निजीकरण और 'मुद्रीकरण' के बीच अंतर यह है कि जहां पहला शब्द सरकार को कारोबार से पूरी तरह बाहर रखता है, वहीं दूसरा सरकार को एक सक्रिय हिस्सेदार बनाता है। यही कारण है कि निजीकरण, मुद्रीकरण की तुलना में अधिक आसान है। इसके बावजूद निजीकरण को लेकर अत्यंत कमजोर प्रदर्शन (एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम आदि उदाहरण हैं) वाली सरकार जो विनिवेश के मोर्चे पर बुरी तरह पीछे है, वह यह आशा कर रही है कि वह मुद्रीकरण के जरिये चार वर्ष में 6 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटा लेगी। ध्यान रहे रेलवे की परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करने के प्रयास नाकाम हो चुके हैं। लेकिन अगर कोई घोषणा महत्त्वाकांक्षी पैमाने पर न की जाए तो उसका क्या लाभ? भले ही अतीत के अनुभव कितने ही खराब रहे हों।
एक और दिक्कत है जिसे टीकाकार पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं: सांठगांठ वाला पूंजीवाद। मोदी का पुराना वादा याद कीजिए: 'न खाऊंगा न खाने दूंगा।' लेकिन मोदी के कार्यकाल के आरंभिक दिनों में ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के सूचकांक में भ्रष्टाचार को लेकर सुधार के बाद अब विगत कुछ वर्षों से हालात दोबारा पहले जैसे हो रहे हैं और भारत भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों में से 78 से फिसलकर 86वें स्थान पर पहुंच गया। मोदी सरकार को लेकर अवधारणा किस तरह बदल रही है यह अपने आप में पूरी कहानी है। ऐसे संदर्भ में निजीकरण और मुद्रीकरण जोखिम से भरे हुए हैं।
मनमोहन सिंह सरकार से पूछिए, जिसे दूरसंचार लाइसेंस और कोयला खदान की नीलामी ने बरबाद कर दिया। सरकारी प्रक्रिया में यकीन करने वाले निजी निवेशक भी नष्ट हो गए क्योंकि अदालतों ने दोनों तरह के लाइसेंस निरस्त कर दिए। एक ऐसा देश जहां अरविंद सुब्रमण्यन के शब्दों में 'कलंकित पूंजी' की कोई कमी नहीं है, वहां व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी उसी राह पर है। यदि आप फ्रांसीसियों की बात पर यकीन करें तो अनिल अंबानी काफी हद तक सरकार के पसंदीदा कारोबारी थे। अब विरोधाभासों और संयोगों पर नजर डालिए। सरकार ने बड़ी खुदरा शृंखलाओं को घुड़की दी कि उन्होंने अपनी मजबूत स्थिति का फायदा भारी छूट देने और बाजार हिस्सेदारी बटोरने में उठाया जबकि दूरसंचार आयोग ने जियो को दूरसंचार क्षेत्र में ऐसा ही करने की इजाजत दी। जीवीके समूह ने जब अदाणी समूह के मुंबई एयरपोर्ट का नियंत्रण संभालने की राह रोकने की कोशिश की तो कैसे उसे केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय (जिसके एक वरिष्ठ अधिकारी भाजपा में शामिल हो सकते हैं) का सामना करना पड़ा यह भी छिपा नहीं है।
'एजेंसी राज' में ऐसी घटनाओं का बढऩा तय है और जब सामान्य प्रशासन विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परियोजनाओं के लिए जटिल नियम बनाता है तो भी ऐसे मामले बढ़ते हैं। भ्रष्ट एनरॉन और उसके साझेदारों को दाभोल बिजली अनुबंध के एकतरफा नियमों का फायदा मिला। यह मामला तो महाराष्ट्र राज्य बिजली बोर्ड को दिवालिया तक कर सकता था। जबकि तत्कालीन बिजली सचिव ने कहा था कि परियोजना की लागत की तार्किकता का आकलन करना जो केंद्रीय बिजली प्राधिकरण का दायित्व है, उसे दरकिनार किया जा सकता है। अभी हाल ही में अदाणी समूह को केरल में विझिन्जम बंदरगाह बनाने और उसे चलाने के लिए 40 वर्ष का समय कैसे मिला जबकि ऐसे ठेकों की मानक अवधि 30 वर्ष है?
इस बात पर भी विचार कीजिए कि अनुबंध अवधि समाप्त होने के बाद कैसे टाटा के इंडियन होटल्स ने नई नीलामी रोकने के लिए अदालती कार्यवाही शुरू कर दी जिसके परिणामस्वरूप नई दिल्ली के एक प्रमुख लक्जरी होटल पर उसका नियंत्रण बढ़ गया। बाद में कंपनी को नई बोली भी हासिल हो गई। कैसे टोल रोड ठेकेदारों ने टोल से हासिल होने वाला राजस्व कम करके बताया। इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज के पूरे इतिहास पर नजर डालिए। इसके बाद सोचिए कि कैसे ठेकों के क्रियान्वयन और निगरानी में हर स्तर पर सरकारी अधिकारी मध्यस्थ होंगे या सेवानिवृत्ति के क्षेत्रीय नियामक बनेंगे। कम से कम कंपनी निदेशक बनना तो तय है। यह निजीकरण करने और नियंत्रण गंवाने से बहुत बेहतर है।
संक्षेप में कहें तो मोदी सरकार ने एक बारुदी सुरंग वाले क्षेत्र में कदम रख दिया है। उसे इस बात के लिए सराहा जा सकता है कि उसने अपने लिए एक बड़ा लक्ष्य तय किया है। लेकिन अतीत की गलतियों और कमतर उपलब्धियों के रिकॉर्ड, संस्थानों के क्षरण तथा कलंकित पूंजी के प्रभाव को देखें तो एक बार फिर घोटालों का सिलसिला शुरू हो सकता है। इस बार यह प्रहसन की तरह नहीं होगा।
Business Standard Private Ltd. Copyright & Disclaimer feedback@business-standard.com
This site is best viewed with Internet Explorer 6.0 or higher; Firefox 2.0 or higher at a minimum screen resolution of 1024x768
* Stock quotes delayed by 10 minutes or more. All information provided is on
"as is" basis and for information purposes only. Kindly consult your
financial advisor or stock broker to verify the accuracy and recency of all
the information prior to taking any investment decision.
While due diligence is done and care taken prior to uploading the stock
price data, neither Business Standard Private Limited, www.business-standard.com nor any
independent service provider is/are liable for any information errors,
incompleteness, or delays, or for any actions taken in reliance on
information contained herein.