एक नया मिशन | संपादकीय / August 24, 2021 | | | | |
सरकार ने देश को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 11,000 करोड़ रुपये मूल्य का तिलहन मिशन शुरू करने की बात कही है। यह ऐसा कदम है जो बहुत पहले उठा लिया जाना चाहिए था। देश में सन 1990 के दशक से ही खाद्य तेल की कमी रही है जबकि यह व्यापक खपत वाला उत्पाद है। घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए यदाकदा प्रयास किए गए लेकिन उनमें कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी। ऐसा इसलिए हुआ कि मूल्य निर्धारण को लेकर सही नीतियां नहीं बनाई गईं। नीतियां अक्सर ऐसी बनीं जिन्होंने उपभोक्ताओं के हितों को ज्यादा तरजीह दी जबकि उत्पादकों के हितों की अनदेखी की गई। परिणामस्वरूप आपूर्ति की कमी में इजाफा जारी रहा और भारत खाद्य तेलों का आयात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया। आज देश अपनी जरूरत का 70 फीसदी तेल आयात करता है। आयात के क्षेत्र की बात करें तो मूल्य के हिसाब से यह पेट्रोलियम उत्पादों के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयात है। इस स्थिति को लंबे समय तक जारी नहीं रहने दिया जा सकता। इस आयात ने अब सभी पर असर डालना शुरू कर दिया है क्योंकि हाल के दिनों में मांग बढऩे और आपूर्ति स्थिर रहने के कारण दुनिया भर में खाद्य तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है।
माना जा रहा है कि प्रस्तावित मिशन तिलहन उत्पादन में इजाफा लाएगा क्योंकि उत्पादकों को जरूरी कच्चा माल, तकनीक और जानकारी मुहैया कराई जाएगी। योजना के मुताबिक इसी खरीफ सत्र में किसानों को मूंगफली और सोयाबीन समेत विभिन्न तिलहनी फसलों की अधिक उत्पादन वाले और बीमारी तथा कीटाणुओं से बचाव की क्षमता रखने वाले बीजों के मिनी किट किसानों को उपलब्ध कराने की योजना है। इस सत्र में छह लाख हेक्टेयर से अधिक अतिरिक्त रकबे में तिलहन की फसल उगाई जाएगी। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तिलहन की फसल का कुल रकबा भी उन इलाकों में बढ़ाने का प्रस्ताव है जहां पारंपरिक रूप से तिलहन की खेती नहीं की जाती है। दलहन तथा उपयुक्त फसलों के साथ मिलाकर तिलहन की बुआई की जाएगी।
एक क्षेत्र जहां यह मिशन पटरी से उतरता नजर आता है वह है पूर्वोत्तर राज्यों तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीपों में ऑयल पाम के वृक्षों को प्रोत्साहन देना। इसमें दो राय नहीं कि तकनीकी रूप से इन क्षेत्रों का वातावरण ऑयल पाम के वृक्षों के लिए अनुकूल है। हकीकत तो यह है कि कुछ निजी निवेशकों ने पहले ही वहां ऑयल पाम की पौध लगानी शुरू कर दी है। बहरहाल, वे ऐसा वनों की कटाई करके कर रहे हैं जो उचित नहीं है। इससे उस क्षेत्र का पर्यावास और भूगर्भ की स्थिति प्रभावित होगी। प्रस्तावित कार्यक्रम में इसे सही किया जाना चाहिए। सच यह भी है कि भारत में यह संभावना है कि वह कुछ अपारंपरिक स्रोतों से अच्छी गुणवत्ता वाला खाद्य तेल निकाल सके। कॉटनसीड ऑयल और राइसब्रान ऑयल इसके दो सटीक उदाहरण हैं। ये उत्पाद प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं और फिलहाल इनका लाभ नहीं लिया जा रहा। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है लेकिन इसके बहुत कम हिस्से का इस्तेमाल तेल निकालने में होता है। कॉटनसीड के साथ भी ऐसा ही है। बड़ी तादाद में ये बीज बिना तेल निकाले पशुओं को खिला दिए जाते हैं। प्रस्तावित तिलहन मिशन को इन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।
इसके अलावा घरेलू खाद्य तेल की उपलब्धता बढ़ाकर आयात कम करने की किसी भी नीति की सफलता के लिए जरूरी है कि तेल उत्पादकों को उत्पादन का आकर्षक प्रतिफल हासिल हो। स्थानीय उत्पादित तेल आयातित तेल का मुकाबला नहीं कर पाता क्योंकि शुल्क ढांचे में निरंतर हस्तक्षेप उसे सस्ता बनाता है। ऐसे में देसी उत्पादन की कोई भी पहल प्रभावित होगी। ऐसी किसी भी सफलता के लिए मूल्य निर्धारण अहम है।
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