ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) लागू होने के बाद भी कर्जदाता बैंकों को बहुत कम ऋण वसूली होने से इस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने भी सोमवार को कहा कि किसी परिसंपत्ति के लिए कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) द्वारा समाधान योजना एक बार स्वीकृत हो जाने के बाद इसे न तो संशोधित किया जा सकता है और न ही उसे वापस लिया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि कर्जदार कंपनी की परिसंपत्तियों की बिक्री के लिए 330 दिनों की समयसीमा का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। हाल ही में वित्त संबंधी संसदीय समिति ने वैश्विक मानकों के बरक्स बैंकों को होने वाले कर्ज नुकसान (हेयरकट) का एक बेंचमार्क तय करने का सुझाव दिया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर समेत तमाम जानकार लंबित मामलों के निपटारे में देरी की तरफ इशारा किया है।केयर रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय जारी 1,682 दिवालिया मामलों में से करीब 75 फीसदी 270 दिनों से अधिक विलंब से चल रहे हैं। इसके अलावा 9.2 लाख करोड़ रुपये के करीब 13,170 मामले एनसीएलटी के समक्ष समाधान की राह देख रहे हैं जिनमें से करीब 71 फीसदी मामले 180 दिनों से ज्यादा समय से लंबित हैं। हालांकि फंसे हुए कर्जों से होने वाली औसत वसूली आईबीसी कानून आने के बाद से खासी बढ़ी है लेकिन चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह घटकर 25.5 फीसदी रह गई। इस तरह कुल कर्ज वसूली भी कम होकर 36 फीसदी पर आ गई है। पिछली दस तिमाहियों में आईबीसी के तहत अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन पहली तिमाही में यह संख्या घटकर 126 रह गई जो मार्च तिमाही में करीब 250 थी।
