भारतीय ऋणशोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) की ओर से ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) के लिए आचार संहिता का प्रस्ताव लाने के मसले पर उद्योग जगत का मानना है कि इस कवायद की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि सीओसी पहले से ही अच्छी तरह से विनियमित है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि इस तरह की संहिता आने पर मुकदमेबाजी बढ़ सकती है जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है। पिछले हफ्ते ऋणशोधन अक्षमता नियामक ने अपने चर्चा पत्र पर सुझाव आमंत्रित किए थे जिसमें सीओसी के लिए आचार संहित लाए जाने का सुझाव दिया गया है। इसमें आईबीबीआई ने कहा है कि कई बार सीओसी की कार्रवाई संहिता के उद्ïदेश्यों के लिए घातक रहा है। आईबीबीआई ने कहा है कि सीओसी बिना किसी नियमन के माहौल में कार्य करती है। उसने सामधान योजनाओं के लिए अनुरोध और कॉर्पोरेट ऋणशोधन अक्षमता समाधान प्रकिया में स्विस चुनौती के उपयोग पर प्रतिबंधों का भी प्रस्ताव दिया है। सराफ ऐंड पार्टनर्स में पार्टनर बीकेश झावर ने कहा, 'चूंकि सीओसी बैंकों, एनबीएफसी, म्युचुअल फंडों जैसे अच्छी तरह से विनियमित संस्थाओं से बनी होती है ऐसे में आचार संहिता की कोई आवश्यकता नजर नहीं आती। सीओसी के कार्य में एक उच्च स्तरीय विश्लेषण की जरूरत होती है जहां उन्हें साझेदारों के हितों को संतुलित, मूल्य में अधिकतम करना होता है और समाधान के लिए कार्य करना होता है। ऐसे कार्य निर्देशात्मक समाधानों का पालन नहीं करते।'हालांकि, चूंकि सीओसी आईबीसी का एक निर्माता है ऐसे में समिति के लिए एक आचार संहिता और एक स्थापित प्रक्रिया का विचार असामान्य बात नहीं है। कानूनी विशेषज्ञ यह भी इंगित करते हैं कि धारा 24 (8) के साथ पठित धारा 240 (2)(आर) सीओसी की बैठकें संचालित करने के तरीके का निर्देश देने के लिए आईबीबीआई को अधिकार देती है। लिहाजा बोर्ड को बैठक आयोजित करने के तरीके का निर्देश देने का अधिकार है जिसमें सीओसी सदस्यों के लिए आचार संहिता को शामिल किया जा सकता है।
