तीन कृषि कानूनों के खिलाफ रविवार को देश भर के किसान संगठनों की पंचायत में सैलाब उमड़ पड़ा। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जुटी किसानों की भारी भीड़ ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। किसानों के मंच से 27 सितंबर को भारत बंद का ऐलान किया गया है।
पंचायत को संबोधित करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि उनके संयुक्त मोर्चे के सामने अब सवाल केवल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड नहीं, बल्कि पूरा देश बचाने का है और इसके लिए किसान जी जान से जुटेंगे। उन्होंने कहा कि आज मुद्दा खेती-किसानी बचाने का है, जिसके लिए यह आंदोलन शुरू किया गया है। हाल ही में घोषित वाहन नीति को आड़े हाथों लेते हुए टिकैत ने कहा कि 10 साल पुराने ट्रैक्टर को कबाड़ बताना भी किसानी खत्म करने के लिए है।
गन्ने की कीमत न बढ़ाने पर उत्तर प्रदेश सरकार को घेरते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव घोषणा-पत्र में तो 450 रुपये क्विंटल का वादा था, पर हुआ कुछ भी नहीं। टिकैत ने कहा कि इससे पहले की सरकारों ने क्रमश: आठ रुपये और 50 रुपये कीमत बढ़ाई, पर क्या वर्तमान सरकार उनसे भी कमजोर है। उन्होंने कहा कि किसानों का 12,000 करोड़ रुपये गन्ना मूल्य बकाया है, पर मांगने वालों को देश विरोधी करार दिया जाता है। किसान यूनियन नेता ने कहा कि हमारी लड़ाई तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ है और हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी चाहिए।
निजीकरण पर जोरदार हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में कहीं नहीं था कि पूरा देश बेच देंगे, पर सरकार जनता को धोखा देते हुए रेल, बिजली, सड़क सहित सारी सरकारी संपत्ति बेचने जा रही है। उन्होंने कहा कि देश बिकाऊ है, यही इस सरकार की नीति है। सरकार जल, जो जीवन रेखा होती है, उसे भी बेच रही है। सरकार ने कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी, जबकि विधायकों व सांसदों की पेंशन जारी है।
टिकैत ने कहा कि देश का संविधान खतरे में है जिसे हर हाल में बचाना है। उन्होंने कहा कि आंदोलन कर रहे 650 किसान शहीद हो गए, पर प्रधानमंत्री ने एक मिनट का मौन भी नहीं रखा। रविवार की महापंचायत में जाति-धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठ कर किसानों का रैला जुटा और केंद्र सरकार सहित प्रदेशों की सरकारों के खिलाफ आंदोलन का ऐलान किया गया। मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित इस महापंचायत में सुबह से ही पूरा स्थल भीड़ से भर गया था। दोपहर तक किसान आसपास की सड़कों पर और पूरे शहर में फैल गए थे। रैली में हालांकि सबसे ज्यादा तादाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों की थी, लेकिन अन्य राज्यों से भी काफी लोग इसमें शामिल हुए। महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय 60 किसान संगठनों के नेता मौजूद रहे। पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी इसमें हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर से भी किसान रैली में शामिल होने पहुंचे थे। दक्षिण के तमिलनाडु, कर्नाटक सहित पश्चिम के महाराष्ट्र जैसे राज्यों से भी किसानों के प्रतिनिधियों की नुमाइंदगी पंचायत में नजर आई। आंदोलन को गैर राजनैतिक स्वरुप देते हुए किसान संगठनों ने किसी भी पार्टी के नेता को मंच पर जगह नहीं दी। हालांकि इस महापंचायत को राष्ट्रीय लोकदल, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, दलित नेता चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी सहित लगभग सभी विपक्षी दलों ने अपना समर्थन दिया था। गौरतलब है कि मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर किसान लगभग आठ महीने से आंदोलन कर रहे हैं। महापंचायत में किसानों की उम्मीद से कहीं ज्यादा भीड़ उमडऩे के बाद प्रशासन ने एहतियात के तौर पर इंटरनेट और मोबाइल पर बातचीत की सेवाएं रविवार दोपहर से बंद कर दी थीं।
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