बैंकों के लॉकरों के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक ने संशोधित दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं, जिनसे ग्राहकों को बड़ी राहत मिल सकती है। नए प्रावधानों से लॉकरों के परिचालन में पारदर्शिता बढऩे की उम्मीद है। लॉकर आवंटन का तरीकाअब बैंकों को अपनी हरेक शाखा में खाली लॉकरों की सूची रखनी होगी और लॉकर चाहने वाले ग्राहकों की प्रतीक्षा सूची भी तैयार करनी होगी। बैंक बाजार के मुख्य कार्याधिकारी आदिल शेट्टी कहते हैं, 'सारी सूचना केंद्रीकृत होगी तो ग्राहकों को यह पता करने में आसानी होगी कि उनकी होम ब्रांच में लॉकर उपलब्ध हैं या उसके लिए किसी अन्य शाखा में जाना होगा। इस तरह वे सोच-समझकर फैसले ले पाएंगे।' जब कोई ग्राहक लॉकर के लिए आवेदन करेगा तो बैंक उसे बताएगा कि प्रतीक्षा सूची में वह कौन से नंबर पर है यानी उसकी बारी कब आएगी। लॉकरों के लिए ग्राहकों की प्रतीक्षा सूची जारी करने का फायदा यह होगा कि कोई भी व्यक्ति अपनी बारी आने से पहले लॉकर हासिल नहीं कर सकेगा। सावधि जमा की सीमा तयबैंक अक्सर लॉकर लेने वाले ग्राहकों के सामने सावधि जमा (टर्म डिपॉजिट) शुरू करने की शर्त रखते हैं। शेट्टïी कहते हैं, 'बैंकों में लॉकर आसानी से नहीं मिलते हैं, इसलिए कई बार ग्राहक केवल लॉकर के लिए किसी नए बैंक के पास पहुंच जाते हैं। चूंकि वह बैंक उन ग्राहकों की माली हालत और वित्तीय अनुशासन के बारे में नहीं जानते हैं, इसलिए सतर्कता के तौर पर वे नए ग्राहकों से लॉकर शुल्क के बदले बतौर सिक्योरिटी सावधि जमा शुरू कराने के लिए कहते हैं।' अभी तक बैंक अपनी मर्जी से तय करते थे कि कितनी रकम की सावधि जमा खुलवानी है। मगर रिजर्व बैंक ने अब यह सीमा तीन साल के शुल्क के बराबर रख दी है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) हर साल 1,500 रुपये से 12,000 रुपये तक बतौर लॉकर शुल्क लेता है। अगर 12,000 रुपये सालाना भी मान लें तो बैंक लॉकर के लिए 36,000 रुपये से ज्यादा की सावधि जमा खुलवाने को नहीं कह सकता। केंद्रीय बैंक ने बैंकों को आगाह किया है कि अगर इस सीमा से परे जाकर सावधि जमा खुलवाने को कहा जाएगा तो उसे प्रतिबंधात्मक गतिविधि माना जाएगा। बैंक की जवाबदेही तयअगर आग, चोरी, डकैती, सेंधमारी, इमारत ढहने या बैंक कर्मचारी द्वारा धोखाधड़ी किए जाने से लॉकर में मौजूद सामान चला जाता है तो ग्राहकों के प्रति बैंकों की जवाबदेही होगी। लेकिन आरबीआई ने कहा है कि बैंकों की जवाबदेही या देनदारी लॉकर के सालाना शुल्क के 100 गुने से अधिक नहीं होगी। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, 'जिन बैंकों की फीस कम है, उनकी देनदारी काफी कम लग सकती है। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बैंकों को यह नहीं पता होता कि ग्राहक ने लॉकर में क्या-क्या रखा है? गहने रखे हैं या केवल कागज रखे हैं? इसलिए वह सामान की सही कीमत नहीं आंक सकता और उसके हिसाब से मुआवजा भी नहीं दे सकता।'मगर लॉकर में रखे सामान को अगर प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान होता है तो बैंक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इसलिए अगर कोई ग्राहक लॉकर में कीमती सामान रखता है तो उसे सामान का बीमा कराने पर भी विचार करना चाहिए। मगर बैंक आपके लॉकर के लिए खुद ही बीमा कवर बेचे तो सतर्क हो जाइए: आरबीआई ने इसकी भी मनाही की है। सही से बनाएं नॉमिनीबैंकों को लॉकर लेने वाले ग्राहक अथवा उसके नॉमिनी को लॉकर में रखा सामान सौंपने की प्रक्रिया तेज करनी हागी। रिजर्व बैंक ने कहा है कि दावा मिलने के 15 दिन के भीतर बैक को लॉकर में रखा सामान संबंधित व्यक्ति को लौटाना ही होगा। करंजावाला ऐंड कंपनी में पार्टनर मेघना मिश्रा कहती हैं, 'अगर आप चाहते हैं कि आपके नहीं रहने पर आपके वारिसों को लॉकर में रखा सामान पाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं झेलनी पड़े तो नॉमिनी नियुक्त कर दें और बैंक में इससे संबंधित सभी औपचारिकताएं सही तरीके से पूरी कर दें।' यदि नॉमिनी नहीं है और बैंक को लगता है कि लॉकर कोई एक व्यक्ति ही चला रहा है तो लॉकर धारक की मौत होने पर बैंक वसीयत की कानूनी वैधता का प्रमाण मांग सकता है और कानूनी वारिस या उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की मांग भी कर सकता है। मेघना कहती हैं, 'कानूनी वारिस को लॉकर तक पहुंचने में काफी लंबी प्रक्रिया का सामना करना पड़ सकता है।'अगर पति-पत्नी संयुक्त रूप से लॉकर चला रहे हैं तो वे 'दो में कोई एक या उत्तरजीवी' के आधार पर ऐसा कर सकते हैं। दोनों में से एक की मौत होने पर भी दूसरे व्यक्ति को लॉकर की सुविधा मिलती रहेगी। लेकिन कभी-कभी दोनों की एक साथ मौत हो जाती है। इसलिए वारिसों को दिक्कत नहीं हो, इसके लिए दो से ज्यादा व्यक्तियों के लिए लॉकर उपलब्ध होना चाहिए। मेघना कहती हैं, 'ऐसी स्थिति में 'कोई भी या उत्तरजीवी' विकल्प कारगर होता है। 'कोई भी' के तहत वयस्क संतान, दामाद या पुत्रवधू को नॉमिनी बनाया जा सकता है।'
