करीब दो दशक पहले लोगों को अपने बिलों के भुगतान या सिनेमा एवं रेलवे के टिकट बुक करने के लिए एक भुगतान प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने के लिए राजी करना आसान नहीं था। वैसे समय में आर्थर ऐंडरसन फर्म के तीन पुराने साथियों ने वर्ष 2000 में बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक भुगतान सेवा प्लेटफॉर्म शुरू करने का फैसला किया था। एम एन श्रीनिवासु, कार्तिक गणपति और अजय कौशल ने बिलडेस्क नाम की यह सेवा शुरू की थी। उस समय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र बदलाव के दौर से गुजर रहा था। कोर बैंकिंग सुविधा पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा था और बैंक अपनी वित्तीय सेवाओं तक सुगम पहुंच मुहैया कराने की कोशिश में लगे हुए थे।
उस स्थिति में बिलडेस्क ने बैंकों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों एवं सेवाओं के बीच एक मध्यवर्ती इकाई के तौर पर काम किया। इससे बैंक ग्राहकों के लिए शाखाओं तक पहुंचने की बाध्यता कम कर सकते थे और प्रतिष्ठान भी अपने ग्राहकों को त्वरित भुगतान का जरिया मुहैया करा सकते थे। इन सुविधाओं को आधार बनाते हुए बिलडेस्क के संस्थापक उस समय की बड़ी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल को तीन साल की मशक्कत के बाद साथ जोड़ पाए।
बिलडेस्क की रणनीति हमेशा से एक कारोबार-से-कारोबार-से-उपभोक्ता पर केंद्रित रही है। मौजूदा समय के तमाम भुगतान सेवा प्रदाता भी इसी रणनीति पर चलते रहे हैं। उन्होंने बैंकों के एक बिलिंग भुगतान प्लेटफॉर्म के तौर पर अपना सफर शुरू किया था। बिलडेस्क ने बैंकिंग नियामक के साथ मिलकर अपने भुगतान प्लेटफॉर्म को तैयार किया। आज इसके साथ 20,000 से अधिक फर्में जुड़ी हुई हैं जो यूटिलिटी सेवा और बीमा पॉलिसी भुगतान से लेकर डीटीएच सेवा तक से जुड़े हुए हैं।
ट्राइफेक्टा कैपिटल के सह-संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक राहुल खन्ना बिलडेस्क के शुरुआती निवेशकों में से एक हैं। उस समय वह क्लियरस्टोन वेंचर पार्टनर्स का हिस्सा थे और वर्ष 2006-11 तक बिलडेस्क के बोर्ड में भी शामिल रहे। उन्होंने कहा, 'मैं अजय और वासु को बिलडेस्क के शुरुआती दिनों से ही जानता था। जब मैं एक निवेशक के तौर पर उनसे मिला तो मैंने एक दांव लगाया। दरअसल मैं उस टीम को और उसके केंद्रित क्रियान्वयन दृष्टिकोण से परिचित था। उनकी रणनीति इस मायने में खास थी कि वे कारोबार-से-उपभोक्ता के बजाय कारोबार-से-कारोबार-से-उपभोक्ता मॉडल पर चल रहे थे।' खन्ना का मानना है कि इससे कंपनी नकदी बचाने के साथ दीर्घावधि वृद्धि पर ध्यान दे सकती थी।
बिलडेस्क की 5 लाख डॉलर की सीड फंडिंग सिडबी एवं बैंक ऑफ बड़ौदा से हुई थी। इस हिस्सेदारी का वर्ष 2011 में टीए एसोसिएट्स ने अधिग्रहण कर लिया। वर्ष 2006 में इसने क्लियरस्टोन से करीब 70 लाख डॉलर जुटाए थे। वर्ष 2015 में जनरल अटलांटिक और टेमासेक ने 20 करोड़ डॉलर का निवेश किया था। जिसके बाद इसका मूल्यांकन 1 अरब डॉलर हो गया। इसके तीन साल बाद वीसा ने अल्पांश हिस्सेदारी खरीदी जिसके बाद इसका मूल्यांकन करीब 2 अरब डॉलर हो गया था।
भारतीय डिजिटल भुगतान परिदृश्य में पहले कदम रखने का बिलडेस्क को फायदा हुआ है और इसका 4.7 अरब डॉलर में अधिग्रहीत होना इसका सबूत भी है। यह भारत के वित्त तकनीक क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा विलय एवं अधिग्रहण सौदा है।
Business Standard Private Ltd. Copyright & Disclaimer feedback@business-standard.com
This site is best viewed with Internet Explorer 6.0 or higher; Firefox 2.0 or higher at a minimum screen resolution of 1024x768
* Stock quotes delayed by 10 minutes or more. All information provided is on
"as is" basis and for information purposes only. Kindly consult your
financial advisor or stock broker to verify the accuracy and recency of all
the information prior to taking any investment decision.
While due diligence is done and care taken prior to uploading the stock
price data, neither Business Standard Private Limited, www.business-standard.com nor any
independent service provider is/are liable for any information errors,
incompleteness, or delays, or for any actions taken in reliance on
information contained herein.