माल भाड़े की उच्च दरों और जहाजों तथा कंटेनरों की कमी के कारण निर्यातकों के समक्ष संकट की तलवार लटक रही है।
इन दो कारणों से आगामी क्रिसमस सीजन के बर्बाद होने की आशंका जताई जा रही है।
निर्यात उद्योग से जुड़ी विभिन्न कंपनियों ने नौवहन कंपनियों पर आपस में साठगांठ करने का आरोप लगाते हुए सरकार से संपर्क साधा है। उन्होंने सरकार से अंतरराष्टï बर्चस्व को तोडऩे के लिए इसमें हस्तक्षेप करने और अपने निर्देशन में बड़ी नौवहन कंपनी की स्थापना करने की मांग की है।
निर्यातकों ने नौवहन कंपनियों पर अपने आरोप के सुबूत के तौर पर गत एक वर्ष के दौरान शीर्ष 10 नौवहन कंपनियों के पदर्शन को आधार बनाया है। इस सूची में एक भारतीय कंपनी शामिल नहीं है। 2020 के मुकाबले 2021 में इन शीर्ष 10 कंपनियों के औसत परिचालन लाभ में 12 गुना, राजस्व में 66 फीसदी, मार्जिन 27 फीसदी और शुद्घ लाभ में 19,754 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ऐसा कम आधार, मात्रा में वृद्घि और माल भाड़ा दरों में बढ़ोतरी के दम पर हुआ है। चालू वित्त वर्ष में इनमें और अधिक वृद्घि होने की संभावना है। पिछले हफ्ते जहाजरानी मंत्रालय के साथ बैठक में मसाला निर्यातक क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले एक वर्ष में इन शीर्ष 10 में से कम से कम छह नौवहन कंपनियों ने 30 गुना अधिक शुद्घ लाभ दर्ज किया है।
इंडियन स्पाइसेज ऐंड फूडस्टफ एक्सपोट्ïर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हितेश गुटका ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'ऐसा लगता है कि शीर्ष नौवहन कंपनियों ने एक गठजोड़ कायम कर लिया है और माला भाड़े की दरों को नियंत्रित कर रहे हैं क्योंकि वे जानती हैं कि ये कमी और सकंट 2023 की पहली तिमाही तक जारी रहेगा। हम चाहते हैं कि सरकार एक बड़ी नौवहन कंपनी बनाए या फिर भारतीय नौवहन निगम के दायरे को बढ़ाए। या फिर यह भी हो सकता है कि एस्सार और ग्रेट ईस्टर्न शिपिंग जैसी निजी कंपनियों के साथ साझेदारी की जाए। इससे भारत के लिए जहाज की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।'
निर्यातक कह रहे हैं कि नौवहन कंपनियां बदरगाहों का कॉल स्वीकार नहीं कर रही हैं जिससे खाली नौकायन हो रहा है और विभिन्न बंदरगाहों के मध्य पारगमन का समय भी बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए वैंकूवर के लिए पारगमन की अवधि करीब 35 दिन है जो अब बढ़कर 80 दिन हो चुका है। जो जहाज बंदरगाहों को कॉल भी कर रहे हैं वे भी कार्गो स्वीकार नहीं कर रहे जिसके कारण भारतीय बंदरगाहों पर निर्यात किए जाने वाले सामान अटके पड़े हैं। निर्यातकों ने कहा कि इस वजह से विलंब शुल्क लग रहा है और कई बार ठेका रद्ïद होने की नौबत आ जाती है।
तमिलनाडु शिपिंग मिल्स एसोसिएशन (तस्मा) में सलाहकार के वेंकटचलम ने कहा, 'सर्दियों के आर्डर क्रिसमस सीजन को ध्यान में रखकर दिए जाते हैं और यह महत्त्वपूर्ण होने जा रहा है क्योंकि हमारे देश से निर्यातकों के लिए यह समय लाभ की दृष्टिï से सबसे मुफीद है। कंटेनरों की कमी, खाली नौकायन और पारगमन में देरी से तो हम जूझ ही रहे हैं इसके अलावा मालभाड़े की उच्च दरों से लंबे वक्त के लिए हमारे कारोबार पर असर पडऩे की आशंका है क्योंकि हमें इस बात का भय है कि उपभोक्ता दूसरे देशों का रुख कर सकते हैं।'
मसाला संगठन ने कहा कि पिछले एक वर्ष में कोचिन से मेलबोर्न जैसे शहरों के लिए माल भाड़ा 10 गुना तक बढ़ चुका है। जबकि हैम्बर्ग-मुंद्रा जैसे अन्य मार्गों पर भी किराया 8 गुना से अधिक बढ़ चुका है।
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