एलआईसी म्युचुअल फंड ऐसेट मैनेजमेंट के इक्विटी प्रमुख योगेश पाटिल ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में इक्विटी बाजारों के लिए आगामी राह, अपनी निवेश रणनीति और जून तिमाही नतीजों पर अपने विचार पेश किए। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश: रिकॉर्ड ऊंचे स्तरों की वजह से क्या आप बाजारों पर किसी तरह के दबाव की आशंका देख रहे हैं?बाजार अब वित्त वर्ष 2022-23 की आय पर ध्यान दे रहे हैं। दूसरी तिमाही के लिए कॉरपोरेट आय का प्रमुख इक्विटी बाजार पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ सकता है, भले ही हम शेयर-केंद्रित प्रतिक्रियाएं देख सकते हैं। जहां तीसरी लहर का खतरा बना हुआ है, वहीं विकसित देशों के रुझानों, टीकाकरण में तेजी को देखते हुए दूसरी लहर के मुकाबले अस्पताल में भर्ती होने की दर में कमी सुनिश्चित की जा सकती है। अगले कुछ महीनों के दौरान इक्विटी सेगमेंट - घरेलू और विदेशी में पूंजी प्रवाह के लिए आगामी राह कैसी रहेगी?उभरते बाजारों (ईएम) में पूंजी प्रवाह वैश्विक रुझानों, ब्याज दर चक्र, और खास परिसंपत्तियों के साथ साथ देशों से संभावित प्रतिफल से निर्धारित होगा। भारत के लिए, बुनियादी आधार हमें विदेशी प्रवाह के संदर्भ में मजबूत स्थिति में ला सकता है। मैं मानता हूं कि इक्विटी में घरेलू प्रवाह बचत के वित्तीयकरण की वजह से भी बना रहेगा। आप कौन से क्षेत्रों पर ओवरवेट और अंडरवेट हैं?हम टेक्नोलॉजी, निजी क्षेत्र के वित्त, गैस, इन्फ्रास्ट्रक्चर, और निर्यात-केंद्रित दांव पर सकारात्मक बने हुए हैं जिनमें लगातार आय अपग्रेड देखे जा सकते हैं। वहीं हम उन क्षेत्रों/कंपनियों पर अंडरवेट बने हुए हैं जिनमें जोखिम स्पष्टï दिख रहे हैं और आय को लेकर अनिश्चितता है, जैसे जिंस और ज्यादा कर्ज वाले व्यवसाय।भारतीय उद्योग जगत के पहली तिमाही के परिणाम से आपने क्या सबक लिया है?जहां इस तिमाही पर आंशिक लॉकडाउन/कई राज्यों में दूसरी लहर की वजह से सिर्फ त्रैमासिक आधार पर प्रभाव पड़ा, वहीं अनुकूल आधार से राजस्व और मुनाफे को सालाना आधार पर मजबूती मिली है। लगभग सभी क्षेत्रों से प्रतिक्रियाएं सकारात्मक हैं और टीकाकरण रफ्तार से भरोसा बढ़ रहा है। जिंस कीमतों में तेजी भी एक समस्या है। उद्योग जगत इससे कैसे निपट सकता है?अल्पावधि में जिंस कीमतों में भारी तेजी से उत्पादकों के लिए समस्या पैदा हो रही है, क्योंकि वे अल्पावधि में इसका बोझ उपभोक्ता पर डालने में सक्षम नहीं हैं। हालांकि जब जिंस कीमतें स्थिर होंगी, तो हम उपभोक्ताओं पर लागत वृद्घि का बड़ा बोझ डाल सकेंगे। क्या इससे खपत प्रभावित हो सकती है?हां, अल्पावधि में इससे खपत प्रभावित हो सकती है। हालांकि दीर्घावधि में, खपत की स्थिति मजबूत बनी रह सकती है, क्योंकि कंपनियां बेहतर, लागत किफायती विकल्प तलाश रही हैं या संपूर्ण प्रभाव घटाने के लिए उत्पादों में बदलाव ला रही हैं। क्या स्क्रैपेज पॉलिसी, ओला के ई-स्कूटर की पेशकश ऐसे बदलाव हैं जिनकी वाहन क्षेत्र को ऐसे समय में जरूरत नहीं है जब वह अन्य समस्याओं से पहले ही जूझ रहा है?वाहन शेयरों ने पिछले एक साल में कमजोर प्रदर्शन किया है। इसकी मुख्य वजह विद्युतीकरण के रुझान में तेजी आना है, खासकर दोपहिया के मामले में। इसके अलावा सेमी-कंडक्टर की किल्लत से भी कई कंपनियों के उत्पादन शिड्यूल प्रभावित हुए हैं, जिनसे मार्जिन दबाव बढ़ा है। आकर्षक कीमतों पर ओला ई-स्कूटर की पेशकश का आईसीई स्कूटर सेगमेंट पर प्रभाव पड़ सकता है।
