भारतीय ऋणशोधन अक्षमता और दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरमैन एम एस साहू ने आज कहा कि जून तक ऋणशोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत बचाई गई कंपनियों के संपत्ति का मूल्य ऋणदाताओं के बकाये रकम का करीब 22 फीसदी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऋणदाताओं द्वारा लिया जाने वाला हेयर कट आईबीसी की गलती नहीं है। उन्होंने कहा कि ऋणदाताओं की नजर जिस 78 फीसदी हेयर कट पर थी उसे न केवल संहिता के तहत बचाया गया था बल्कि उनके हेयर कट को घटाकर 61 फीसदी कर दिया गया। साहू ने कहा, 'आईबीसी सभी बुराइयों के लिए रामबाण नहीं है और इसके लिए व्यवस्थित तथा व्यापक आकलन की जरूरत पड़ती है। यदि दावों और प्राप्तियों को उसके वास्तविक स्तर तक समायोजित किए जाते हैं तो हेयर कट का आंकड़ा कम रहेगा।' भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ओर से आयोजित ऋणशोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता पर कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए साहू ने कहा कि लोग कह रहे हैं कि तीन चौथाई कंपनियां जिनका परिसमापन हो रहा है वे अपने अस्तित्व के अंतिम कगार पर हैं। परिसमापन के लिए आगे बढ़ रही कंपनियों में तीन चौथाई शुरू में निष्क्रिय थीं और बचाई गई कंपनियों में से एक तिहाई निष्क्रिय थीं। साहू ने कहा कि इसका मतलब है कि आईबीसी प्रक्रिया में शामिल होने के वक्त पर दो तिहाई कंपनियां बंद पड़ी थीं। उन्होंने कहा, 'यदि साझेदार दबाव के शुरुआती लक्षण मिलने पर ही समाधान प्रक्रिया आरंभ कर दें और इसे तेजी से बंद किया जाए तो आईबीसी के नतीजे बेहतर होंगे।' परिसमापन के लिए अधिक संख्या में कंपनियों के आने के मसले पर स्पष्टीकरण देते हुए साहू ने कहा कि परिसमापन के साथ समाप्त होने वाली कंपनियों की संपत्ति का मूल्य औसतन बकाये दावों का करीब 6 फीसदी है।
