जाइडस कैडिला 12 से 18 साल के बच्चों के लिए भारत के पहले टीके जाइकोव-डी की 3 से 5 करोड़ खुराकों की आपूर्ति अक्टूबर से जनवरी के बीच करने की उम्मीद कर रही है। अब कंपनी डेल्टा स्वरूप के टीके की किस्म विकसित करने और तीन साल तथा उससे अधिक उम्र के बच्चों पर परीक्षण शुरू करने पर काम शुरू करेगी। इस टीके को लगाने की प्रणाली भी परंपरागत इंजेक्शन-सुई प्रणाली की तुलना में काफी महंगी है। लेकिन इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने दावा किया कि इस टीके की निजी बाजार में कीमत कोवैक्सीन की तुलना में कम रह सकती है। जाइकोव डी टीका एक विशेष इंजेक्टर से लगाया जाएगा, जिसमें एक विशेष सिरिंज या एप्लीकेटर का इस्तेमाल होगा। एक इंजेक्टर को हजारों बार इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन हरेक बार टीका लगाने के लिए नए एप्लीकेटर की जरूरत होती है। सूत्रों ने दावा किया कि इंजेक्टर की प्रति खुराक लागत करीब 5 से 7 रुपये आती है। एप्लीकेटर की कीमत अलग है। कंपनी ने कीमत की रणनीति को लेकर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। जाइडस ने कहा है कि वह सरकार के साथ मिलकर काम करेगी और उसे जितनी खुराकों की जरूरत होगी, उतनी आपूर्ति करेगी। शेष खुराकों की आपूर्ति निजी क्षेत्र को होगी। बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कैडिला हेल्थकेयर के प्रबंध निदेशक (एमडी) शर्विल पटेल ने कहा कि डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड प्लाज्मिड टीका प्लेटफॉर्म में किसी खास स्वरूप के लिए लक्षित टीका बनाना आसाना है। इसमें वायरस के स्वरूप या इंजेक्ट किए हुए एंटीजन के जीन में बदलाव के लिए आसानी से फेरबदल किया जा सकता है। उन्होंने कहा, 'हम डेल्टा स्वरूप के लिए टीके की किस्म विकसित करने की योजना बना रहे हैं। इस पर जल्द ही काम शुरू होगा।' कोविड के किसी चिंताजनक स्वरूप से निपटने के लिए टीके में करीब एक महीने में बदलाव किया जा सकता है। इस बीच जाइडस ने 3 से 11 साल की उम्र के बच्चों पर परीक्षण शुरू करने की योजना बनाई है और प्रॉटोकॉल पर काम कर रही है। पटेल का मानना है कि अगर नियामक मंजूरी देता है तो यह 'ओपन लेबल' परीक्षण हो सकता है, जिसका मतलब है कि किसी भी बच्चे को प्लेसिबो नहीं दिया जाएगा। ऐसे परीक्षण जल्द पूरे हो सकते हैं, जिसमें हरेक को टीके की खुराक लगाई जाती है। एक खुराक दोनों भुजाओं में लगेगी, जिसमें सुई का इस्तेमाल नहीं होगा। अमेरिका की एक मां एवं बेटी द्वारा चलाई जा रही स्टार्टअप फार्माजेट ने जाइडस कैडिला के साथ गठजोड़ किया है, जो बिना सुई का सिस्टम फार्माजेट ट्रॉपिक्स के जरिये जाइकोव-डी टीका लगाएगी। इसमें दर्द इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने से भी कम होगा। पटेल ने साफ किया, 'यह एप्लीकेटर टीका मांसपेशी में नहीं बल्कि त्वचा में लगाता है। इससे काफी कम दर्द होता है।'इस प्रणाली के दो हिस्से हैं। एक इंजेक्टर, जिसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरा एक बार इस्तेमाल की जा सकने वाली सिरिंज या एप्लीकेटर और फिलिंग एडेप्टर होता है। एप्लीकेटर मापी हुई खुराक (टीके की 100 माइक्रो लीटर मात्रा लेता है और पेन के बटन को दबाते ही डिलिवर कर देता है। इस सिस्टम के बारे में टीका देने वालों को मामूली प्रशिक्षित करने की जरूरत होती है। यहां तक कि कम कुशल टीकाकर्ता भी जाइकोव-डी का टीका लगा सकते हैं। जाइडस सिंगापुर में ठेके पर एप्लीकेटर बनवा रही है और अहमदाबाद में उत्पाद की एसेंबलिंग कर रही है। कंपनी जल्द ही एप्लीकेटर के विनिर्माण का काम भारत में शुरू कर सकती है। फार्माजेट की सिरिंज या एप्लीकेटर के लिए भारतीय कंपनी हिंदुस्तान सिरिंज्स ऐंड मेडिकल डिवाइसेज के साथ बातचीत सफल नहीं रही थी।
