खाने-पीने का सामान ऑनलाइन ऑर्डर पर घर पहुंचाने वाली जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियों से रेस्तरां सेवाओं की आपूर्ति पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मांगा जा सकता है। इस कदम का मकसद राजस्व नुकसान को रोकना है। शुक्रवार को लखनऊ में होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक में इस बारे में विचार किया जाएगा। 2019-20 और 2020-21 में इस मद में करीब 2,000 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान का अनुमान है। ऐसे में फिटमेंट समिति ने फूड एग्रीगेटर को ई-कॉमर्स ऑपरेटर की श्रेणी में रखने और रेस्तरां की ओर से उनसे जीएसटी वसूले जाने की सिफारिश की है। पता चला है कि कई रेस्तरां सरकार को जीएसटी नहीं देते हैं और कुछ पंजीकृत हीनहीं हैं। फिटमेंट समिति ने नई व्यवस्था 1 जनवरी, 2022 से लागू करने का सुझाव दिया है ताकि फूड डिलिवरी करने वाली कंपनियां अपने सॉफ्टवेयर में जरूरी बदलाव कर सकें।हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इससे रेस्तरां को ऑनलाइन फूड एग्रीगेटर के जरिये बिक्री और सीधे बिक्री के लिए अलग-अलग बहीखाते होंगे, जो छोटे रेस्तरांओं के लिए बेकार की कवायद हो जाएगी। समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि 7,500 रुपये और इससे अधिक प्रति कमरा किराये वाले होटल के परिसर में मौजूद रेस्तरांओं द्वारा दी जाने वाली सेवा को इससे अलग रखा जा सकता है। जीएसटी अधिकारियों को कई छोटे रेस्तरां के जीएसटीआर 3बी फॉर्म में घोषित कारोबारी आय और स्विगी या जोमैटो द्वारा भरे गए जीएसटीआर-8 फॉर्म में घोषित उनके कारोबार में करोड़ों रुपये का अंतर मिला है। जीएसटी के अंतर्गत ई-कॉमर्स ऑपरेटर हर महीने जीएसटीआर 8 फॉर्म में रिटर्न भरते हैं। इसमें करदाता ई-कॉमर्स पोर्टल द्वारा ग्राहकों को की गई आपूर्ति का ब्योरा रहता है। इसमें पंजीकृत करदाता इकाइयों और गैर-पंजीकृत इकाइयों, ग्राहकों, स्रोत पर कर संग्रह और भुगतान योग्य कर एवं अदा किए गए कर का ब्योरा होता है।एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'स्विगी या जोमैटो ने रेस्तरां का पंजीकरण जांचना अनिवार्य नहीं किया है और गैर पंजीकृत रेस्तरां भी इनके पोर्टल के जरिये खाने-पीने का सामान बेचते हैं।' उन्होंने कहा कि रेस्तरां पर कर की दर 5 फीसदी ही है लेकिन इसका कारोबार काफी बड़ा है। इसका मतलब है कि इसमें कर चोरी भी बड़े पैमाने पर होती है। कोविड के दौरान एग्रीगेटरों के जरिये खाने-पीने के सामान की आपूर्ति कई गुना बढ़ गई है। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां कर तो ले लिया जाता है मगर सरकार को नहीं दिया जाता। फिटमेंट समिति के अनुमान के अनुसार 2019-20 और 2020-21 में करीब 15,000 करोड़ रुपये की कर योग्य आय दिखाई ही नहीं गई है, जिससे करीब 2,000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है।
