द्वारा संचालित व्यापार पर करीबी नजर डालें और तमाम व्यापार गतिरोधों को यथासंभव समाप्त करें। हमें दक्षिण एशिया में ऐसी परिस्थितियां बनानी होंगी ताकि हम भारतीय प्रायद्वीप की अंतरराष्ट्रीय रुझान रखने वाली कंपनियों को रेल और सड़क के जरिये कच्चा माल मुहैया करा सकें।इसके साथ ही बुनियादी ढांचे की जमीनी हकीकत की समीक्षा और मूल्य समायोजन के लिए गतिरोध समाप्त करने की भी जरूरत है। यह मास्क या टीके जैसी स्थिति है। अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र की ओर से मालवहन सेवा पर जोर बढ़ाने की आवश्यकता है। बाजार अर्थव्यवस्था मूल्य संकेतों से इसे हासिल करती है। मूल्य में राज्य का हस्तक्षेप आपूर्ति को प्रभावित करता है। (लेखक पुणे इंटरनैशनल सेंटर में शोधकर्ता हैं)
