खबरों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट सचिव से कहा है कि वह उन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सूची बनाएं जो अदालतों अथवा हरित पंचाट के निर्णयों के कारण पिछड़ गई हैं। इससे सरकार को अदालतों द्वारा जताई गई चिंता को दूर करने में मदद मिलेगी और उन्हें पटरी पर लाया जा सकेगा। परियोजनाओं के पूरा होने में यदि देरी होती है तो लागत बढ़ती है और इसमें लगी पूंजी कम प्रभावी होने लगती है। ऐसी स्थिति में जहां अर्थव्यवस्था महामारी के कारण आई गिरावट से उबरने में लगी है, यह महत्त्वपूर्ण है कि सरकार न केवल पूंजीगत व्यय बढ़ाए बल्कि समझदारीपूर्वक निवेश करे। परंतु सरकारी वित्त के ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि पूंजीगत व्यय पिछड़ रहा है। मजबूत राजस्व संग्रह के बावजूद, जुलाई तक पूंजीगत व्यय बजट अनुमान का 23.2 फीसदी था जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह बजट अनुमान का 27.1 फीसदी था। इस स्थिति में पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर बहुत जोर नहीं दिया जा सकता। पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के इस सप्ताह जारी आंकड़ों में 20.1 फीसदी सालाना वृद्धि के बावजूद उत्पादन 2019-20 के स्तर से काफी कम रहा। ऐसे में राजकोषीय स्थिति को देखते हुए यह उचित होगा कि सरकार बजट में उल्लिखित राशि से अधिक निवेश करे। सरकार द्वारा उच्च पूंजीगत व्यय मांग को बढ़ाएगा और निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित करेगा। सतत उच्च निवेश की मदद से उच्च स्थायी वृद्धि हासिल की जा सकती है। उदाहरण के लिए सदी के पहले दशक में उच्च आर्थिक वृद्धि को वित्तीय संकट के बाद झटका लगा और वह गिर गई। इसके अलावा निवेश की क्षमता भी प्रभावित हुई। वर्तमान मूल्य के हिसाब से सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) 2007-08 में जीडीपी का 36 फीसदी बढ़ा और इस अवधि में उत्पादन 8 फीसदी की अधिक दर से बढ़ा। जीएफसीएफ कुछ समय तक अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर बना रहा लेकिन बाद में उसमें गिरावट आने लगी। 2019-20 में यह घटकर करीब 29 फीसदी रह गया जबकि वृद्धि घटकर 4 फीसदी रह गई।यह सही है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीएफसीएफ में तेजी से सुधार हुआ जबकि एक वर्ष पहले इसमें गिरावट आई थी। फिर भी अभी यह प्रतीक्षा करना उचित होगा कि अर्थव्यवस्था के सामान्य होने पर इसका प्रदर्शन कैसा रहता है। हालिया वर्षों के रुझान को देखें तो संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था निवेश के स्तर के अनुपात में नहीं बढ़ रही है। ऐसे में उत्पादन या क्रमिक पूंजी-उत्पादन अनुपात (आईसीओआर) बढ़ाने के लिए जरूरी पूंजी की आवश्यकता बढ़ी है। अब समाप्त किए जा चुके योजना आयोग के एक कार्य समूह ने 2012 में जारी अपनी रिपोर्ट में पिछली योजना अवधि के आईसीओआर का विश्लेषण किया और अलग स्तर की वृद्धि हासिल करने के लिए जरूरी निवेश का अनुमान पेश किया। उदाहरण के लिए 12वीं योजना के दौरान 8 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करने के लिए बाजार मूल्य पर निवेश की दर के 30.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया। चूंकि जीडीपी शृंखला की समीक्षा की गई है, जीएफसीएफ और निवेश दर में अंतर है तथा प्रासंगिक आर्थिक ढांचे में कुछ अनुमान हकीकत से दूर हैं इसलिए पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि दर काफी कम रही है।संभव है कि सरकार द्वारा किए गए निवेश से उत्पादकता पर वांछित इजाफा नहीं हुआ है। इसके अलावा लागत कई अन्य वजहों से भी बढ़ी होगी तथा सामान्य तौर पर क्षमता का इस्तेमाल भी कम हो रहा है। ऐेसे में प्रधानमंत्री ने देरी से चल रही परियोजनाओं की समीक्षा की अच्छी पहल की है। परंतु पूंजी की किफायत बढ़ाने के लिए काफी कुछ किया जाना शेष है। ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता तथा बैंकिंग क्षेत्र में सुधार इस दिशा में पहल के लिए बेहतर होंगे।-
