उपभोक्ताओं की धारणा अस्थिर लग रही है। अप्रैल 2020 में लॉकडाउन लगाने के बाद उपभोक्ताओं की धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ा है। अधिकांश आर्थिक सूचकांक लॉकडाउन से पूर्व के स्तरों पर आ गए या इसके निकट पहुंच गए हैं मगर उपभोक्ता धारणा में बड़ा सुधार होता नहीं दिख रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि लॉकडाउन ने उपभोक्ताओं के मिजाज पर गहरा असर छोड़ा है। जुलाई 2021 में सीएमआईई का उपभोक्ता धारणा सूचकांक मार्च 2020 की तुलना में 45 प्रतिशत नीचे था। कमजोर धारणा शहरी क्षेत्र से लेकर देश के सुदूर गांव-देहात में भी दिखती है। ग्रामीण क्षेत्रों में धारणा सूचकांक 44 प्रतिशत तक फिसल गया था, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 48 प्रतिशत तक नीचे आ गया था। यह गिरावट दूसरे आर्थिक संकेतकों में आए दमखम की ठीक विपरीत है। सीएमआईई के सर्वेक्षण में पाया गया है कि श्रम भागीदारी एवं रोजगार सृजन में तेजी आई है। जुलाई में रोजगार सृजन मार्च 2020 की तुलना में 0.9 प्रतिशत अधिक रहा। रोजगार दर की स्थिति सुधरी है लेकिन उपभोक्ताओं में उत्साह का अभाव दिख रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी उपभोक्ता धारणा सूचकांक जारी करता है। इस सूचकांक के लिए आरबीआई का नमूना संकलन एवं गणना विधि सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे से अलग हैं। लेकिन इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष भी सीएमआईई के उपभोक्ता धारणा से मेल खाते हैं। जुलाई 2021 में आरबीआई का करेंट सिचुएशन इंडेक्स मार्च 2020 की तुलना में 43 प्रतिशत कम था। आरबीआई का नमूना कुछ शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है। हालांकि तब भी यह लोगों की समान चिंताओं को परिलक्षित करता है। कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देशव्यापी लॉकडाउन से उपभोक्ताओं की धारणा पर असर हुआ है। दूसरे देशों में भी उपभोक्ताओं की धारणा कमजोर हुई है मगर भारत की तरह इसमें गिरावट भयावह या अधिक समय तक नहीं रही है। उदाहरण के लिए अमेरिका में जुलाई 2021 में उपभोक्ता धारणा सूचकांक मार्च 2020 की तुलना में 9 प्रतिशत कम था, जबकि भारत के मामले में यह गिरावट 45 प्रतिशत रही थी। अमेरिकी सूचकांक में कभी भी 30 प्रतिशत से अधिक कमी नहीं आई, वहीं भारतीय सूचकांक लॉकडाउन से पूर्व के स्तर से लगभग 60 प्रतिशत तक लुढ़क गया। भारतीय उपभोक्ताओं की धारणा में अगस्त में सुधार दिखा है। 29 अगस्त तक सूचकांक के 30 दिनों का चलंत औसत (मूविंग एवरेज) जुलाई 2021 के अंत की तुलना में 2 प्रतिशत अधिक था। सूचकांक अगस्त के पहले पखवाड़े में फिसला था लेकिन तब से इसमें लगातार सुधार जारी है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक में 2 प्रतिशत सुधार इसलिए स्वागत योग्य है कि जुलाई 2021 में इसमें 10.7 प्रतिशत तेजी देखी गई थी। दो महीनों में सुधार के बाद भी मार्च 2020 की तुलना में धारणा अब भी 44 प्रतिशत नीचे है। उपभोक्ता धारणा लगातार कमजोर बनी रहती है तो 2020-21 में तेज गिरावट से उबरने का प्रयास कर रही देश की अर्थव्यवस्था पर इसका असर हो सकता है। वित्त वर्ष 2020-21 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.3 प्रतिशत फिसल चुका है। अब 2021-22 में अर्थव्यवस्था में अधिक तेज गति से सुधार की उम्मीद की जा रही है मगर उपभोक्ता सूचकांक लगातार नीचे रहा तो संभावनाएं धूमिल हो सकती हैं। उपभोक्ता धारणा देश में वर्तमान एवं भविष्य में आय और उपभोक्ता वस्तुओं की खरीदारी करने वाले लोगों के दृष्टिïकोण को दर्शाती है। अगर ये संभावनाएं लगातार कम रहीं तो लोग खर्च करने के लिए आगे नहीं आएंगे। इससे निजी उपभोग व्यय (उपभोक्ताओं द्वारा वस्तु एवं सेवाओं पर किया जाने वाला व्यय) वृद्धि में कमी आएगी। इसका देश की अर्थव्यवस्था में आधा से अधिक (56 प्रतिशत) योगदान होता है।वर्ष 2020-21 में परिवारों की महंगाई समायोजित किए बिना औसत आय 14.9 प्रतिशत कम हो गई है। वास्तविक अर्थों में या 6 प्रतिशत से अधिक महंगाई दर समायोजित करने के बाद परिवारों की औसत आय में 20 प्रतिशत से अधिक गिरावट दर्ज की गई। परिवारों की आय में आए इस नुकसान की भरपाई करना आसान नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों की नौकरियां चली गई थीं अब वे कम वेतन वाली नौकरियां करने के लिए विवश हैं और कर भी रहे हैं। इससे स्पष्टï होता है कि लोगों को रोजगार तो मिल रहे हैं लेकिन आय पहले जितनी नहीं रह गई है। यह हालत तब थी जब अप्रैल-जून 2021 में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने दस्तक नहीं दी थी। दूसरी लहर से परिवारों की आय को और अधिक चोट पहुंची होगी। वास्तविक पारिवारिक आय में गिरावट से परिवारों की क्रय क्षमता घटती है मगर बिना महंगाई समायोजित की हुई आय में गिरावट का असर लंबे समय तक रहता है और क्रय शक्ति कम हो जाती है। 29 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में 43 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनकी आय एक वर्ष पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है। 41.5 प्रतिशत परिवारों ने आशंका जताई कि अगले 12 महीनों में उनकी आय की स्थिति और बदतर हो सकती है। ये परिवार फिलहाल व्यय करने के लिए आगे नहीं आएंगे। जिन 50 प्रतिशत लोगों को अपनी आय में वृद्धि की उम्मीद नहीं है वे भी शायद ही खर्च करने में उत्साह दिखाएंगे। इससे वस्तु एवं सेवाओं पर लोगों का खर्च कम हो जाएगा जो 2021-22 में अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीदें कमजोर हो जाएंगी। वर्ष 2019-20 में केवल 9.3 प्रतिशत परिवारों को ही अगले 12 महीनों में आय में गिरावट आने का अंदेशा था। मगर ये 12 महीने उनकी आशंका से भी अधिक बदतर साबित हुए। उस अनुभव का असर 2021-22 में भी दिख रहा है। भारत की लगभग 37 प्रतिशत आबादी को कोविड-19 टीके की कम से कम एक खुराक लग चुकी है मगर परिवारों को स्थिति सामान्य होने की उम्मीद अब भी नहीं लग रही है। (लेखक सीएमआईई प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं।)
