भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने दूरसंचार ऑपरेटरों को शुल्क दरों में एक ही श्रेणी के उपभोक्ताओं के बीच किए जाने वाले भेदभाव को लेकर आदेश जारी किया है। नियामक ने कहा है कि दूसरी दूरसंचार कंपनी के उपभोक्ता को अपने साथ जोडऩे के लिए उसे अलग दरों की पेशकश करने की छूट नहीं दी जा सकती है। विश्लेषकों का अनुमान है कि ट्राई का यह आदेश दूरसंचार उद्योग में एकमुश्त शुल्क वृद्धि की दिशा में उठा पहला कदम है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक, ट्राई के इस आदेश के बाद भी दूरसंचार कंपनियां अपने मौजूदा ग्राहकों को रियायती दरों पर सेवाएं देने का सिलसिला आगे भी जारी रख सकती हैं। स्वेच्छा से शुल्क बढ़ाने पर सरकार की आपत्तियों के बावजूद एक ऑपरेटर ने कहा था कि दिसंबर 2019 में सभी कंपनियों का 30-40 फीसदी शुल्क बढ़ाने के एक साथ लिया गया फैसला भी कारगर नहीं साबित हुआ था। इसकी वजह है कि कंपनियों ने अपने ग्राहकों को बनाए रखने के लिए रियायती दर पर सेवाएं देने की पेशकश करनी शुरू कर दी थी। उनका कहना था कि नंबर पोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिस्पर्धी कंपनियां उनके उपभोक्ताओं को तीन महीने तक रियायती शुल्क पैकेज की पेशकश कर रही हैं। यहां तक कि इन शुल्क दरों की जानकारी ट्राई को भी नहीं दी जा रही थी।विभेदी शुल्क दरों का विरोध करने वाले ऑपरेटर ने कहा था कि वह दूरसंचार उद्योग के साथ चलने को तैयार है बशर्ते कि नियामक या सरकार ऐसी मनमानी योजनाओं पर लगाम लगाने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था बना दे। ट्राई का नया आदेश भी ऑपरेटरों को अलग शुल्क दरों की पेशकश करने से रोकने के लिए शायद काफी न हो। ट्राई का यह आदेश भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के सभी वर्गों में शुल्क वृद्धि के फैसले के बीच आया है। भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि शुल्क बढ़ाना कारोबार में बने रहने के लिए जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा था कि इस साल के अंत तक प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व 200 रुपये से ज्यादा होना चाहिए और फिर इसे 300 रुपये के औसत तक ले जाना होगा। लेकिन फिलहाल तो एयरटेल का प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व महज 146 रुपये ही है। वोडाफोन आइडिया ने भी शुल्क वृद्धि को अपने लिए नए निवेशक जुटाने के लिहाज से जरूरी बताया है। दोनों कंपनियां न्यूनतम आधार मूल्य बढ़ाने की मांग कर रही हैं लेकिन ट्राई ऐसे कदम को खारिज कर चुका है।
