गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि भारत को वर्चुअल प्राइवेट नेटवक्र्स (वीपीएन) पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। शायद समिति को अपने दायित्वों के निर्वहन के दौरान यह पता चला कि वीपीएन संभवत: गुमनाम ऑनलाइन गतिविधियों को इजाजत दे सकते हैं और इसलिए उसने गृह मंत्रालय से कहा है कि वह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ सहयोग करके एक तालमेल वाली प्रणाली विकसित करे ताकि वीपीएन पर रोक लगाई जा सके।
यह अनुशंसा करते हुए स्थायी समिति ने यह भी जाहिर कर दिया कि तकनीकी और तकनीक संबंधी विषयों पर सांसद काफी हद तक अनभिज्ञ हैं। एक उदार लोकतांत्रिक देश में निगरानी से बचाव के अधिकार का सवाल केवल ऐसा ही सत्ता प्रतिष्ठान ही नकार सकता है जो केवल सुरक्षा को तरजीह देता हो। लेकिन यह बात समझ से परे है कि सांसदों की एक समिति बल्कि एक ऐसी समिति जिसका नेतृत्व विपक्षी दल कांग्रेस के पास हो, वह ऐसी अनुशंसा करेगी जिसकी प्रकृति और अधिक दमनकारी हो और जो राष्ट्रीय सुरक्षा वाले राज्य के तरकश में और अधिक तीर मुहैया करा रही हो।
यदि देश में वीपीएन पर प्रतिबंध लगता है तो यह रूस, चीन, बेलारूस, वेनेजुएला, तुर्की और खाड़ी देशों की सूची में शामिल हो जाएगा। तब यह शासन या स्वतंत्रता के मायनों में आदर्श नहीं रह जाएगा। यह प्रस्ताव आर्थिक दृष्टि से भी बहुत दिक्कतदेह होगा। महामारी के दौरान किए गए कई अध्ययन यह दिखा चुके हैं कि देश में वीपीएन का इस्तेमाल करने वाले सात गुना तक बढ़े हैं। कई आधुनिक कारोबारों मसलन उच्च मूल्य वाले सेवा क्षेत्र आदि के सुचारु परिचालन के लिए वीपीएन अनिवार्य हैं। वे शाखा कार्यालयों को कॉर्पोरेट नेटवर्क में समुचित संलग्रता के साथ काम करने में मदद करते हैं और दूरदराज जगहों पर बैठकर काम करने के इस नए युग में कर्मचारियों को समुचित डेटा सुरक्षा के साथ लेनदेन करने और मंजूरियों की इजाजत देते हैं। उदाहरण के लिए शेयर बाजार के कई कारोबारियों के लिए घर से काम करना मुश्किल हो जाएगा। कई ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म को भी कारोबार के लिए तथा संपर्क कायम करने के लिए घरेलू वीपीएन की आवश्यकता होती है। यह धारणा गलत है कि वीपीएन का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था में योगदान करने वाले नहीं बल्कि अपराधी करते हैं। ऐसे में समिति को अपने सुझावों पर दोबारा विचार करना चाहिए।
वीपीएन के खिलाफ कोई भी कदम डिजिटल इंडिया को बहुत गहरे तक प्रभावित करेगा। वीपीएन को प्रतिबंधित करने का प्रयास कोई छोटी बात नहीं। यहां तक कि चीन में जहां व्यापक और सुप्रशिक्षित अफसरशाही को अपने इंटरनेट को शेष विश्व से सुरक्षित रखने का प्रशिक्षण दिया गया है वहां भी केवल उन्हीं वीपीएन को ब्लॉक किया जाता है जिनकी विश्वसनीयता कम हो। अन्य देशों में जहां सरकारी क्षमता भारत से भी कम है और जिन्होंने वीपीएन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया है, उनकी समस्त दूरसंचार क्षमता पर नकारात्मक असर हुआ है। उदाहरण के लिए ईरान का इंटरनेट हद से ज्यादा धीमा है क्योंकि वहां किसी वीपीएन से गुजरने वाले हर इंटरनेट ट्रैफिक की निगरानी का प्रयास किया जाता है। खुशकिस्मती है सरकार की समझ सांसदों से बेहतर प्रतीत होती है। बीते एक वर्ष में दूरसंचार विभाग ने लगातार अन्य सेवा प्रदाताओं के संचालन मानकों को उदार बनाया है। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए किया गया कि सेवा केंद्र वीपीएन के इस्तेमाल के साथ अंतरराष्ट्रीय कॉल और डेटा नेटवर्क को समुचित ढंग से एकीकृत कर सकें। इससे ऐसे समय पर लागत कम होने और प्रतिस्पर्धा में सुधार होने की आशा है जब आईटी सेवा क्षेत्र में सुधार की भी अत्यधिक आवश्यकता है। आशा है कि सरकार इस सलाह की अनदेखी करके डिजिटल इंडिया की संभावनाओं का संरक्षण करेगी।
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