संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के किसान फिलहाल अपनी मांग को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्ïटर के विधानसभा क्षेत्र करनाल में डटे हुए हैं। उनकी योजना अगले छह महीने में लखनऊ, वाराणसी और गोरखपुर सहित विभिन्न शहरों में 17 बड़ी बैठकें करने की है। मोर्चा ने 27 सितंबर को अखिल भारतीय आंदोलन का आह्वïान किया है। आंदोलन से पहले केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ 25 सितंबर को हरियाणा के जींद में विपक्ष के नेताओं की एक बैठक आयोजित की जाएगी जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गठबंधन सहयोगी दल के नेता भी शामिल होंगे। मौजूदा परिस्थितियों में भाजपा जब तक नुकसान की भरपाई के लिए कदम उठाएगी तब तक दूसरी तरफ उसे उत्तर प्रदेश में किसानों के प्रदर्शन से छवि को नुकसान पहुंचेगा जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं। मामला इस रूप में और अधिक जटिल हो जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित किसानों का एक वर्ग आंदोलन में सक्रिय भागीदारी तो नहीं कर रहा है लेकिन विरोध के केंद्रीय मुद्ïदे को उन्होंने अपना समर्थन दिया है। पार्टी ने किसानों से संपर्क करने की योजना बनाई थी लेकिन कई कारणों से इस पर काम नहीं हो सका है। यूपी में भाजपा के किसान मोर्चा के प्रमुख कामेश्वर सिंह ने घोषणा की थी कि पार्टी 16 अगस्त से एक बड़ा किसान संपर्क कार्यक्रम शुरू करेगी जिसमें लखनऊ में की जाने वाली एक बड़ी किसान रैली भी शामिल थी। इसके बाद बिना कोई स्पष्टïीकरण दिए उन योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और उनकी जगह कई जिलों में छोटे स्तर पर किसानों से संवाद की योजना बनाई गई। पार्टी ने कहा है कि अब वह गन्ना पेराई सीजन और रबी की बुआई शुरू होने पर पर बैठकें करेगी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'मुझे समझ नहीं आता कि किसान कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन क्यों कर रहे हैं। इन कानूनों के माध्यम से उन्हें अपनी मर्जी से जहां चाहें वहां अपनी उपज बेचने की आजादी दी गई है।'हालांकि, स्पष्ट है कि मामला महज कृषि कानूनों या इस बात का संदेह की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त हो जाएगा और सरकार की ओर से खरीद बंद हो जाएगी, तक सीमित नहीं है। आरंभ में किसानों की सभाओं में राजनेताओं के शामिल होने पर मनाही थी लेकिन अब वे बैठकों में आने के लिए स्वतंत्र हैं। 25 सितंबर को राजनेताओं द्वारा समानांतर मंच को संबोधित किया जाना इस बात की तस्दीक करता है कि चुनावी राजनीति आगे बढ़ रहे किसान प्रदर्शनों का अहम हिस्सा बनने जा रही है। यूपी में नुकसान से बचने के प्रयास के तौर पर भाजपा सरकार ने कई कदम उठाए हैं। उसने पिछले महीने गन्ने के लिए राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में वृद्घि की थी और किसानों के खिलाफ पराली जलाने के सभी मामलों को वापस लिया है।हालांकि, भाजपा को दिक्कत अपने अनुषंगी संगठनों से भी हो रही है।
