वोडाफोन आइडिया को सरकारी सहायता के संबंध में अभी कैबिनेट नोट तैयार नहीं हुआ है। हालांकि दूसरंचार विभाग और वित्त मंत्रालय के बीच इस पर चर्चा अग्रिम चरण में पहुंच गई है। पिछले हफ्ते उम्मीद की जा रही थी कि पैकेज का मामला कैबिनेट तक पहुंच जाएगा और उसकी घोषणा हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि विभाग इस पर सतर्कता से आगे बढ़ा चाह रहा है। कैबिनेट नोट बनाने में केंद्र सरकार की चुनौती राहत पैकेज बनाने को लेकर है। एक आला अधिकारी ने यह जानकारी दी। साथ ही इस संबंध में कोई नजीर भी नहीं है। केंद्र सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनी के लिए अपने बजट की रकम का इस्तेमाल कर पैकेज कभी नहीं बनाया है, ऐसे में किसी भी विकल्प पर विचार नहीं हो रहा है, जिसमें समायोजित सकल राजस्व के भुगतान पर मोहलत और स्पेक्ट्रम यूजेज चार्जेज में कमी का मामला शामिल है, जिस पर नजीर उपलब्ध है। विकल्प हमेशा से यह रहा है कि कर से संबंधित पेशकश की जाए और वह भी क्षेत्रीय समर्थन के तौर पर। वोडाफोन आइडिया पर बैंकों व सरकार का संचयी कर्ज 1.92 लाख करोड़ रुपये है। अगर कंपनी भारत में कामकाज समेटती है तो भारत में दूरसंचार सेवा क्षेत्र मे दो दिग्गज कंपनी रह जाएगी - भारती एयरटेल और रिलायंस जियो। सरकारी कंपनी बीएसएनएल और एमटीएनएल पहले से ही बीमार हैं और चालू बने रहने के लिए सरकारी सहायता पर आश्रित हैं। डिजिटल कायापलट के लिए भारत में महज दो ऑपरेटर का होना भी जोखिम भरा है। वोडा आइडिया के साथ दोनों सरकारी कंपनियों के विलय की संभावना को पहले ही खारिज किया जा चुका है।मामला और भी जटिल हो गया है क्योंकि दूरसंचार सचिव अंशु प्रकाश सितंबर के आखिर में अवकाश प्राप्त करेंगे। दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव भी महज दो महीने पहले ही मंत्री बने हैं। ऐसे में ऊपरी स्तर पर चर्चा चल रही है कि क्या राहत पैकेज पर प्रभावी कामकाज के लिए दूरसंचार विभाग में ओएसडी की नियुक्ति की जानी चाहिए। चूंकि यह जटिल कवायद होगी, ऐसे में नए दूरसंचार सचिव का इंतजार किया जा सकता है। केंद्र यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि असामान्य सहायता से कहीं यह कंपनी बीएसएनएल व एमटीएनएल की राह पर तो नहीं निकल जाएगी। ये सरकारी कंपनियां अब पूरी तरह से बजटीय सहायता पर आश्रित है और केंद्र सरकार इसे दोहराना नहीं चाहेगी।
