सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) हार्डवेयर से जुड़ी उत्पादन प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के दायरे में आने वाली वैश्विक एवं घरेलू कंपनियों ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से प्रोत्साहन राशि और इस योजना की अवधि बढ़ाने की मांग की है। कंपनियों का कहना है कि लैपटॉप एवं टैबलेट के लिए भारत में अनुबंध विनिर्माण के लिए वैश्विक कंपनियों को आकर्षित कर पाना मुश्किल हो रहा है। वैश्विक लैपटॉप ब्रांड के लिए चीन एवं ताइवान में स्थित उनके उत्पादन संयंत्रों से आयात करना शून्य सीमा शुल्क की वजह से कहीं सस्ता पड़ता है। उन्हें भारत में खुद ही विनिर्माण करना या निर्यात करने में भी कोई प्रोत्साहन नहीं दिखता है क्योंकि भारत में घरेलू स्तर पर उपकरण विनिर्माण की पारिस्थितिकी भी नहीं है। आईटी हार्डवेयर एवं मोबाइल फोन संवर्ग वाली करीब 20 कंपनियां पीएलआई योजना के दायरे में आती हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण विनिर्माताओं की मंगलवार को इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के साथ हुई एक बैठक में इस योजना से संबंधित चिंताओं एवं एक ढांचा खड़ा करने पर चर्चा की गई। इन कंपनियों में डेल, एचपी, फ्लेक्स, फॉक्सकॉन, विस्ट्रॉन, ऐपल, डिक्सन, ऑप्टीमस एवं माइक्रोमैक्स के प्रतिनिधियों ने शिरकत की। इसके साथ ही आईसीईए, एलसिना और एमएआईटी संगठनों के प्रतिनिधि भी इस बैठक में शामिल थे।आईटी हार्डवेयर कंपनियों ने सरकार से प्रोत्साहन राशि को दोगुना करने की मांग की जो फिलहाल एक से चार फीसदी तक है। इसके अलावा उन्होंने पीएलआई योजना की अवधि को चार साल से बढ़ाकर आठ साल करने की भी मांग रखी। उन्होंने यह भी कहा कि चालू वित्त वर्ष के पांच महीने बीत जाने की बात को ध्यान में रखते हुए इस योजना को वर्ष 2022-23 से लागू किया जाए। कुछ कंपनियों ने यह भी कहा कि योजना के तहत किए जाने वाले जरूरी निवेश में भी कटौती की जाए। मोबाइल फोन जैसे दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के उलट भारत आईटीए-1 समझौते का हस्ताक्षरी होने से लैपटॉप जैसे आईटी उत्पादों को शून्य सीमा शुल्क पर भी आयात की मंजूरी देता है। सूत्रों के मुताबिक उपकरण विनिर्माताओं ने एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण फंड बनाने की मांग की है जो एसएमई क्षेत्र में वित्त मुहैया कराएगा। उन्होंने वैश्विकस्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिए सरकार से ब्याज अनुदान एवं अन्य प्रोत्साहनों की भी मांग की है। कई कंपनियों का मानना है कि पीएलआई के संवर्द्धन के लिए निर्यात पर खास जोर देना होगा क्योंकि घरेलू बाजार इसके लिए काफी नहीं है। आईसीईए के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, लैपटॉप एवं टैबलेट उत्पादों का भारत को होने वाला आयात अप्रैल-जून तिमाही में 50 फीसदी की जोरदार तेजी के साथ 10,000 करोड़ रुपये हो गया है। ईवाई के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में लैपटॉप का कुल बाजार 2019-20 में करीब 4.85 अरब डॉलर का था जिसमें से आयात की हिस्सेदारी 86 फीसदी थी। इसमें भी चीन से होने वाले आयात का दबदबा था।पीएलआई योजना के लिए चयनित एक कंपनी के शीर्ष अधिकारी कहते हैं, 'लैपटॉप में भारत और चीन के बीच अक्षमता स्तर 8.5 फीसदी से नौ फीसदी के बीच है। इस तरह पीएलआई प्रोत्साहन इस फासले को पाटने और मेक इन इंडिया को आकर्षक बनाने के लिए काफी नहीं है। देश में उपकरण ढांचा भी नहीं होने से इस योजना के तहत चार साल के भीतर स्थानीय उपकरण आधार खड़ा कर पाना मुश्किल है।' ठेके पर उत्पादन करने वाले एक विनिर्माता कहते हैं, 'भारत में उत्पादन के लिए हमें वैश्विक या भारतीय लैपटॉप विनिर्माताओं से गठजोड़ करने की जरूरत होती है। अन्यथा क्रमिक निवेश करने और ग्राहक आने की उम्मीद करने का कोई मतलब नहीं है।' सरकार ने पीएलआई योजना के तहत आईटी हार्डवेयर के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। इस साल फरवरी में मंत्रालय ने इस योजना के तहत अगले चार वर्षों में 3.26 लाख करोड़ रुपये के कुल उत्पादन का लक्ष्य रखा जिसका 75 फीसदी निर्यात से आना था।
