भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक समिति ने शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए एक खास संगठन तैयार करने की सिफारिश की है। समिति के अनुसार यह संगठन तैयार करने से ऐसे बैंकों को इसी खंड के दूसरे बैंकों से सहयोग करने में मदद मिलेगी। हालांकि समिति ने बड़े शहरी सहकारी बैंकों को बैंकों की तरह ही एकल आधार पर परिचालन करने की अनुमति देने की सिफारिश की है। इनका नियमन व्यावसायिक बैंकों की तरह ही होगा। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा संगठन तैयार करने के लिए आरबीआई को इन इकाइयों की मदद करनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बार यह संगठन तैयार होने पर इसे सार्वभौम बैंक का दर्जा दिया जा सकता है। उसके बाद यह संगठन सदस्य बैंकों की तरफ से मूल्य वद्र्धित सेवाओं की पेशकश कर सकता है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने कहा, 'इस एकछत्र संगठन को उपयुक्त संरचनात्मक स्वतंत्रता देने के लिए इसका नियंत्रण सहकारी संस्थानों को दिया जा सकता है। इससे छोटे शहरी सहकारी बैंक इस संगठन का हिस्सा होने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।'बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन केबाद शहरी सहकारी बैंकों के नियमन के लिए आरबीआई को पर्याप्त अधिकार मिल गए हैं। इस संशोधन से पहले आरबीआई से शहरी सहकारी बैंकों के केवल बैंकिं ग पक्ष से जुड़े विषयों का नियमन कर रहा था। इन बैंकों का संचनालन, इनके अंकेक्षण और इन्हें बंद करने के अधिकार राज्यों (एकल राज्य सहकारी) और केंद्र सरकार (बहु-राज्य सहकारी) के पास था। हालांकि बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन के बाद भी इन बैंकों पर दोहरा नियंत्रण समाप्त नहीं हुआ है मगर नियामक की तरह से एक उपयुक्त रवैया अपनाए जाने से शहरी सहाकरी बैंकों को वित्तीय रूप से दुरुस्त करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।एन एस विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली समिति ने सुझाया है कि इस क्षेत्र की विविधताओं को देखते हुए एक बहु-स्तरीय नियामकीय ढांचे की जरूरत होगी। समिति ने यूसीबी के लिए एक उदार नियामकीय रवैया रखने की सलाह दी है जो न्यूनतम पूंजी एवं शुद्ध परिसंपत्ति और सीआरएआर शर्तें पूरी करने में मददगार साबित होंगी। रिपोर्ट मे कहा गया है कि यूसीबी के नियमन के लिए चार स्तरों की एक व्यवस्था तैयार हो सकती है। समिति के अनुसार शीर्ष पर बड़े यूसीबी होंगे जिन्हें बैंकों की तरह ही शाखा विस्तार का निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। ये यूसीबी व्यावसायिक बैंकों की तरह ही काम करेंगे और इनका नियमन भी बैंकों की तरह होना चाहिए। समिति ने सुझाव दिया है कि दूसरे बड़े यूसीबी पूर्ण रूप से बैंकों की तरह परिचालन नहीं कर सकते और उन्हें लघु वित्त बैंकों की तरह ही देखा जाना चाहिए और नियमन की शर्तें भी इसी तरह होनी चहिए। छोटे यूसीबी आपस में विलय के बजाय एकछत्र संगठन के तंत्र के जरिये अपने कारोबार का विस्तार कर सकते हैं। समिति ने कहा है, 'इस संगठन का सदस्य बनने से नियामक को भी आसानी होगी क्योंकि छोटे यूसीबी इस संगठन द्वारा मुहैया कराए जाने वाले उत्पादों एवं सेवाओं से लाभान्वित होंगे।'
