अनुभव और क्षेत्र विशेष की विशेषज्ञता की कमी से लेकर एक स्वतंत्र नियामक का अभाव तक समाधान पेशेवरों (आरपी) का समूचा क्षेत्र ही संदेह के दायरे में आ गया है। एक ओर जहां इनमें से कुछ मुद्ïदे स्थायी समिति ने अपनी हालिया रिपोर्ट में उठाए थे, वहीं सरकारी सूत्रों ने इस बात पर जोर दिया कि आरपी के लिए पहले से ही पर्याप्त मात्रा में नियंत्रण और संतुलन है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि सहकर्मी समीक्षा या ऑडिट और एकल नियामक से पेशे के दृष्टिïकोण में एकरूपता लाने में मदद मिलेगी। फिलहाल भारतीय ऋणशोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के साथ साथ विभिन्न ऋणशोधन अक्षमता पेशेवर एजेंसियां (आईपीए) ऋणशोधन अक्षमता पेशेवरों के कार्यों को देखते हैं। स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस रवैये की आलोचना की थी और कहा था कि इस तरह तो नियामक और आईपीए की प्रतिस्पर्धी भूमिका के मध्य हितों के टकराव की नौबत आ जाएगी। उसने सिफारिश की कि समाधान पेशेवरों की एक संस्था को पेशेवर स्वनियामक के तौर स्थापित किया जाए ताकि वहां उचित मानक और निष्पक्ष स्व नियमन की व्यवस्था कायम हो सके। हालांकि एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इससे अलग मत जाहिर किया। उन्होंने कहा, 'एक स्वतंत्र निकाय के जरिये हितों का टकराव समाप्त नहीं होगा, क्योंकि वह संस्था भी आईपीए की तरह ही पेशेवर का विकास करेगी। उदाहरण के लिए स्टॉक एक्सचेंज अपने ब्रोकरों पर अपने स्तर से ही नियमन करता है। हितों के टकराव के समाधान का तंत्र आईबीसी में मौजूद है।' उन्होंने यह भी कहा कि ऋणशोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता (आईबीसी) आईपीए के लिए एक प्रतिस्पर्धी उद्योग बनाने का प्रयास करती है। एक ओर जहां आरपी सहित कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि व्यवस्था में पहले से ही पर्याप्त नियंत्रण मौजूद है, वहीं कई अन्य का कहना है कि और भी बहुत कुछ किए जाने की गुंजाइश है।
